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نوحہ یرمیاہ 2:12 - किताबे-मुक़द्दस

12 अपनी माँ से वह पूछते हैं, “रोटी और मै कहाँ है?” लेकिन बेफ़ायदा। वह मौत के घाट उतरनेवाले ज़ख़मी आदमियों की तरह चौकों में भूके मर रहे हैं, उनकी जान माँ की गोद में ही निकल रही है।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

12 جَب وہ شہر کے کوچوں میں پڑے ہُوئے زخمیوں کی طرح غش کھاتے ہیں، وہ اَپنی ماؤں کی گود میں دَم توڑنے لگتے ہیں، تَب وہ اُن سے پُوچھتے ہیں ”کہ روٹی اَور مَے کہاں ہے؟“

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کِتابِ مُقادّس

12 جب وہ شہر کے کوچُوں میں کے زخمِیوں کی طرح غش کھاتے اور جب اپنی ماؤں کی گود میں جان بلب ہوتے ہیں تو اُن سے کہتے ہیں کہ غلّہ اور مَے کہاں ہے؟

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

12 اپنی ماں سے وہ پوچھتے ہیں، ”روٹی اور مَے کہاں ہے؟“ لیکن بےفائدہ۔ وہ موت کے گھاٹ اُترنے والے زخمی آدمیوں کی طرح چوکوں میں بھوکے مر رہے ہیں، اُن کی جان ماں کی گود میں ہی نکل رہی ہے۔

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نوحہ یرمیاہ 2:12
9 حوالہ جات  

मैं शाहे-बाबल के बाज़ुओं को तक़वियत देकर उसे अपनी ही तलवार पकड़ा दूँगा। लेकिन फ़िरौन के बाज़ुओं को मैं तोड़ डालूँगा, और वह शाहे-बाबल के सामने मरनेवाले ज़ख़मी आदमी की तरह कराह उठेगा।


इसलिए मैं उसे बड़ों में हिस्सा दूँगा, और वह ज़ोरावरों के साथ लूट का माल तक़सीम करेगा। क्योंकि उसने अपनी जान को मौत के हवाले कर दिया, और उसे मुजरिमों में शुमार किया गया। हाँ, उसने बहुतों का गुनाह उठाकर दूर कर दिया और मुजरिमों की शफ़ाअत की।


और अब मेरी जान निकल रही है, मैं मुसीबत के दिनों के क़ाबू में आ गया हूँ।


पहले हालात याद करके मैं अपने सामने अपने दिल की आहो-ज़ारी उंडेल देता हूँ। कितना मज़ा आता था जब हमारा जुलूस निकलता था, जब मैं हुजूम के बीच में ख़ुशी और शुक्रगुज़ारी के नारे लगाते हुए अल्लाह की सुकूनतगाह की जानिब बढ़ता जाता था। कितना शोर मच जाता था जब हम जशन मनाते हुए घुमते-फिरते थे।


ऐ उम्मत, हर वक़्त उस पर भरोसा रख! उसके हुज़ूर अपने दिल का रंजो-अलम पानी की तरह उंडेल दे। अल्लाह ही हमारी पनाहगाह है। (सिलाह)


वह सब कुछ हड़प कर लेंगे : तेरी फ़सलें, तेरी ख़ुराक, तेरे बेटे-बेटियाँ, तेरी भेड़-बकरियाँ, तेरे गाय-बैल, तेरी अंगूर की बेलें और तेरे अंजीर के दरख़्त। जिन क़िलाबंद शहरों पर तुम भरोसा रखते हो उन्हें वह तलवार से ख़ाक में मिला देंगे।


शीरख़ार बच्चे की ज़बान प्यास के मारे तालू से चिपक गई है। छोटे बच्चे भूक के मारे रोटी माँगते हैं, लेकिन खिलानेवाला कोई नहीं है।


तेरे बेटे ग़श खाकर गिर गए हैं। हर गली में वह जाल में फँसे हुए ग़ज़ाल की तरह ज़मीन पर तड़प रहे हैं। क्योंकि रब का ग़ज़ब उन पर नाज़िल हुआ है, वह इलाही डाँट-डपट का निशाना बन गए हैं।


तमाम बाशिंदे आहें भर भरकर रोटी की तलाश में रहते हैं। हर एक खाने का कोई न कोई टुकड़ा पाने के लिए अपनी बेशक़ीमत चीज़ें बेच रहा है। ज़हन में एक ही ख़याल है कि अपनी जान को किसी न किसी तरह बचाए। “ऐ रब, मुझ पर नज़र डालकर ध्यान दे कि मेरी कितनी तज़लील हुई है।


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