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ایوب 9:20 - किताबे-मुक़द्दस

20 गो मैं बेगुनाह हूँ तो भी मेरा अपना मुँह मुझे क़ुसूरवार ठहराएगा, गो बेइलज़ाम हूँ तो भी वह मुझे मुजरिम क़रार देगा।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

20 اگر مَیں بے قُصُور بھی ہوتا، تو میرا ہی مُنہ مُجھے مُلزم ٹھہراتا؛ اگر مَیں بےگُناہ ہوتا، تو وہ مُجھے گُنہگار قرار دیتا۔

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کِتابِ مُقادّس

20 اگر مَیں صادِق بھی ہُوں تَو بھی میرا ہی مُنہ مُجھے مُلزِم ٹھہرائے گا۔ اگر مَیں کامِل بھی ہُوں تَو بھی یہ مُجھے کج رَو ثابِت کرے گا۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

20 گو مَیں بےگناہ ہوں توبھی میرا اپنا منہ مجھے قصوروار ٹھہرائے گا، گو بےالزام ہوں توبھی وہ مجھے مجرم قرار دے گا۔

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ایوب 9:20
24 حوالہ جات  

‘अय्यूब इल्म के साथ बात नहीं कर रहा, उसके अलफ़ाज़ फ़हम से ख़ाली हैं।


हम सबसे तो कई तरह की ग़लतियाँ सरज़द होती हैं। लेकिन जिस शख़्स से बोलने में कभी ग़लती नहीं होती वह कामिल है और अपने पूरे बदन को क़ाबू में रखने के क़ाबिल है।


यह लोग आपस में झगड़ने की वजह से हमेशा कुढ़ते रहते हैं। उनके ज़हन बिगड़ गए हैं और सच्चाई उनसे छीन ली गई है। हाँ, यह समझते हैं कि ख़ुदातरस ज़िंदगी गुज़ारने से माली नफ़ा हासिल किया जा सकता है।


उसने उनसे कहा, “तुम ही वह हो जो अपने आपको लोगों के सामने रास्तबाज़ क़रार देते हो, लेकिन अल्लाह तुम्हारे दिलों से वाक़िफ़ है। क्योंकि लोग जिस चीज़ की बहुत क़दर करते हैं वह अल्लाह के नज़दीक मकरूह है।


लेकिन आलिम ने अपने आपको दुरुस्त साबित करने की ग़रज़ से पूछा, “तो मेरा पड़ोसी कौन है?”


मैं चिल्ला उठा, “मुझ पर अफ़सोस, मैं बरबाद हो गया हूँ! क्योंकि गो मेरे होंट नापाक हैं, और जिस क़ौम के दरमियान रहता हूँ उसके होंट भी नजिस हैं तो भी मैंने अपनी आँखों से बादशाह रब्बुल-अफ़वाज को देखा है।”


जिसका दिल टेढ़ा है वह ख़ुशहाली नहीं पाएगा, और जिसकी ज़बान चालाक है वह मुसीबत में उलझ जाएगा।


जहाँ बहुत बातें की जाती हैं वहाँ गुनाह भी आ मौजूद होता है, जो अपनी ज़बान को क़ाबू में रखे वह दानिशमंद है।


अपने ख़ादिम को अपनी अदालत में न ला, क्योंकि तेरे हुज़ूर कोई भी जानदार रास्तबाज़ नहीं ठहर सकता।


ऐ रब, अगर तू हमारे गुनाहों का हिसाब करे तो कौन क़ायम रहेगा? कोई भी नहीं!


जब अय्यूब मुँह खोलता है तो बेमानी बातें निकलती हैं। जो मुतअद्दिद अलफ़ाज़ वह पेश करता है वह इल्म से ख़ाली हैं।”


“मैं ख़ूब जानता हूँ कि तेरी बात दुरुस्त है। लेकिन अल्लाह के हुज़ूर इनसान किस तरह रास्तबाज़ ठहर सकता है?


‘क्या इनसान अल्लाह के हुज़ूर रास्तबाज़ ठहर सकता है, क्या इनसान अपने ख़ालिक़ के सामने पाक-साफ़ ठहर सकता है?’


मुल्के-ऊज़ में एक बेइलज़ाम आदमी रहता था जिसका नाम अय्यूब था। वह सीधी राह पर चलता, अल्लाह का ख़ौफ़ मानता और हर बुराई से दूर रहता था।


अगर मैं हक़ पर होता भी तो अपना दिफ़ा न कर सकता। इस मुख़ालिफ़ से मैं इल्तिजा करने के अलावा और कुछ नहीं कर सकता।


जो कुछ भी हो मुझे क़ुसूरवार ही क़रार दिया गया है, चुनाँचे इसका क्या फ़ायदा कि मैं बेमानी तगो-दौ में मसरूफ़ रहूँ?


तो फिर भी मैं उन तमाम तकालीफ़ से डरता हूँ जो मुझे बरदाश्त करनी हैं। क्योंकि मैं जानता हूँ कि तू मुझे बेगुनाह नहीं ठहराता।


अगर मैं क़ुसूरवार हूँ तो मुझ पर अफ़सोस! और अगर मैं बेगुनाह भी हूँ ताहम मैं अपना सर उठाने की जुर्रत नहीं करता, क्योंकि मैं शर्म खा खाकर सेर हो गया हूँ। मुझे ख़ूब मुसीबत पिलाई गई है।


तू मेरे जरायम थैले में बाँधकर उस पर मुहर लगा देता, मेरी हर ग़लती को ढाँक देता।


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