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احبار 7:1 - किताबे-मुक़द्दस

1 क़ुसूर की क़ुरबानी जो निहायत मुक़द्दस है उसके बारे में हिदायात यह हैं :

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

1 ” ’اَور خطا کی قُربانی کے لیٔے جو کہ نہایت مُقدّس ہے یہ ضوابط ہیں:

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کِتابِ مُقادّس

1 اور جُرم کی قُربانی کے بارے میں شرع یہ ہے۔ وہ نِہایت مُقدّس ہے۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

1 قصور کی قربانی جو نہایت مُقدّس ہے اُس کے بارے میں ہدایات یہ ہیں:

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احبار 7:1
17 حوالہ جات  

“हारून और उसके बेटों को गुनाह की क़ुरबानी के बारे में ज़ैल की हिदायात देना : गुनाह की क़ुरबानी को रब के सामने वहीं ज़बह करना है जहाँ भस्म होनेवाली क़ुरबानी ज़बह की जाती है। वह निहायत मुक़द्दस है।


उसे पकाने के लिए उसमें ख़मीर न डाला जाए। मैंने जलनेवाली क़ुरबानियों में से यह हिस्सा उनके लिए मुक़र्रर किया है। यह गुनाह की क़ुरबानी और क़ुसूर की क़ुरबानी की तरह निहायत मुक़द्दस है।


रब ने मूसा से कहा,


कहा, “यहाँ इमाम वह गोश्त उबालेंगे जो गुनाह और क़ुसूर की क़ुरबानियों में से उनका हिस्सा बनता है। यहाँ वह ग़ल्ला की नज़र लेकर रोटी भी बनाएँगे। क़ुरबानियों में से कोई भी चीज़ बैरूनी सहन में नहीं लाई जा सकती, ऐसा न हो कि मुक़द्दस चीज़ें छूने से आम लोगों की जान ख़तरे में पड़ जाए।”


खाने के लिए इमामों को ग़ल्ला, गुनाह और क़ुसूर की क़ुरबानियाँ मिलेंगी, नीज़ इसराईल में वह सब कुछ जो रब के लिए मख़सूस किया जाता है।


बरामदे में चार मेज़ें थीं, कमरे के दोनों तरफ़ दो दो मेज़ें। इन मेज़ों पर उन जानवरों को ज़बह किया जाता था जो भस्म होनेवाली क़ुरबानियों, गुनाह की क़ुरबानियों और क़ुसूर की क़ुरबानियों के लिए मख़सूस थे।


और अपने आपको मुक़र्ररा वक़्त के लिए दुबारा रब के लिए मख़सूस करे। वह क़ुसूर की क़ुरबानी के तौर पर एक साल का भेड़ का बच्चा पेश करे। जितने दिन उसने पहले मख़सूसियत की हालत में गुज़ारे हैं वह शुमार नहीं किए जा सकते क्योंकि वह मख़सूसियत की हालत में नापाक हो गया था। वह दुबारा पहले दिन से शुरू करे।


उसे अल्लाह की मुक़द्दस बल्कि मुक़द्दसतरीन क़ुरबानियों में से भी इमामों का हिस्सा खाने की इजाज़त है।


अगर वह शख़्स ग़ुरबत के बाइस दो क़ुम्रियाँ या दो जवान कबूतर भी न दे सके तो फिर वह गुनाह की क़ुरबानी के लिए डेढ़ किलोग्राम बेहतरीन मैदा पेश करे। वह उस पर न तेल उंडेले, न लुबान रखे, क्योंकि यह ग़ल्ला की नज़र नहीं बल्कि गुनाह की क़ुरबानी है।


वह उन्हें इमाम के पास ले आए। इमाम पहले गुनाह की क़ुरबानी के लिए परिंदा पेश करे। वह उस की गरदन मरोड़ डाले लेकिन ऐसे कि सर जुदा न हो जाए।


अगर क़ुसूरवार शख़्स ग़ुरबत के बाइस भेड़ या बकरी न दे सके तो वह रब को दो क़ुम्रियाँ या दो जवान कबूतर पेश करे, एक गुनाह की क़ुरबानी के लिए और एक भस्म होनेवाली क़ुरबानी के लिए।


“अगर किसी ने बेईमानी करके ग़ैरइरादी तौर पर रब की मख़सूस और मुक़द्दस चीज़ों के सिलसिले में गुनाह किया हो, ऐसा शख़्स क़ुसूर की क़ुरबानी के तौर पर रब को बेऐब और क़ीमत के लिहाज़ से मुनासिब मेंढा या बकरा पेश करे। उस की क़ीमत मक़दिस की शरह के मुताबिक़ मुक़र्रर की जाए।


जो लावी मशरिक़ी दरवाज़े का दरबान था उसका नाम क़ोरे बिन यिमना था। अब उसे रब को रज़ाकाराना तौर पर दिए गए हदिये और उसके लिए मख़सूस किए गए अतीए तक़सीम करने का निगरान बनाया गया।


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