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احبار 25:35 - किताबे-मुक़द्दस

35 अगर तेरा कोई हमवतन भाई ग़रीब हो जाए और गुज़ारा न कर सके तो उस की मदद कर। उस तरह उस की मदद करना जिस तरह परदेसी या ग़ैरशहरी की मदद करनी होती है ताकि वह तेरे साथ रहते हुए ज़िंदगी गुज़ार सके।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

35 ” ’اَور اگر تمہارا کویٔی ہم وطن اِسرائیلی مُفلس ہو جائے اَور تمہارے درمیان رہتے ہویٔے بھی تنگ دست ہو تو اُس کی مدد کرنا جَیسا کہ تُم کسی پردیسی یا مُسافر کی کرتے ہو تاکہ وہ تمہارے درمیان بسا رہے۔

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کِتابِ مُقادّس

35 اور اگر تیرا کوئی بھائی مُفلِس ہو جائے اور وہ تیرے سامنے تنگ دست ہو تو تُو اُسے سنبھالنا۔ وہ پردیسی اور مُسافِر کی طرح تیرے ساتھ رہے۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

35 اگر تیرا کوئی ہم وطن بھائی غریب ہو جائے اور گزارہ نہ کر سکے تو اُس کی مدد کر۔ اُس طرح اُس کی مدد کرنا جس طرح پردیسی یا غیرشہری کی مدد کرنی ہوتی ہے تاکہ وہ تیرے ساتھ رہتے ہوئے زندگی گزار سکے۔

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احبار 25:35
36 حوالہ جات  

नहीं, अपने दुश्मनों से मुहब्बत करो और उन्हीं से भलाई करो। उन्हें उधार दो जिनके बारे में तुम्हें वापस मिलने की उम्मीद नहीं है। फिर तुमको बड़ा अज्र मिलेगा और तुम अल्लाह तआला के फ़रज़ंद साबित होगे, क्योंकि वह भी नाशुक्रों और बुरे लोगों पर नेकी का इज़हार करता है।


अगर किसी के माली हालात ठीक हों और वह अपने भाई की ज़रूरतमंद हालत को देखकर रहम न करे तो उसमें अल्लाह की मुहब्बत किस तरह क़ायम रह सकती है?


अगबुस की बात सुनकर अंताकिया के शागिर्दों ने फ़ैसला किया कि हममें से हर एक अपनी माली गुंजाइश के मुताबिक़ कुछ दे ताकि उसे यहूदिया में रहनेवाले भाइयों की इमदाद के लिए भेजा जा सके।


जो पस्तहाल पर ज़ुल्म करे वह उसके ख़ालिक़ की तहक़ीर करता है जबकि जो ज़रूरतमंद पर तरस खाए वह अल्लाह का एहतराम करता है।


वह फ़ैयाज़ी से ज़रूरतमंदों में ख़ैरात बिखेर देता है। उस की रास्तबाज़ी हमेशा क़ायम रहेगी, और उसे इज़्ज़त के साथ सरफ़राज़ किया जाएगा।


मेहरबानी करना और क़र्ज़ देना बा-बरकत है। जो अपने मामलों को इनसाफ़ से हल करे वह अच्छा करेगा,


दाऊद का ज़बूर। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। मुबारक है वह जो पस्तहाल का ख़याल रखता है। मुसीबत के दिन रब उसे छुटकारा देगा।


वह हमेशा मेहरबान और क़र्ज़ देने के लिए तैयार है। उस की औलाद बरकत का बाइस होगी।


मेहमान-नवाज़ी मत भूलना, क्योंकि ऐसा करने से बाज़ ने नादानिस्ता तौर पर फ़रिश्तों की मेहमान-नवाज़ी की है।


उन्होंने सिर्फ़ एक बात पर ज़ोर दिया कि हम ज़रूरतमंदों को याद रखें, वही बात जिसे मैं हमेशा करने के लिए कोशाँ रहा हूँ।


असल में इसकी ज़रूरत नहीं कि मैं आपको उस काम के बारे में लिखूँ जो हमें यहूदिया के मुक़द्दसीन की ख़िदमत में करना है।


