53 ख़ाह बाबल की ताक़त आसमान तक ऊँची क्यों न हो, ख़ाह वह अपने बुलंद क़िले को कितना मज़बूत क्यों न करे तो भी वह गिर जाएगा। मैं तबाह करनेवाले फ़ौजी उस पर चढ़ा लाऊँगा।” यह रब का फ़रमान है।
53 خواہ بابل کی طاقت آسمان تک اونچی کیوں نہ ہو، خواہ وہ اپنے بلند قلعے کو کتنا مضبوط کیوں نہ کرے توبھی وہ گر جائے گا۔ مَیں تباہ کرنے والے فوجی اُس پر چڑھا لاؤں گا۔“ یہ رب کا فرمان ہے۔
माज़ी में दूसरे तुझसे दहशत खाते थे, लेकिन इस बात ने और तेरे ग़ुरूर ने तुझे फ़रेब दिया है। बेशक तू चट्टानों की दराड़ों में बसेरा करता है, और पहाड़ी बुलंदियाँ तेरे क़ब्ज़े में हैं। लेकिन ख़ाह तू अपना घोंसला उक़ाब की-सी ऊँची जगहों पर क्यों न बनाए तो भी मैं तुझे वहाँ से उतारकर ख़ाक में मिला दूँगा।” यह रब का फ़रमान है।
फिर वह कहने लगे, “आओ, हम अपने लिए शहर बना लें जिसमें ऐसा बुर्ज हो जो आसमान तक पहुँच जाए फिर हमारा नाम क़ायम रहेगा और हम रूए-ज़मीन पर बिखर जाने से बच जाएंगे।”
रब फ़रमाता है, “ऐ बाबल, पहले तू मोहलक पहाड़ था जिसने तमाम दुनिया का सत्यानास कर दिया। लेकिन अब मैं तुझसे निपट लेता हूँ। मैं अपना हाथ तेरे ख़िलाफ़ बढ़ाकर तुझे ऊँची ऊँची चट्टानों से पटख़ दूँगा। आख़िरकार मलबे का झुलसा हुआ ढेर ही बाक़ी रहेगा।
अगर उनके दुश्मन उन्हें भगाकर जिलावतन करें तो मैं तलवार को उन्हें क़त्ल करने का हुक्म दूँगा। मैं ध्यान से उनको तकता रहूँगा, लेकिन बरकत देने के लिए नहीं बल्कि नुक़सान पहुँचाने के लिए।”
तब वह कहने लगा, “लो, यह अज़ीम शहर देखो जो मैंने अपनी रिहाइश के लिए तामीर किया है! यह सब कुछ मैंने अपनी ही ज़बरदस्त क़ुव्वत से बना लिया है ताकि मेरी शानो-शौकत मज़ीद बढ़ती जाए।”
रब फ़रमाता है, “बाबल की मोटी मोटी फ़सील को ख़ाक में मिलाया जाएगा, और उसके ऊँचे ऊँचे दरवाज़े राख हो जाएंगे। तब यह कहावत बाबल पर सादिक़ आएगी, ‘अक़वाम की मेहनत-मशक़्क़त बेफ़ायदा रही, जो कुछ उन्होंने बड़ी मुश्किल से बनाया वह नज़रे-आतिश हो गया है’।”
तीरों को तेज़ करो! अपना तरकश उनसे भर लो! रब मादी बादशाहों को हरकत में लाया है, क्योंकि वह बाबल को तबाह करने का इरादा रखता है। रब इंतक़ाम लेगा, अपने घर की तबाही का बदला लेगा।
चुनाँचे बाबल पर रब का फ़ैसला सुनो! मुल्के-बाबल के लिए उसके मनसूबे पर ध्यान दो! “दुश्मन पूरे रेवड़ को सबसे नन्हे बच्चों से लेकर बड़ों तक घसीटकर ले जाएगा। उसकी चरागाह वीरानो-सुनसान हो जाएगी।
क़ादिरे-मुतलक़ जो रब्बुल-अफ़वाज है फ़रमाता है, “मैं अपना असलिहाख़ाना खोलकर अपना ग़ज़ब नाज़िल करने के हथियार निकाल लाया हूँ, क्योंकि मुल्के-बाबल में उनकी अशद्द ज़रूरत है।
अब मैंने शिमाल से एक आदमी को जगा दिया है, और वह मेरा नाम लेकर मशरिक़ से आ रहा है। यह शख़्स हुक्मरानों को मिट्टी की तरह कुचल देता है, उन्हें गारे को नरम करनेवाले कुम्हार की तरह रौंद देता है।
क्योंकि तबाहकुन दुश्मन बाबल पर हमला करने आ रहा है। तब उसके सूरमाओं को पकड़ा जाएगा और उनकी कमानें टूट जाएँगी। क्योंकि रब इंतक़ाम का ख़ुदा है, वह हर इनसान को उसका मुनासिब अज्र देगा।”
ख़ाह वह ज़मीन में खोद खोदकर पाताल तक क्यों न पहुँचें तो भी मेरा हाथ उन्हें पकड़कर वहाँ से वापस लाएगा। और ख़ाह वह आसमान तक क्यों न चढ़ जाएँ तो भी मैं उन्हें वहाँ से उतारूँगा।