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ایوب 27:2 - किताबे-मुक़द्दस

2 “अल्लाह की हयात की क़सम जिसने मेरा इनसाफ़ करने से इनकार किया, क़ादिरे-मुतलक़ की क़सम जिसने मेरी ज़िंदगी तलख़ कर दी है,

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

2 ”زندہ خُدا کی قَسم جنہوں نے مُجھ سے اِنصاف نہیں کیا، اُن قادرمُطلق کی قَسم جنہوں نے میری جان کو تلخ کیا،

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کِتابِ مُقادّس

2 زِندہ خُدا کی قَسم جِس نے میرا حق چِھین لِیا اور قادِرِ مُطلِق کی سَوگند جِس نے میری جان کو دُکھ دِیا ہے۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

2 ”اللہ کی حیات کی قَسم جس نے میرا انصاف کرنے سے انکار کیا، قادرِ مطلق کی قَسم جس نے میری زندگی تلخ کر دی ہے،

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ایوب 27:2
26 حوالہ جات  

अय्यूब ने कहा है, ‘गो मैं बेगुनाह हूँ तो भी अल्लाह ने मुझे मेरे हुक़ूक़ से महरूम कर रखा है।


लेकिन ज्योंही वह पहाड़ के पास पहुँच गई तो इलीशा के सामने गिरकर उसके पाँवों से चिमट गई। यह देखकर जैहाज़ी उसे हटाने के लिए क़रीब आया, लेकिन मर्दे-ख़ुदा बोला, “छोड़ दो! कोई बात इसे बहुत तकलीफ़ दे रही है, लेकिन रब ने वजह मुझसे छुपाए रखी है। उसने मुझे इसके बारे में कुछ नहीं बताया।”


इसके बावुजूद मेरी हयात की क़सम और मेरे जलाल की क़सम जो पूरी दुनिया को मामूर करता है,


लेकिन रब क़ादिरे-मुतलक़ फ़रमाता है, ‘मेरी हयात की क़सम, मैं बेदीन की मौत से ख़ुश नहीं होता बल्कि मैं चाहता हूँ कि वह अपनी ग़लत राह से हटकर ज़िंदा रहे। चुनाँचे तौबा करो! अपनी ग़लत राहों को तर्क करके वापस आओ! ऐ इसराईली क़ौम, क्या ज़रूरत है कि तू मर जाए?’


पहले उन दीगर क़ौमों ने मेरी क़ौम को बाल देवता की क़सम खाने का तर्ज़ सिखाया। लेकिन अब अगर वह मेरी क़ौम की राहें अच्छी तरह सीखकर मेरे ही नाम और मेरी ही हयात की क़सम खाएँ तो मेरी क़ौम के दरमियान रहकर अज़ सरे-नौ क़ायम हो जाएँगी।


वह रब की हयात की क़सम खाते वक़्त भी झूट बोलते हैं।”


और रब की हयात की क़सम खाते वक़्त दियानतदारी, इनसाफ़ और सदाक़त से अपना वादा पूरा करे तो ग़ैरअक़वाम मुझसे बरकत पाकर मुझ पर फ़ख़र करेंगी।”


ऐ याक़ूब की क़ौम, तू क्यों कहती है कि मेरी राह रब की नज़र से छुपी रहती है? ऐ इसराईल, तू क्यों शिकायत करता है कि मेरा मामला मेरे ख़ुदा के इल्म में नहीं आता?


क्या तू ज़ुल्म करके मुझे रद्द करने में ख़ुशी महसूस करता है हालाँकि तेरे अपने ही हाथों ने मुझे बनाया? साथ साथ तू बेदीनों के मनसूबों पर अपनी मंज़ूरी का नूर चमकाता है। क्या यह तुझे अच्छा लगता है?


