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ایوب 12:6 - किताबे-मुक़द्दस

6 ग़ारतगरों के ख़ैमों में आरामो-सुकून है, और अल्लाह को तैश दिलानेवाले हिफ़ाज़त से रहते हैं, गो वह अल्लाह के हाथ में हैं।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

6 ڈاکوؤں کے خیموں کو کویٔی نہیں چھیڑتا، اَورجو لوگ خُدا کو غُصّہ دِلاتے ہیں وہ محفوظ رہتے ہیں، اُن کا معبُود گویا اُن کے ہاتھ میں ہے!

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کِتابِ مُقادّس

6 ڈاکُوؤں کے ڈیرے سلامت رہتے ہیں اور جو خُدا کو غُصّہ دِلاتے ہیں وہ محفُوظ رہتے ہیں۔ اُن ہی کے ہاتھ کو خُدا خُوب بھرتا ہے۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

6 غارت گروں کے خیموں میں آرام و سکون ہے، اور اللہ کو طیش دلانے والے حفاظت سے رہتے ہیں، گو وہ اللہ کے ہاتھ میں ہیں۔

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ایوب 12:6
17 حوالہ جات  

अगर कोई मुल्क बेदीन के हवाले किया जाए तो अल्लाह उसके क़ाज़ियों की आँखें बंद कर देता है। अगर यह उस की तरफ़ से नहीं तो फिर किसकी तरफ़ से है?


और जिस तरह शिकारी अपने पिंजरे को चिड़ियों से भर देता है उसी तरह इन शरीर लोगों के घर फ़रेब से भरे रहते हैं। अपनी चालों से वह अमीर, ताक़तवर


मैंने एक बेदीन और ज़ालिम आदमी को देखा जो फलते-फूलते देवदार के दरख़्त की तरह आसमान से बातें करने लगा।


दाऊद का ज़बूर। शरीरों के बाइस बेचैन न हो जा, बदकारों पर रश्क न कर।


ऐ रब, अपने हाथ से मुझे इनसे छुटकारा दे। उन्हें तो इस दुनिया में अपना हिस्सा मिल चुका है। क्योंकि तूने उनके पेट को अपने माल से भर दिया, बल्कि उनके बेटे भी सेर हो गए हैं और इतना बाक़ी है कि वह अपनी औलाद के लिए भी काफ़ी कुछ छोड़ जाएंगे।


लेकिन अल्लाह ही ने उनके घरों को भरपूर ख़ुशहाली से नवाज़ा, गो बेदीनों के बुरे मनसूबे उससे दूर ही दूर रहते हैं।


जो सुकून से ज़िंदगी गुज़ारता है वह मुसीबतज़दा को हक़ीर जानता है। वह कहता है, ‘आओ, हम उसे ठोकर मारें जिसके पाँव डगमगाने लगे हैं।’


ताहम तुम कहते हो कि जानवरों से पूछ ले तो वह तुझे सहीह बात सिखाएँगे। परिंदों से पता कर तो वह तुझे दुरुस्त जवाब देंगे।


अल्लाह उन्हें हिफ़ाज़त से आराम करने देता है, लेकिन उस की आँखें उनकी राहों की पहरादारी करती रहती हैं।


गो बेदीन घास की तरह फूट निकलते और बदकार सब फलते-फूलते हैं, लेकिन आख़िरकार वह हमेशा के लिए हलाक हो जाएंगे।


ऐ रब, तू हमेशा हक़ पर है, लिहाज़ा अदालत में तुझसे शिकायत करने का क्या फ़ायदा? ताहम मैं अपना मामला तुझे पेश करना चाहता हूँ। बेदीनों को इतनी कामयाबी क्यों हासिल होती है? ग़द्दार इतने सुकून से ज़िंदगी क्यों गुज़ारते हैं?


कि आख़िरकार तू अपना ग़ुस्सा अल्लाह पर उतारकर ऐसी बातें अपने मुँह से उगल दे?


क्योंकि शेख़ीबाज़ों को देखकर मैं बेचैन हो गया, इसलिए कि बेदीन इतने ख़ुशहाल हैं।


और मोटे-ताज़े हो गए हैं। उनके ग़लत कामों की हद नहीं रहती। वह इनसाफ़ करते ही नहीं। न वह यतीमों की मदद करते हैं ताकि उन्हें वह कुछ मिल जाए जो उनका हक़ है, न ग़रीबों के हुक़ूक़ क़ायम रखते हैं।”


फिर वह तेज़ हवा की तरह वहाँ से गुज़रकर आगे बढ़ जाते हैं। लेकिन वह क़ुसूरवार ठहरेंगे, क्योंकि उनकी अपनी ताक़त उनका ख़ुदा है।”


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