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ایوب 3:13 - किताबे-मुक़द्दस

13 अगर यह न होता तो इस वक़्त मैं सुकून से लेटा रहता, आराम से सोया होता।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

13 ورنہ اِس وقت مَیں سکون سے لیٹا ہوتا؛ اَور آرام کی نیند سو رہا ہوتا۔

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کِتابِ مُقادّس

13 نہیں تو اِس وقت مَیں پڑا ہوتا اور بے خبر رہتا مَیں سو جاتا۔ تب مُجھے آرام مِلتا۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

13 اگر یہ نہ ہوتا تو اِس وقت مَیں سکون سے لیٹا رہتا، آرام سے سویا ہوتا۔

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ایوب 3:13
22 حوالہ جات  

जिस काम को भी हाथ लगाए उसे पूरे जोशो-ख़ुरोश से कर, क्योंकि पाताल में जहाँ तू जा रहा है न कोई काम है, न मनसूबा, न इल्म और न हिकमत।


एक शख़्स वफ़ात पाते वक़्त ख़ूब तनदुरुस्त होता है। जीते-जी वह बड़े सुकून और इतमीनान से ज़िंदगी गुज़ार सका।


उनकी ज़िंदगी ख़ुशहाल रहती है, वह हर दिन से पूरा लुत्फ़ उठाते और आख़िरकार बड़े सुकून से पाताल में उतर जाते हैं।


कि मैं ख़ुद ही उसे देखूँ, न कि अजनबी बल्कि अपनी ही आँखों से उस पर निगाह करूँ। इस आरज़ू की शिद्दत से मेरा दिल तबाह हो रहा है।


अगर मैं सिर्फ़ इतनी ही उम्मीद रखूँ कि पाताल मेरा घर होगा तो यह कैसी उम्मीद होगी? अगर मैं अपना बिस्तर तारीकी में बिछाकर


वह मुल्क अंधेरा ही अंधेरा और काला ही काला है, उसमें घने साये और बेतरतीबी है। वहाँ रौशनी भी अंधेरा ही है।”


तू मेरा जुर्म मुआफ़ क्यों नहीं करता, मेरा क़ुसूर दरगुज़र क्यों नहीं करता? क्योंकि जल्द ही मैं ख़ाक हो जाऊँगा। अगर तू मुझे तलाश भी करे तो नहीं मिलूँगा, क्योंकि मैं हूँगा नहीं।”


माँ के घुटनों ने मुझे ख़ुशआमदीद क्यों कहा, उस की छातियों ने मुझे दूध क्यों पिलाया?


क्योंकि जल्द ही मुझे कूच करके वहाँ जाना है जहाँ से कोई वापस नहीं आता, उस मुल्क में जिसमें तारीकी और घने साये रहते हैं।


तू मुकम्मल तौर पर उस पर ग़ालिब आ जाता तो वह कूच कर जाता है, तू उसका चेहरा बिगाड़कर उसे फ़ारिग़ कर देता है।


क्योंकि थोड़े ही सालों के बाद मैं उस रास्ते पर रवाना हो जाऊँगा जिससे वापस नहीं आऊँगा।


लेकिन मैं जानता हूँ कि मेरा छुड़ानेवाला ज़िंदा है और आख़िरकार मेरे हक़ में ज़मीन पर खड़ा हो जाएगा,


अब दोनों मिलकर ख़ाक में पड़े रहते हैं, दोनों कीड़े-मकोड़ों से ढाँपे रहते हैं।


जिस तरह काल और झुलसती गरमी बर्फ़ का पानी छीन लेती हैं उसी तरह पाताल गुनाहगारों को छीन लेता है।


माँ का रहम उन्हें भूल जाता, कीड़ा उन्हें चूस लेता और उनकी याद जाती रहती है। यक़ीनन बेदीनी लकड़ी की तरह टूट जाती है।


अल्लाह के सामने वह तमाम मुरदा अरवाह जो पानी और उसमें रहनेवालों के नीचे बसती हैं डर के मारे तड़प उठती हैं।


हाँ, उसके सामने पाताल बरहना और उस की गहराइयाँ बेनिक़ाब हैं।


कहीं इतनी तारीकी या घना अंधेरा नहीं होता कि बदकार उसमें छुप सके।


और उन्हें उन सूरमाओं के पास जगह नहीं मिली जो क़दीम ज़माने में नामख़तूनों के दरमियान फ़ौत होकर अपने हथियारों के साथ पाताल में उतर आए थे और जिनके सरों के नीचे तलवार रखी गई। उनका क़ुसूर उनकी हड्डियों पर पड़ा रहता है, गो ज़िंदों के मुल्क में लोग इन जंगजुओं से दहशत खाते थे।


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