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ایوب 4:19 - किताबे-मुक़द्दस

19 तो फिर वह इनसान पर क्यों भरोसा रखे जो मिट्टी के घर में रहता, ऐसे मकान में जिसकी बुनियाद ख़ाक पर ही रखी गई है। उसे पतंगे की तरह कुचला जाता है।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

19 تو پھر اُن کی حیثیت کیا ہے جو مٹّی کے گھروں میں رہتے ہیں، جِن کی بُنیاد خاک میں ہے، اَورجو کیڑے کی طرح مسل دئیے جاتے ہیں!

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کِتابِ مُقادّس

19 پِھر بھلا اُن کی کیا حقِیقت ہے جو مِٹّی کے مکانوں میں رہتے ہیں۔ جِن کی بُنیاد خاک میں ہے اور جو پتنگے سے بھی جلدی پِس جاتے ہیں!

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

19 تو پھر وہ انسان پر کیوں بھروسا رکھے جو مٹی کے گھر میں رہتا، ایسے مکان میں جس کی بنیاد خاک پر ہی رکھی گئی ہے۔ اُسے پتنگے کی طرح کچلا جاتا ہے۔

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ایوب 4:19
18 حوالہ جات  

ज़रा इसका ख़याल रख कि तूने मुझे मिट्टी से बनाया। अब तू मुझे दुबारा ख़ाक में तबदील कर रहा है।


फिर रब ख़ुदा ने ज़मीन से मिट्टी लेकर इनसान को तश्कील दिया और उसके नथनों में ज़िंदगी का दम फूँका तो वह जीती जान हुआ।


अल्लाह की नज़र में मैं तो आपके बराबर हूँ, मुझे भी मिट्टी से लेकर तश्कील दिया गया है।


पसीना बहा बहाकर तुझे रोटी कमाने के लिए भाग-दौड़ करनी पड़ेगी। और यह सिलसिला मौत तक जारी रहेगा। तू मेहनत करते करते दुबारा ज़मीन में लौट जाएगा, क्योंकि तू उसी से लिया गया है। तू ख़ाक है और दुबारा ख़ाक में मिल जाएगा।”


लेकिन हम जिनके अंदर यह ख़ज़ाना है आम मिट्टी के बरतनों की मानिंद हैं ताकि ज़ाहिर हो कि यह ज़बरदस्त क़ुव्वत हमारी तरफ़ से नहीं बल्कि अल्लाह की तरफ़ से है।


जब तू इनसान को उसके क़ुसूर की मुनासिब सज़ा देकर उसको तंबीह करता है तो उस की ख़ूबसूरती कीड़ा लगे कपड़े की तरह जाती रहती है। हर इनसान दम-भर का ही है। (सिलाह)


गो मैं मै की घिसी-फटी मशक और कीड़ों का ख़राब किया हुआ लिबास हूँ।


फिर जिन कहावतों की याद तुम दिलाते रहते हो वह राख की अमसाल साबित होंगी, पता चलेगा कि तुम्हारी बातें मिट्टी के अलफ़ाज़ हैं।


इब्राहीम ने कहा, “मैं मुआफ़ी चाहता हूँ कि मैंने रब से बात करने की जुर्रत की है अगरचे मैं ख़ाक और राख ही हूँ।


यों कलामे-मुक़द्दस फ़रमाता है, “तमाम इनसान घास ही हैं, उनकी तमाम शानो-शौकत जंगली फूल की मानिंद है। घास तो मुरझा जाती और फूल गिर जाता है,


हम तो जानते हैं कि जब हमारी दुनियावी झोंपड़ी जिसमें हम रहते हैं गिराई जाएगी तो अल्लाह हमें आसमान पर एक मकान देगा, एक ऐसा अबदी घर जिसे इनसानी हाथों ने नहीं बनाया होगा।


तब तेरी ख़ाक दुबारा उस ख़ाक में मिल जाएगी जिससे निकल आई और तेरी रूह उस ख़ुदा के पास लौट जाएगी जिसने उसे बख़्शा था।


जब उस की रूह निकल जाए तो वह दुबारा ख़ाक में मिल जाता है, उसी वक़्त उसके मनसूबे अधूरे रह जाते हैं।


वह तो अपने मुक़र्ररा वक़्त से पहले ही सुकड़ गए, उनकी बुनियादें सैलाब से ही उड़ा ली गईं।


फूल की तरह वह चंद लमहों के लिए फूट निकलता, फिर मुरझा जाता है। साये की तरह वह थोड़ी देर के बाद ओझल हो जाता और क़ायम नहीं रहता।


तो फिर इनसान किस तरह पाक ठहर सकता है जो कीड़ा ही है? आदमज़ाद तो मकोड़ा ही है।”


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