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یعقوب 2:8 - किताबे-मुक़द्दस

8 अल्लाह चाहता है कि आप कलामे-मुक़द्दस में मज़कूर शाही शरीअत पूरी करें, “अपने पड़ोसी से वैसी मुहब्बत रखना जैसी तू अपने आपसे रखता है।”

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

8 اگر تُم کِتاب مُقدّس کی اِس شاہی شَریعت کے مُطابق، ”اَپنے پڑوسی سے اَپنی مانِند مَحَبّت رکھو،“ اِس پر عَمل کرتے ہو تو، صحیح کر رہے ہو۔

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کِتابِ مُقادّس

8 تَو بھی اگر تُم اِس نوِشتہ کے مُطابِق کہ اپنے پڑوسی سے اپنی مانِند مُحبّت رکھ اُس بادشاہی شرِیعت کو پُورا کرتے ہو تو اچّھا کرتے ہو۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

8 اللہ چاہتا ہے کہ آپ کلامِ مُقدّس میں مذکور شاہی شریعت پوری کریں، ”اپنے پڑوسی سے ویسی محبت رکھنا جیسی تُو اپنے آپ سے رکھتا ہے۔“

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یعقوب 2:8
23 حوالہ جات  

इंतक़ाम न लेना। अपनी क़ौम के किसी शख़्स पर देर तक तेरा ग़ुस्सा न रहे बल्कि अपने पड़ोसी से वैसी मुहब्बत रखना जैसी तू अपने आपसे रखता है। मैं रब हूँ।


क्योंकि पूरी शरीअत एक ही हुक्म में समाई हुई है, “अपने पड़ोसी से वैसी मुहब्बत रखना जैसी तू अपने आपसे रखता है।”


चुनाँचे जो कुछ भी आप कहते और करते हैं याद रखें कि आज़ाद करनेवाली शरीअत आपकी अदालत करेगी।


और दूसरा हुक्म इसके बराबर यह है, ‘अपने पड़ोसी से वैसी मुहब्बत रखना जैसी तू अपने आपसे रखता है।’


बोझ उठाने में एक दूसरे की मदद करें, क्योंकि इस तरह आप मसीह की शरीअत पूरी करेंगे।


उसके साथ ऐसा सुलूक कर जैसा अपने हमवतनों के साथ करता है। जिस तरह तू अपने आपसे मुहब्बत रखता है उसी तरह उससे भी मुहब्बत रखना। याद रहे कि तुम ख़ुद मिसर में परदेसी थे। मैं रब तुम्हारा ख़ुदा हूँ।


लेकिन आप अल्लाह की चुनी हुई नसल हैं, आप आसमानी बादशाह के इमाम और उस की मख़सूसो-मुक़द्दस क़ौम हैं। आप उस की मिलकियत बन गए हैं ताकि अल्लाह के क़वी कामों का एलान करें, क्योंकि वह आपको तारीकी से अपनी हैरतअंगेज़ रौशनी में लाया है।


इसकी निसबत वह मुबारक है जो आज़ाद करनेवाली कामिल शरीअत में ग़ौर से नज़र डालकर उसमें क़ायम रहता है और उसे सुनने के बाद नहीं भूलता बल्कि उस पर अमल करता है।


लेकिन रब ने जवाब दिया, “क्या तू ग़ुस्से होने में हक़-बजानिब है?”


लेकिन फिर वह आपस में कहने लगे, “जो कुछ हम कर रहे हैं ठीक नहीं। आज ख़ुशी का दिन है, और हम यह ख़ुशख़बरी दूसरों तक नहीं पहुँचा रहे। अगर हम सुबह तक इंतज़ार करें तो क़ुसूरवार ठहरेंगे। आएँ, हम फ़ौरन वापस जाकर बादशाह के घराने को इत्तला दें।”


यह लिखने की ज़रूरत नहीं कि आप दूसरे ईमानदारों से मुहब्बत रखें। अल्लाह ने ख़ुद आपको एक दूसरे से मुहब्बत रखना सिखाया है।


तो भी अच्छा था कि आप मेरी मुसीबत में शरीक हुए।


उसके मालिक ने जवाब दिया, ‘शाबाश, मेरे अच्छे और वफ़ादार नौकर। तुम थोड़े में वफ़ादार रहे, इसलिए मैं तुम्हें बहुत कुछ पर मुक़र्रर करूँगा। अंदर आओ और अपने मालिक की ख़ुशी में शरीक हो जाओ।’


तब अल्लाह ने उससे पूछा, “क्या तू बेल के सबब से ग़ुस्से होने में हक़-बजानिब है?” यूनुस ने जवाब दिया, “जी हाँ, मैं मरने तक ग़ुस्से हूँ, और इसमें मैं हक़-बजानिब भी हूँ।”


लेकिन रब ने एतराज़ किया, ‘मैं ख़ुश हूँ कि तू मेरे नाम की ताज़ीम में घर तामीर करना चाहता है,


अच्छा, आप कहते हैं, “हम ईमान रखते हैं कि एक ही ख़ुदा है।” शाबाश, यह बिलकुल सहीह है। शयातीन भी यह ईमान रखते हैं, गो वह यह जानकर ख़ौफ़ के मारे थरथराते हैं।


उसके मालिक ने जवाब दिया, ‘शाबाश, मेरे अच्छे और वफ़ादार नौकर। तुम थोड़े में वफ़ादार रहे, इसलिए मैं तुम्हें बहुत कुछ पर मुक़र्रर करूँगा। अंदर आओ और अपने मालिक की ख़ुशी में शरीक हो जाओ।’


हर बात में दूसरों के साथ वही सुलूक करो जो तुम चाहते हो कि वह तुम्हारे साथ करें। क्योंकि यही शरीअत और नबियों की तालीमात का लुब्बे-लुबाब है।


जो किसी से मुहब्बत रखता है वह उससे ग़लत सुलूक नहीं करता। यों मुहब्बत शरीअत के तमाम तक़ाज़े पूरे करती है।


भाइयो, एक दूसरे पर तोहमत मत लगाना। जो अपने भाई पर तोहमत लगाता या उसे मुजरिम ठहराता है वह शरीअत पर तोहमत लगाता है और शरीअत को मुजरिम ठहराता है। और जब आप शरीअत पर तोहमत लगाते हैं तो आप उसके पैरोकार नहीं रहते बल्कि उसके मुंसिफ़ बन गए हैं।


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