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احبار 19:13 - किताबे-मुक़द्दस

13 एक दूसरे को न दबाना और न लूटना। किसी की मज़दूरी उसी दिन की शाम तक दे देना और उसे अगली सुबह तक रोके न रखना।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

13 ” ’تُم اَپنے پڑوسی کو مت ٹھگنا اَور نہ ہی اُسے لُوٹنا۔ ” ’اَور نہ کسی مزدُور کی مزدُوری اَپنے پاس رات سے صُبح تک روکے رکھنا۔

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کِتابِ مُقادّس

13 تُو اپنے پڑوسی پر ظُلم نہ کرنا نہ اُسے لُوٹنا۔ مزدُور کی مزدُوری تیرے پاس ساری رات صُبح تک رہنے نہ پائے۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

13 ایک دوسرے کو نہ دبانا اور نہ لُوٹنا۔ کسی کی مزدوری اُسی دن کی شام تک دے دینا اور اُسے اگلی صبح تک روکے نہ رکھنا۔

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احبار 19:13
29 حوالہ جات  

देखें, जो मज़दूरी आपने फ़सल की कटाई करनेवालों से बाज़ रखी है वह आपके ख़िलाफ़ चिल्ला रही है। और आपकी फ़सल जमा करनेवालों की चीख़ें आसमानी लशकरों के रब के कानों तक पहुँच गई हैं।


रब्बुल-अफ़वाज फ़रमाता है, “मैं तुम्हारी अदालत करने के लिए तुम्हारे पास आऊँगा। जल्द ही मैं उनके ख़िलाफ़ गवाही दूँगा जो मेरा ख़ौफ़ नहीं मानते, जो जादूगर और ज़िनाकार हैं, जो झूटी क़सम खाते, मज़दूरों का हक़ मारते, बेवाओं और यतीमों पर ज़ुल्म करते और अजनबियों का हक़ मारते हैं।


यहूयक़ीम बादशाह पर अफ़सोस जो नाजायज़ तरीक़े से अपना घर तामीर कर रहा है, जो नाइनसाफ़ी से उस की दूसरी मनज़िल बना रहा है। क्योंकि वह अपने हमवतनों को मुफ़्त में काम करने पर मजबूर कर रहा है और उन्हें उनकी मेहनत का मुआवज़ा नहीं दे रहा।


ग़लत बाट और ग़लत पैमाइश, रब दोनों से घिन खाता है।


तू शरीअत के अहकाम से तो वाक़िफ़ है। क़त्ल न करना, ज़िना न करना, चोरी न करना, झूटी गवाही न देना, धोका न देना, अपने बाप और अपनी माँ की इज़्ज़त करना।”


मुल्क के आम लोग भी एक दूसरे का इस्तेह्साल करते हैं। वह डकैत बनकर ग़रीबों और ज़रूरतमंदों पर ज़ुल्म करते और परदेसियों से बदसुलूकी करके उनका हक़ मारते हैं।


रब फ़रमाता है कि इनसाफ़ और रास्ती क़ायम रखो। जिसे लूट लिया गया है उसे ज़ालिम के हाथ से छुड़ाओ। परदेसी, यतीम और बेवा को मत दबाना, न उनसे ज़्यादती करना, और इस जगह बेक़ुसूर लोगों की ख़ूनरेज़ी मत करना।


जो परदेसी तेरे मुल्क में मेहमान है उसे न दबाना और न उससे बुरा सुलूक करना, क्योंकि तुम भी मिसर में परदेसी थे।


लेकिन अगर जानवर का मालिक उस वक़्त साथ था तो दूसरे को मुआवज़ा देने की ज़रूरत नहीं होगी। अगर उसने जानवर को किराए पर लिया हो तो उसका नुक़सान किराए से पूरा हो जाएगा।


इस मामले में कोई अपने भाई का गुनाह न करे, न उससे ग़लत फ़ायदा उठाए। ख़ुदावंद ऐसे गुनाहों की सज़ा देता है। हम यह सब कुछ बता चुके और आपको आगाह कर चुके हैं।


उसने जवाब दिया, “सिर्फ़ उतने टैक्स लेना जितने हुकूमत ने मुक़र्रर किए हैं।”


पस्तहाल को इसलिए न लूट कि वह पस्तहाल है, मुसीबतज़दा को अदालत में मत कुचलना।


क्या मैंने उस की पैदावार अज्र दिए बग़ैर खाई, उस पर मेहनत-मशक़्क़त करनेवालों के लिए आहें भरने का बाइस बन गया? हरगिज़ नहीं!


या उसने किसी की गुमशुदा चीज़ के बारे में झूट बोला जब उसे मिल गई, या उसने क़सम खाकर झूट बोला है, या इस तरह का कोई और गुनाह किया है।


अगर किसी जंगली जानवर ने उसे फाड़ डाला हो तो वह सबूत के तौर पर फाड़ी हुई लाश को ले आए। फिर उसे उस की क़ीमत अदा नहीं करनी पड़ेगी।


दिन ढल गया तो ज़मीनदार ने अपने अफ़सर को बताया, ‘मज़दूरों को बुलाकर उन्हें मज़दूरी दे दे, आख़िर में आनेवालों से शुरू करके पहले आनेवालों तक।’


क्योंकि कलामे-मुक़द्दस फ़रमाता है, “जब तू फ़सल गाहने के लिए उस पर बैल चलने देता है तो उसका मुँह बाँधकर न रखना।” यह भी लिखा है, “मज़दूर अपनी मज़दूरी का हक़दार है।”


चोरी न करना।


हो सकता है कि किसी ने कुछ पैसे या कोई और माल अपने किसी वाक़िफ़कार के सुपुर्द कर दिया हो ताकि वह उसे महफ़ूज़ रखे। अगर यह चीज़ें उसके घर से चोरी हो जाएँ और बाद में चोर को पकड़ा जाए तो चोर को उस की दुगनी क़ीमत अदा करनी पड़ेगी।


वह उस आदमी की मानिंद हैं जो अपने दोस्तों को ज़ियाफ़त की दावत दे, हालाँकि उसके अपने बच्चे भूके मर रहे हों।


अगर तू आज कुछ दे सके तो अपने पड़ोसी से मत कहना, “कल आना तो मैं आपको कुछ दे दूँगा।”


वह किसी पर ज़ुल्म नहीं करता। अगर कोई ज़मानत देकर उससे क़र्ज़ा ले तो पैसे वापस मिलने पर वह ज़मानत वापस कर देता है। वह चोरी नहीं करता बल्कि भूकों को खाना खिलाता और नंगों को कपड़े पहनाता है।


तुझमें ऐसे लोग हैं जो रिश्वत के एवज़ क़त्ल करते हैं। सूद क़ाबिले-क़बूल है, और लोग एक दूसरे पर ज़ुल्म करके नाजायज़ नफ़ा कमाते हैं। रब क़ादिरे-मुतलक़ फ़रमाता है कि ऐ यरूशलम, तू मुझे सरासर भूल गई है!


चुनाँचे जब कभी तुम अपने किसी हमवतन भाई को ज़मीन बेचते या उससे ख़रीदते हो तो उससे नाजायज़ फ़ायदा न उठाना।


अपने हमवतन से नाजायज़ फ़ायदा न उठाना बल्कि रब अपने ख़ुदा का ख़ौफ़ मानना, क्योंकि मैं रब तुम्हारा ख़ुदा हूँ।


ग़ुलाम की तरह वह शाम के साये का आरज़ूमंद होता, मज़दूर की तरह मज़दूरी के इंतज़ार में रहता है।


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