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نوحہ یرمیاہ 3:37 - किताबे-मुक़द्दस

37 कौन कुछ करवा सकता है अगर रब ने इसका हुक्म न दिया हो?

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

37 کیا کسی کے کہنے کے مُطابق کچھ ہو سَکتا ہے جَب تک کہ خُداوؔند حُکم نہ دیں؟

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کِتابِ مُقادّس

37 وہ کَون ہے جِس کے کہنے کے مُطابِق ہوتا ہے حالانکہ خُداوند نہیں فرماتا؟

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37 کون کچھ کروا سکتا ہے اگر رب نے اِس کا حکم نہ دیا ہو؟

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نوحہ یرمیاہ 3:37
16 حوالہ جات  

मैं इब्तिदा से अंजाम का एलान, क़दीम ज़माने से आनेवाली बातों की पेशगोई करता आया हूँ। अब मैं फ़रमाता हूँ कि मेरा मनसूबा अटल है, मैं अपनी मरज़ी हर लिहाज़ से पूरी करूँगा।


इनसान अपने दिल में मनसूबे बाँधता रहता है, लेकिन रब ही मुक़र्रर करता है कि वह आख़िरकार किस राह पर चल पड़े।


इनसान दिल में मुतअद्दिद मनसूबे बाँधता रहता है, लेकिन रब का इरादा हमेशा पूरा हो जाता है।


उस की निसबत दुनिया के तमाम बाशिंदे सिफ़र के बराबर हैं। वह आसमानी फ़ौज और दुनिया के बाशिंदों के साथ जो जी चाहे करता है। उसे कुछ करने से कोई नहीं रोक सकता, कोई उससे जवाब तलब करके पूछ नहीं सकता, “तूने क्या किया?”


किसी की भी हिकमत, समझ या मनसूबा रब का सामना नहीं कर सकता।


मसीह में हम आसमानी बादशाही के वारिस भी बन गए हैं। अल्लाह ने पहले से हमें इसके लिए मुक़र्रर किया, क्योंकि वह सब कुछ यों सरंजाम देता है कि उस की मरज़ी का इरादा पूरा हो जाए।


क्योंकि उसने मूसा से कहा, “मैं जिस पर मेहरबान होना चाहूँ उस पर मेहरबान होता हूँ और जिस पर रहम करना चाहूँ उस पर रहम करता हूँ।”


रब फ़रमाता है, “मैं उनसे निपट लूँगा जो झूटे ख़ाब सुनाकर मेरी क़ौम को अपनी धोकेबाज़ी और शेख़ी की बातों से ग़लत राह पर लाते हैं, हालाँकि मैंने उन्हें न भेजा, न कुछ कहने को कहा था। उन लोगों का इस क़ौम के लिए कोई भी फ़ायदा नहीं।” यह रब का फ़रमान है।


फ़िरौन ने तंज़न कहा, “ठीक है, जाओ और रब तुम्हारे साथ हो। नहीं, मैं किस तरह तुम सबको बाल-बच्चों समेत जाने दे सकता हूँ? तुमने कोई बुरा मनसूबा बनाया है।


लेकिन बादशाह ने उसे रोक दिया, “मेरा आप और आपके भाई योआब से क्या वास्ता? नहीं, उसे लानत करने दें। हो सकता है रब ने उसे यह करने का हुक्म दिया है। तो फिर हम कौन हैं कि उसे रोकें।”


लेकिन किसी ने ख़ास निशाना बाँधे बग़ैर अपना तीर चलाया तो वह अख़ियब को ऐसी जगह जा लगा जहाँ ज़िरा-बकतर का जोड़ था। बादशाह ने अपने रथबान को हुक्म दिया, “रथ को मोड़कर मुझे मैदाने-जंग से बाहर ले जाओ! मुझे चोट लग गई है।”


इलीशा अभी बात कर ही रहा था कि क़ासिद पहुँच गया और उसके पीछे बादशाह भी। बादशाह बोला, “रब ही ने हमें इस मुसीबत में फँसा दिया है। मैं मज़ीद उस की मदद के इंतज़ार में क्यों रहूँ?”


लेकिन उसने जवाब दिया, “तू अहमक़ औरत की-सी बातें कर रही है। अल्लाह की तरफ़ से भलाई तो हम क़बूल करते हैं, तो क्या मुनासिब नहीं कि उसके हाथ से मुसीबत भी क़बूल करें?” इस सारे मामले में अय्यूब ने अपने मुँह से गुनाह न किया।


लेकिन एक बात तूने अपने दिल में छुपाए रखी, हाँ मुझे तेरा इरादा मालूम हो गया है।


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