वह मुझे साँस भी नहीं लेने देता बल्कि कड़वे ज़हर से सेर कर देता है।


इलियास ने कहा, “रब्बुल-अफ़वाज की हयात की क़सम जिसकी ख़िदमत मैं करता हूँ, आज मैं अपने आपको ज़रूर बादशाह को पेश करूँगा।”


एक दिन इलियास नबी ने जो जिलियाद के शहर तिशबी का था अख़ियब बादशाह से कहा, “रब इसराईल के ख़ुदा की क़सम जिसकी ख़िदमत मैं करता हूँ, आनेवाले सालों में न ओस, न बारिश पड़ेगी जब तक मैं न कहूँ।”


योआब ने जवाब दिया, “रब की हयात की क़सम, अगर आप लड़ने का हुक्म न देते तो मेरे लोग आज सुबह ही अपने भाइयों का ताक़्क़ुब करने से बाज़ आ जाते।”


रब इसराईल के ख़ुदा की क़सम जिसने मुझे आपको नुक़सान पहुँचाने से रोक दिया, कल सुबह नाबाल के तमाम आदमी हलाक होते अगर आप इतनी जल्दी से मुझसे मिलने न आतीं।”


लेकिन रब की और आपकी हयात की क़सम, रब ने आपको अपने हाथों से बदला लेने और क़ातिल बनने से बचाया है। और अल्लाह करे कि जो भी आपसे दुश्मनी रखते और आपको नुक़सान पहुँचाना चाहते हैं उन्हें नाबाल की-सी सज़ा मिल जाए।


फिर मैं लड़के को तीरों को ले आने के लिए भेज दूँगा। अगर मैं उसे बता दूँ, ‘तीर उरली तरफ़ पड़े हैं, उन्हें जाकर ले आओ’ तो आप ख़ौफ़ खाए बग़ैर छुपने की जगह से निकलकर मेरे पास आ सकेंगे। रब की हयात की क़सम, इस सूरत में कोई ख़तरा नहीं होगा।


लेकिन फ़ौजियों ने एतराज़ किया, “यह कैसी बात है? यूनतन ही ने अपने ज़बरदस्त हमले से इसराईल को आज बचा लिया है। उसे किस तरह सज़ाए-मौत दी जा सकती है? कभी नहीं! अल्लाह की हयात की क़सम, उसका एक बाल भी बीका नहीं होगा, क्योंकि आज उसने अल्लाह की मदद से फ़तह पाई है।” यों फ़ौजियों ने यूनतन को मौत से बचा लिया।


रब की हयात की क़सम जो इसराईल का नजातदहिंदा है, क़ुसूरवार को फ़ौरन सज़ाए-मौत दी जाएगी, ख़ाह वह मेरा बेटा यूनतन क्यों न हो।” लेकिन सब ख़ामोश रहे।


रात के लिए यहाँ ठहरें! कल मैं उस आदमी से बात करूँगा। अगर वह आपसे शादी करके रिश्तेदारी का हक़ अदा करना चाहे तो ठीक है। अगर नहीं तो रब की क़सम, मैं यह ज़रूर करूँगा। आप सुबह के वक़्त तक यहीं लेटी रहें।”


अल्लाह ने मुझे शरीरों के हवाले कर दिया, मुझे बेदीनों के चंगुल में फँसा दिया है।


तो फिर जान लो, अल्लाह ने ख़ुद मुझे ग़लत राह पर लाकर अपने दाम से घेर लिया है।


अल्लाह ने ख़ुद मुझे शिकस्तादिल किया, क़ादिरे-मुतलक़ ही ने मुझे दहशत खिलाई है।


“आप कहते हैं, ‘मैं अल्लाह से ज़्यादा रास्तबाज़ हूँ।’ क्या आप यह बात दुरुस्त समझते हैं


क्या तू वाक़ई मेरा इनसाफ़ मनसूख़ करके मुझे मुजरिम ठहराना चाहता है ताकि ख़ुद रास्तबाज़ ठहरे?


थोड़ी-सी ग़लती के जवाब में वह मुझे पाश पाश करता, बिलावजह मुझे बार बार ज़ख़मी करता है।


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