“इसराईलियों को बताना कि तुममें से जो भी अपने बच्चे को मलिक देवता को क़ुरबानी के तौर पर पेश करे उसे सज़ाए-मौत देनी है। इसमें कोई फ़रक़ नहीं कि वह इसराईली है या परदेसी। जमात के लोग उसे संगसार करें।
क्या रब हज़ारों मेंढों या तेल की बेशुमार नदियों से ख़ुश हो जाएगा? क्या मुझे अपने पहलौठे को अपने जरायम के एवज़ चढ़ाना चाहिए, अपने जिस्म के फल को अपने गुनाहों को मिटाने के लिए पेश करना चाहिए? हरगिज़ नहीं!
चुनाँचे रब का ख़ौफ़ मानें, उस की ख़िदमत करें और उस की सुनें। सरकश होकर उसके अहकाम की ख़िलाफ़वरज़ी मत करना। अगर आप और आपका बादशाह रब से वफ़ादार रहेंगे तो वह आपके साथ होगा।
जो भी आपके ख़ुदा की शरीअत और शहनशाह के क़ानून की ख़िलाफ़वरज़ी करे उसे सख़्ती से सज़ा दी जाए। जुर्म की संजीदगी का लिहाज़ करके उसे या तो सज़ाए-मौत दी जाए या जिलावतन किया जाए, उस की मिलकियत ज़ब्त की जाए या उसे जेल में डाला जाए।”
साथ साथ उन्होंने वादीए-बिन-हिन्नूम में वाक़े तूफ़त की ऊँची जगहें तामीर कीं ताकि अपने बेटे-बेटियों को जलाकर क़ुरबान करें। मैंने कभी भी ऐसी रस्म अदा करने का हुक्म नहीं दिया बल्कि इसका ख़याल मेरे ज़हन में आया तक नहीं।