आप तो जानते हैं कि हमारे ख़ुदावंद ईसा मसीह ने आप पर कैसा फ़ज़ल किया है, कि अगरचे वह दौलतमंद था तो भी वह आपकी ख़ातिर ग़रीब बन गया ताकि आप उस की ग़ुरबत से दौलतमंद बन जाएँ।


इसके बजाए “अगर तेरा दुश्मन भूका हो तो उसे खाना खिला, अगर प्यासा हो तो पानी पिला। क्योंकि ऐसा करने से तू उसके सर पर जलते हुए कोयलों का ढेर लगाएगा।”


अपनी तरफ़ से पूरी कोशिश करें कि जहाँ तक मुमकिन हो सबके साथ मेल-मिलाप रखें।


जब मुक़द्दसीन ज़रूरतमंद हैं तो उनकी मदद करने में शरीक हों। मेहमान-नवाज़ी में लगे रहें।


ग़रीब तो हमेशा तुम्हारे पास रहेंगे, लेकिन मैं हमेशा तुम्हारे पास नहीं रहूँगा।”


ग़रीब तो हमेशा तुम्हारे पास रहेंगे, और तुम जब भी चाहो उनकी मदद कर सकोगे। लेकिन मैं हमेशा तुम्हारे साथ नहीं रहूँगा।


क्योंकि मैं भूका था और तुमने मुझे खाना खिलाया, मैं प्यासा था और तुमने मुझे पानी पिलाया, मैं अजनबी था और तुमने मेरी मेहमान-नवाज़ी की,


जो ग़रीब पर मेहरबानी करे वह रब को उधार देता है, वही उसे अज्र देगा।


जो ग़रीब का मज़ाक़ उड़ाए वह उसके ख़ालिक़ की तहक़ीर करता है, जो दूसरे की मुसीबत देखकर ख़ुश हो जाए वह सज़ा से नहीं बचेगा।


अगर तेरा कोई हमवतन भाई ग़रीब होकर अपनी कुछ ज़मीन बेचने पर मजबूर हो जाए तो लाज़िम है कि उसका सबसे क़रीबी रिश्तेदार उसे वापस ख़रीद ले।


उसके साथ ऐसा सुलूक कर जैसा अपने हमवतनों के साथ करता है। जिस तरह तू अपने आपसे मुहब्बत रखता है उसी तरह उससे भी मुहब्बत रखना। याद रहे कि तुम ख़ुद मिसर में परदेसी थे। मैं रब तुम्हारा ख़ुदा हूँ।


जो परदेसी तेरे मुल्क में मेहमान है उस पर दबाव न डालना। तुम ऐसे लोगों की हालत से ख़ूब वाक़िफ़ हो, क्योंकि तुम ख़ुद मिसर में परदेसी रहे हो।


जो परदेसी तेरे मुल्क में मेहमान है उसे न दबाना और न उससे बुरा सुलूक करना, क्योंकि तुम भी मिसर में परदेसी थे।


अगर तूने मेरी क़ौम के किसी ग़रीब को क़र्ज़ दिया है तो उससे सूद न लेना।


अगर कोई इसराईली भाई तुझसे क़र्ज़ ले तो उससे सूद न लेना, ख़ाह तूने उसे पैसे, खाना या कोई और चीज़ दी हो।


कुछ देर बाद कुछ मर्दो-ख़वातीन मेरे पास आकर अपने यहूदी भाइयों की शिकायत करने लगे।


मैं बड़े ग़ुस्से में आकर तुम्हें तलवार से मार डालूँगा। फिर तुम्हारी बीवियाँ ख़ुद बेवाएँ और तुम्हारे बच्चे ख़ुद यतीम बन जाएंगे।


दूसरों ने शिकायत की, “काल के दौरान हमें अपने खेतों, अंगूर के बाग़ों और घरों को गिरवी रखना पड़ा ताकि अनाज मिल जाए।”


क्या मैंने पस्तहालों की ज़रूरियात पूरी करने से इनकार किया या बेवा की आँखों को बुझने दिया? हरगिज़ नहीं!


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