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قضاۃ 21:4 - किताबे-मुक़द्दस

4 अगले दिन वह सुबह-सवेरे उठे और क़ुरबानगाह बनाकर उस पर भस्म होनेवाली और सलामती की क़ुरबानियाँ चढ़ाईं।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

4 دُوسرے دِن صُبح سویرے لوگوں نے وہاں ایک مذبح بنا کر سوختنی نذریں اَور سلامتی کی نذریں پیش کیں۔

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کِتابِ مُقادّس

4 اور دُوسرے دِن وہ لوگ صُبح سویرے اُٹھے اور اُس جگہ ایک مذبح بنا کر سوختنی قُربانِیاں اور سلامتی کی قُربانِیاں گُذرانِیں۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

4 اگلے دن وہ صبح سویرے اُٹھے اور قربان گاہ بنا کر اُس پر بھسم ہونے والی اور سلامتی کی قربانیاں چڑھائیں۔

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قضاۃ 21:4
13 حوالہ جات  

उसने वहाँ रब की ताज़ीम में क़ुरबानगाह तामीर करके उस पर भस्म होनेवाली और सलामती की क़ुरबानियाँ चढ़ाईं। तब रब ने मुल्क के लिए दुआ सुनकर वबा को रोक दिया।


हमारे पास एक ऐसी क़ुरबानगाह है जिसकी क़ुरबानी खाना मुलाक़ात के ख़ैमे में ख़िदमत करनेवालों के लिए मना है।


फिर मैं अपने घर वापस जाकर उस वक़्त तक उनसे दूर रहूँगा जब तक वह अपना क़ुसूर तसलीम करके मेरे चेहरे को तलाश न करें। क्योंकि जब वह मुसीबत में फँस जाएंगे तब ही मुझे तलाश करेंगे।”


उसी दिन बादशाह ने सहन का दरमियानी हिस्सा क़ुरबानियाँ चढ़ाने के लिए मख़सूस किया। वजह यह थी कि पीतल की क़ुरबानगाह इतनी क़ुरबानियाँ पेश करने के लिए छोटी थी, क्योंकि भस्म होनेवाली क़ुरबानियों और ग़ल्ला की नज़रों की तादाद बहुत ज़्यादा थी। इसके अलावा सलामती की बेशुमार क़ुरबानियों की चरबी को भी जलाना था।


उसी दिन जाद दाऊद के पास आया और उससे कहा, “अरौनाह यबूसी की गाहने की जगह के पास जाकर उस पर रब की क़ुरबानगाह बना ले।”


इसके बाद उसी पहाड़ी क़िले की चोटी पर रब अपने ख़ुदा के लिए सहीह क़ुरबानगाह बना दे। यसीरत के खंबे की कटी हुई लकड़ी और बैल को उस पर रखकर मुझे भस्म होनेवाली क़ुरबानी पेश कर।”


रब तुम्हारा ख़ुदा क़बीलों में से अपने नाम की सुकूनत के लिए एक जगह चुन लेगा। इबादत के लिए वहाँ जाया करो,


“ऐ रब, इसराईल के ख़ुदा, हमारी क़ौम का एक पूरा क़बीला मिट गया है! यह मुसीबत इसराईल पर क्यों आई?”


इसके बाद वह दुबारा रामा अपने घर वापस आ जाता जहाँ मुस्तक़िल कचहरी थी। वहाँ उसने रब के लिए क़ुरबानगाह भी बनाई थी।


वहीं जिदौन ने रब के लिए क़ुरबानगाह बनाई और उसका नाम ‘रब सलामत है’ रखा। यह आज तक अबियज़र के ख़ानदान के शहर उफ़रा में मौजूद है।


फिर इसराईल का पूरा लशकर बैतेल चला गया। वहाँ वह शाम तक रब के हुज़ूर रोते और रोज़ा रखते रहे। उन्होंने रब को भस्म होनेवाली क़ुरबानियाँ और सलामती की क़ुरबानियाँ पेश करके


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