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یرمیاہ 9:1 - किताबे-मुक़द्दस

1 काश मेरा सर पानी का मंबा और मेरी आँखें आँसुओं का चश्मा हों ताकि मैं दिन-रात अपनी क़ौम के मक़तूलों पर आहो-ज़ारी कर सकूँ।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

1 کاش کہ میرا سَر پانی کا چشمہ اَور میری آنکھیں اشکوں کا فوّارہ ہوتیں! تاکہ میں اَپنی اُمّت کے مقتولوں کے لیٔے شب و روز روتا رہتا۔

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کِتابِ مُقادّس

1 کاش کہ میرا سر پانی ہوتا اور میری آنکھیں آنسُوؤں کا چشمہ تاکہ مَیں اپنی بِنتِ قَوم کے مقتُولوں پر شب و روز ماتم کرتا!

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

1 کاش میرا سر پانی کا منبع اور میری آنکھیں آنسوؤں کا چشمہ ہوں تاکہ مَیں دن رات اپنی قوم کے مقتولوں پر آہ و زاری کر سکوں۔

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یرمیاہ 9:1
20 حوالہ جات  

लेकिन अगर तुम न सुनो तो मैं तुम्हारे तकब्बुर को देखकर पोशीदगी में गिर्याओ-ज़ारी करूँगा। मैं ज़ार ज़ार रोऊँगा, मेरी आँखों से आँसू ज़ोर से टपकेंगे, क्योंकि दुश्मन रब के रेवड़ को पकड़कर जिलावतन कर देगा।


इसलिए मैंने कहा, “अपना मुँह मुझसे फेरकर मुझे ज़ार ज़ार रोने दो। मुझे तसल्ली देने पर बज़िद न रहो जबकि मेरी क़ौम तबाह हो रही है।”


मेरी आँखें रो रोकर थक गई हैं, शदीद दर्द ने मेरे दिल को बेहाल कर दिया है। क्योंकि मेरी क़ौम नेस्त हो गई है। शहर के चौकों में बच्चे पज़मुरदा हालत में फिर रहे हैं, शीरख़ार बच्चे ग़श खा रहे हैं। यह देखकर मेरा कलेजा फट रहा है।


ऐ मेरी क़ौम, टाट का लिबास पहनकर राख में लोट-पोट हो जा। यों मातम कर जिस तरह इकलौता बेटा मर गया हो। ज़ोर से वावैला कर, क्योंकि अचानक ही हलाकू हम पर छापा मारेगा।


ऐ यरमियाह, उन्हें यह कलाम सुना, ‘दिन-रात मेरे आँसू बह रहे हैं। वह रुक नहीं सकते, क्योंकि मेरी क़ौम, मेरी कुँवारी बेटी को गहरी चोट लग गई है, ऐसा ज़ख़म जो भर नहीं सकता।


इसलिए मैं याज़ेर के साथ मिलकर सिबमाह के अंगूरों के लिए आहो-ज़ारी कर रहा हूँ। ऐ हसबोन, ऐ इलियाली, तुम्हारी हालत देखकर मेरे बेहद आँसू बह रहे हैं। क्योंकि जब तुम्हारा फल पक गया और तुम्हारी फ़सल तैयार हुई तब जंग के नारे तुम्हारे इलाक़े में गूँज उठे।


मेरी आँखों से आँसुओं की नदियाँ बह रही हैं, क्योंकि लोग तेरी शरीअत के ताबे नहीं रहते।


दिन-रात मेरे आँसू मेरी ग़िज़ा रहे हैं। क्योंकि पूरा दिन मुझसे कहा जाता है, “तेरा ख़ुदा कहाँ है?”


हाय, मेरी तड़पती जान, मेरी तड़पती जान! मैं दर्द के मारे पेचो-ताब खा रहा हूँ। हाय, मेरा दिल! वह बेकाबू होकर धड़क रहा है। मैं ख़ामोश नहीं रह सकता, क्योंकि नरसिंगे की आवाज़ और जंग के नारे मेरे कान तक पहुँच गए हैं।


लाइलाज ग़म मुझ पर हावी हो गया, मेरा दिल निढाल हो गया है।


वह जल्द आकर हम पर आहो-ज़ारी करें ताकि हमारी आँखों से आँसू बह निकलें, हमारी पलकों से पानी ख़ूब टपकने लगे।


तब मैं दूर तक भागकर रेगिस्तान में बसेरा करता,


इसके बावुजूद उस की बेवफ़ा बहन यहूदाह पूरे दिल से नहीं बल्कि सिर्फ़ ज़ाहिरी तौर पर मेरे पास वापस आई।” यह रब का फ़रमान है।


“मैं तुझे कैसे मुआफ़ करूँ? तेरी औलाद ने मुझे तर्क करके उनकी क़सम खाई है जो ख़ुदा नहीं हैं। गो मैंने उनकी हर ज़रूरत पूरी की तो भी उन्होंने ज़िना किया, चकले के सामने उनकी लंबी क़तारें लगी रहीं।


तुझमें ऐसे लोग हैं जो रिश्वत के एवज़ क़त्ल करते हैं। सूद क़ाबिले-क़बूल है, और लोग एक दूसरे पर ज़ुल्म करके नाजायज़ नफ़ा कमाते हैं। रब क़ादिरे-मुतलक़ फ़रमाता है कि ऐ यरूशलम, तू मुझे सरासर भूल गई है!


सबके सब ज़िनाकार हैं। वह उस तपते तनूर की मानिंद हैं जो इतना गरम है कि नानबाई को उसे मज़ीद छेड़ने की ज़रूरत नहीं। अगर वह आटा गूँधकर उसके ख़मीर होने तक इंतज़ार भी करे तो भी तनूर इतना गरम रहता है कि रोटी पक जाएगी।


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