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نوحہ یرمیاہ 3:7 - किताबे-मुक़द्दस

7 उसने मुझे पीतल की भारी ज़ंजीरों में जकड़कर मेरे इर्दगिर्द ऐसी दीवारें खड़ी कीं जिनसे मैं निकल नहीं सकता।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

7 اُنہُوں نے میرے چاروں طرف فصیل کھڑی کر دی تاکہ میں بچ نہ نکلوں؛ اَور مُجھے بھاری زنجیروں میں جکڑ دیا۔

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کِتابِ مُقادّس

7 اُس نے میرے گِرد اِحاطہ بنا دِیا کہ مَیں باہر نہیں نِکل سکتا اُس نے میری زنجِیر بھاری کر دی

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

7 اُس نے مجھے پیتل کی بھاری زنجیروں میں جکڑ کر میرے ارد گرد ایسی دیواریں کھڑی کیں جن سے مَیں نکل نہیں سکتا۔

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نوحہ یرمیاہ 3:7
11 حوالہ جات  

उसने मेरे रास्ते में ऐसी दीवार खड़ी कर दी कि मैं गुज़र नहीं सकता, उसने मेरी राहों पर अंधेरा ही छा जाने दिया है।


अल्लाह उसको ज़िंदा क्यों रखता जिसकी नज़रों से रास्ता ओझल हो गया है और जिसके चारों तरफ़ उसने बाड़ लगाई है।


इसलिए जहाँ भी वह चलना चाहे वहाँ मैं उसे काँटेदार झाड़ियों से रोक दूँगा, मैं ऐसी दीवार खड़ी करूँगा कि उसे रास्ते का पता न चले।


मेरे जरायम का जुआ भारी है। रब के हाथ ने उन्हें एक दूसरे के साथ जोड़कर मेरी गरदन पर रख दिया। अब मेरी ताक़त ख़त्म है, रब ने मुझे उन्हीं के हवाले कर दिया जिनका मुक़ाबला मैं कर ही नहीं सकता।


लेकिन आज मैं वह ज़ंजीरें खोल देता हूँ जिनसे आपके हाथ जकड़े हुए हैं। आप आज़ाद हैं। अगर चाहें तो मेरे साथ बाबल जाएँ। तब मैं ही आपकी निगरानी करूँगा। बाक़ी आपकी मरज़ी। अगर यहीं रहना पसंद करेंगे तो यहीं रहें। पूरे मुल्क में जहाँ भी जाना चाहें जाएँ। कोई आपको नहीं रोकेगा।”


तब उन्होंने यरमियाह को पकड़कर मलकियाह शाहज़ादा के हौज़ में डाल दिया। यह हौज़ शाही मुहाफ़िज़ों के सहन में था। रस्सों के ज़रीए उन्होंने यरमियाह को उतार दिया। हौज़ में पानी नहीं था बल्कि सिर्फ़ कीचड़, और यरमियाह कीचड़ में धँस गया।


तूने मेरे क़रीबी दोस्तों को मुझसे दूर कर दिया है, और अब वह मुझसे घिन खाते हैं। मैं फँसा हुआ हूँ और निकल नहीं सकता।


जो कुछ तूने हमारे और हमारे हुक्मरानों के ख़िलाफ़ फ़रमाया था वह पूरा हुआ, और हम पर बड़ी आफ़त आई। आसमान तले कहीं भी ऐसी मुसीबत नहीं आई जिस तरह यरूशलम को पेश आई है।


हमारा ताक़्क़ुब करनेवाले हमारे सर पर चढ़ आए हैं, और हम थक गए हैं। कहीं भी सुकून नहीं मिलता।


जहाँ भी मैं चलना चाहूँ वहाँ उसने तराशे पत्थरों की मज़बूत दीवार से मुझे रोक लिया। मेरे तमाम रास्ते भूलभुलय्याँ बन गए हैं।


मेरी आँखें ग़म के मारे पज़मुरदा हो गई हैं। ऐ रब, दिन-भर मैं तुझे पुकारता, अपने हाथ तेरी तरफ़ उठाए रखता हूँ।


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