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ایوب 14:2 - किताबे-मुक़द्दस

2 फूल की तरह वह चंद लमहों के लिए फूट निकलता, फिर मुरझा जाता है। साये की तरह वह थोड़ी देर के बाद ओझल हो जाता और क़ायम नहीं रहता।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

2 وہ پھُول کی طرح کھِلتا، اَور مُرجھا جاتا ہے؛ وہ تیزی سے گزرتے ہُوئے سایہ کی طرح قائِم نہیں رہتا۔

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کِتابِ مُقادّس

2 وہ پُھول کی طرح نِکلتا اور کاٹ ڈالا جاتا ہے۔ وہ سایہ کی طرح اُڑ جاتا ہے اور ٹھہرتا نہیں۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

2 پھول کی طرح وہ چند لمحوں کے لئے پھوٹ نکلتا، پھر مُرجھا جاتا ہے۔ سائے کی طرح وہ تھوڑی دیر کے بعد اوجھل ہو جاتا اور قائم نہیں رہتا۔

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ایوب 14:2
21 حوالہ جات  

यों कलामे-मुक़द्दस फ़रमाता है, “तमाम इनसान घास ही हैं, उनकी तमाम शानो-शौकत जंगली फूल की मानिंद है। घास तो मुरझा जाती और फूल गिर जाता है,


क्योंकि हम ख़ुद कल ही पैदा हुए और कुछ नहीं जानते, ज़मीन पर हमारे दिन साये जैसे आरिज़ी हैं।


देखें, आप यह भी नहीं जानते कि कल क्या होगा। आपकी ज़िंदगी चीज़ ही किया है! आप भाप ही हैं जो थोड़ी देर के लिए नज़र आती, फिर ग़ायब हो जाती है।


अपने बापदादा की तरह हम भी तेरे नज़दीक परदेसी और ग़ैरशहरी हैं। दुनिया में हमारी ज़िंदगी साये की तरह आरिज़ी है, और मौत से बचने की कोई उम्मीद नहीं।


इनसान दम-भर का ही है, उसके दिन तेज़ी से गुज़रनेवाले साये की मानिंद हैं।


मेरे दिन शाम के ढलनेवाले साये की मानिंद हैं। मैं घास की तरह सूख रहा हूँ।


बेदीन की ख़ैर नहीं होगी, क्योंकि वह अल्लाह का ख़ौफ़ नहीं मानता। उस की ज़िंदगी के दिन ज़्यादा नहीं बल्कि साये जैसे आरिज़ी होंगे।


रास्तबाज़ खजूर के दरख़्त की तरह फले-फूलेगा, वह लुबनान के देवदार के दरख़्त की तरह बढ़ेगा।


गो बेदीन घास की तरह फूट निकलते और बदकार सब फलते-फूलते हैं, लेकिन आख़िरकार वह हमेशा के लिए हलाक हो जाएंगे।


सुबह को वह ज़िंदा है लेकिन शाम तक पाश पाश हो जाता, अबद तक हलाक हो जाता है, और कोई भी ध्यान नहीं देता।


वह अंगूर की उस बेल की मानिंद होगा जिसका फल कच्ची हालत में ही गिर जाए, ज़ैतून के उस दरख़्त की मानिंद जिसके तमाम फूल झड़ जाएँ।


क्योंकि वह घास की तरह जल्द ही मुरझा जाएंगे, हरियाली की तरह जल्द ही सूख जाएंगे।


देख, मेरी ज़िंदगी का दौरानिया तेरे सामने लमहा-भर का है। मेरी पूरी उम्र तेरे नज़दीक कुछ भी नहीं है। हर इनसान दम-भर का ही है, ख़ाह वह कितनी ही मज़बूती से खड़ा क्यों न हो। (सिलाह)


चुनाँचे ऐ रब, मैं किसके इंतज़ार में रहूँ? तू ही मेरी वाहिद उम्मीद है!


आहो-ज़ारी करते करते मेरा जिस्म सुकड़ गया है, जिल्द और हड्डियाँ ही रह गई हैं।


लेकिन तू ऐ रब अबद तक तख़्तनशीन है, तेरा नाम पुश्त-दर-पुश्त क़ायम रहता है।


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