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ایوب 9:32 - किताबे-मुक़द्दस

32 अल्लाह तो मुझ जैसा इनसान नहीं कि मैं जवाब में उससे कहूँ, ‘आओ हम अदालत में जाकर एक दूसरे का मुक़ाबला करें।’

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

32 ”وہ میری طرح اِنسان نہیں کہ میں اُنہیں جَواب دُوں، اَور عدالت میں ہم ایک دُوسرے کے مقابل کھڑے ہُوں۔

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کِتابِ مُقادّس

32 کیونکہ وہ میری طرح آدمی نہیں کہ مَیں اُسے جواب دُوں اور ہم عدالت میں باہم حاضِر ہوں۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

32 اللہ تو مجھ جیسا انسان نہیں کہ مَیں جواب میں اُس سے کہوں، ’آؤ ہم عدالت میں جا کر ایک دوسرے کا مقابلہ کریں۔‘

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ایوب 9:32
17 حوالہ جات  

यह न कहें। आप इनसान होते हुए कौन हैं कि अल्लाह के साथ बहस-मुबाहसा करें? क्या जिसको तश्कील दिया गया है वह तश्कील देनेवाले से कहता है, “तूने मुझे इस तरह क्यों बना दिया?”


जो कुछ भी पेश आता है उसका नाम पहले ही रखा गया है, जो भी इनसान वुजूद में आता है वह पहले ही मालूम था। कोई भी इनसान उसका मुक़ाबला नहीं कर सकता जो उससे ताक़तवर है।


अपने ख़ादिम को अपनी अदालत में न ला, क्योंकि तेरे हुज़ूर कोई भी जानदार रास्तबाज़ नहीं ठहर सकता।


अल्लाह आदमी नहीं जो झूट बोलता है। वह इनसान नहीं जो कोई फ़ैसला करके बाद में पछताए। क्या वह कभी अपनी बात पर अमल नहीं करता? क्या वह कभी अपनी बात पूरी नहीं करता?


जब वह हमें मुजरिम ठहराता है। क्योंकि अल्लाह हमारे दिल से बड़ा है और सब कुछ जानता है।


जिस तरह शेर-बबर यरदन के जंगल से निकलकर शादाब चरागाहों में चरनेवाली भेड़-बकरियों पर टूट पड़ता है उसी तरह मैं एकदम अदोम को उसके अपने मुल्क से भगा दूँगा। तब मैं अपने चुने हुए आदमी को अदोम पर मुक़र्रर करूँगा। क्योंकि कौन मेरे बराबर है? कौन मुझसे जवाब तलब कर सकता है? वह गल्लाबान कहाँ है जो मेरा मुक़ाबला कर सके?”


उस पर अफ़सोस जो अपने ख़ालिक़ से झगड़ा करता है, गो वह मिट्टी के टूटे-फूटे बरतनों का ठीकरा ही है। क्या गारा कुम्हार से पूछता है, “तू क्या बना रहा है?” क्या तेरी बनाई हुई कोई चीज़ तेरे बारे में शिकायत करती है, “उस की कोई ताक़त नहीं”?


लेकिन आपकी यह बात दुरुस्त नहीं, क्योंकि अल्लाह इनसान से आला है।


लेकिन रब ने फ़रमाया, “इसकी शक्लो-सूरत और लंबे क़द से मुतअस्सिर न हो, क्योंकि यह मुझे नामंज़ूर है। मैं इनसान की नज़र से नहीं देखता। क्योंकि इनसान ज़ाहिरी सूरत पर ग़ौर करके फ़ैसला करता है जबकि रब को हर एक का दिल साफ़ साफ़ नज़र आता है।”


अगर वह अदालत में अल्लाह के साथ लड़ना चाहे तो उसके हज़ार सवालात पर एक का भी जवाब नहीं दे सकेगा।


तो फिर मैं किस तरह उसे जवाब दूँ, किस तरह उससे बात करने के मुनासिब अलफ़ाज़ चुन लूँ?


ताहम तू मुझे गढ़े की कीचड़ में यों धँसने देता है कि मुझे अपने कपड़ों से घिन आती है।


जहाँ ताक़त की बात है तो वही क़वी है, जहाँ इनसाफ़ की बात है तो कौन उसे पेशी के लिए बुला सकता है?


चुनाँचे मुझे आपके लिए दहशत का बाइस नहीं होना चाहिए, मेरी तरफ़ से आप पर भारी बोझ नहीं आएगा।


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