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ایوب 14:1 - किताबे-मुक़द्दस

1 औरत से पैदा हुआ इनसान चंद एक दिन ज़िंदा रहता है, और उस की ज़िंदगी बेचैनी से भरी रहती है।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

1 ”اِنسان جو عورت سے پیدا ہوتاہے، چند روزہ ہے اَور مُصیبت کا مارا ہُوا بھی۔

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کِتابِ مُقادّس

1 اِنسان جو عَورت سے پَیدا ہوتا ہے۔ تھوڑے دِنوں کا ہے اور دُکھ سے بھرا ہے۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

1 عورت سے پیدا ہوا انسان چند ایک دن زندہ رہتا ہے، اور اُس کی زندگی بےچینی سے بھری رہتی ہے۔

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ایوب 14:1
20 حوالہ جات  

बल्कि इनसान ख़ुद इसका बाइस है, दुख-दर्द उस की विरासत में ही पाया जाता है। यह इतना यक़ीनी है जितना यह कि आग की चिंगारियाँ ऊपर की तरफ़ उड़ती हैं।


उसके तमाम दिन दुख और रंजीदगी से भरे रहते हैं, रात को भी उसका दिल आराम नहीं पाता। यह भी बातिल ही है।


तो फिर इनसान अल्लाह के सामने किस तरह रास्तबाज़ ठहर सकता है? जो औरत से पैदा हुआ वह किस तरह पाक-साफ़ साबित हो सकता है?


इनसान दुनिया में सख़्त ख़िदमत करने पर मजबूर होता है, जीते-जी वह मज़दूर की-सी ज़िंदगी गुज़ारता है।


याक़ूब ने जवाब दिया, “मैं 130 साल से इस दुनिया का मेहमान हूँ। मेरी ज़िंदगी मुख़तसर और तकलीफ़देह थी, और मेरे बापदादा मुझसे ज़्यादा उम्ररसीदा हुए थे जब वह इस दुनिया के मेहमान थे।”


मैं तुमको सच बताता हूँ कि इस दुनिया में पैदा होनेवाला कोई भी शख़्स यहया से बड़ा नहीं है। तो भी आसमान की बादशाही में दाख़िल होनेवाला सबसे छोटा शख़्स उससे बड़ा है।


यक़ीनन मैं गुनाहआलूदा हालत में पैदा हुआ। ज्योंही मैं माँ के पेट में वुजूद में आया तो गुनाहगार था।


भला इनसान क्या है कि पाक-साफ़ ठहरे? औरत से पैदा हुई मख़लूक़ क्या है कि रास्तबाज़ साबित हो? कुछ भी नहीं!


मेरे दिन दौड़नेवाले आदमी से कहीं ज़्यादा तेज़ी से बीत गए, ख़ुशी देखे बग़ैर भाग निकले हैं।


मेरे दिन जूलाहे की नाल से कहीं ज़्यादा तेज़ी से गुज़र गए हैं। वह अपने अंजाम तक पहुँच गए हैं, धागा ख़त्म हो गया है।


यों सोचते सोचते मैं ज़िंदगी से नफ़रत करने लगा। जो भी काम सूरज तले किया जाता है वह मुझे बुरा लगा, क्योंकि सब कुछ बातिल और हवा को पकड़ने के बराबर है।


देख, मेरी ज़िंदगी का दौरानिया तेरे सामने लमहा-भर का है। मेरी पूरी उम्र तेरे नज़दीक कुछ भी नहीं है। हर इनसान दम-भर का ही है, ख़ाह वह कितनी ही मज़बूती से खड़ा क्यों न हो। (सिलाह)


आदम से उसने कहा, “तूने अपनी बीवी की बात मानी और उस दरख़्त का फल खाया जिसे खाने से मैंने मना किया था। इसलिए तेरे सबब से ज़मीन पर लानत है। उससे ख़ुराक हासिल करने के लिए तुझे उम्र-भर मेहनत-मशक़्क़त करनी पड़ेगी।


क्या मेरे दिन थोड़े नहीं हैं? मुझे तनहा छोड़! मुझसे अपना मुँह फेर ले ताकि मैं चंद एक लमहों के लिए ख़ुश हो सकूँ,


याद रहे कि मेरी ज़िंदगी कितनी मुख़तसर है, कि तूने तमाम इनसान कितने फ़ानी ख़लक़ किए हैं।


मैं क्यों माँ के पेट में से निकला? क्या सिर्फ़ इसलिए कि मुसीबत और ग़म देखूँ और ज़िंदगी के इख़्तिताम तक रुसवाई की ज़िंदगी गुज़ारूँ?


अचानक लड़का चीख़ने लगा, “हाय मेरा सर, हाय मेरा सर!” बाप ने किसी मुलाज़िम को बताया, “लड़के को उठाकर माँ के पास ले जाओ।”


क्योंकि हम ख़ुद कल ही पैदा हुए और कुछ नहीं जानते, ज़मीन पर हमारे दिन साये जैसे आरिज़ी हैं।


उस की नज़र में न चाँद पुरनूर है, न सितारे पाक हैं।


जब वह इधर-उधर घूमे फिरे तो साया ही है। उसका शोर-शराबा बातिल है, और गो वह दौलत जमा करने में मसरूफ़ रहे तो भी उसे मालूम नहीं कि बाद में किसके क़ब्ज़े में आएगी।”


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