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یعقوب 1:22 - किताबे-मुक़द्दस

22 कलामे-मुक़द्दस को न सिर्फ़ सुनें बल्कि उस पर अमल भी करें, वरना आप अपने आपको फ़रेब देंगे।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

22 صِرف کلام کے سُننے والے نہ بنو، بَلکہ کلام پر عَمل کرنے والے بنو۔ ورنہ تُم خُودی کو فریب دے رہے ہو۔

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کِتابِ مُقادّس

22 لیکن کلام پر عمل کرنے والے بنو نہ محض سُننے والے جو اپنے آپ کو دھوکا دیتے ہیں۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

22 کلامِ مُقدّس کو نہ صرف سنیں بلکہ اُس پر عمل بھی کریں، ورنہ آپ اپنے آپ کو فریب دیں گے۔

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یعقوب 1:22
31 حوالہ جات  

क्योंकि अल्लाह के नज़दीक यह काफ़ी नहीं कि हम शरीअत की बातें सुनें बल्कि वह हमें उस वक़्त ही रास्तबाज़ क़रार देता है जब शरीअत पर अमल भी करते हैं।


अगर तुम यह जानते हो तो इस पर अमल भी करो, फिर ही तुम मुबारक होगे।


चुनाँचे जो जानता है कि उसे क्या क्या नेक काम करना है, लेकिन फिर भी कुछ नहीं करता वह गुनाह करता है।


इससे हमें पता चलता है कि हमने उसे जान लिया है, जब हम उसके अहकाम पर अमल करते हैं।


लेकिन ईसा ने जवाब दिया, “बात यह नहीं है। हक़ीक़त में वह मुबारक हैं जो अल्लाह का कलाम सुनकर उस पर अमल करते हैं।”


क्योंकि जो भी मेरे आसमानी बाप की मरज़ी पूरी करता है वह मेरा भाई, मेरी बहन और मेरी माँ है।”


और जो कुछ भी आप करें ख़ाह ज़बानी हो या अमली वह ख़ुदावंद ईसा का नाम लेकर करें। हर काम में उसी के वसीले से ख़ुदा बाप का शुक्र करें।


ईसा फ़रमाता है, “देखो, मैं जल्द आऊँगा। मुबारक है वह जो इस किताब की पेशगोइयों के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारता है।”


प्यारे बच्चो, किसी को इजाज़त न दें कि वह आपको सहीह राह से हटा दे। जो रास्त काम करता है वह रास्तबाज़, हाँ मसीह जैसा रास्तबाज़ है।


क्या आप अपने आपको दीनदार समझते हैं? अगर आप अपनी ज़बान पर क़ाबू नहीं रख सकते तो आप अपने आपको फ़रेब देते हैं। फिर आपकी दीनदारी का इज़हार बेकार है।


फ़रेब मत खाना, अल्लाह इनसान को अपना मज़ाक़ उड़ाने नहीं देता। जो कुछ भी इनसान बोता है उसी की फ़सल वह काटेगा।


मेरे अज़ीज़, जो बुरा है उस की नक़ल मत करना बल्कि उस की करना जो अच्छा है। जो अच्छा काम करता है वह अल्लाह से है। लेकिन जो बुरा काम करता है उसने अल्लाह को नहीं देखा।


जो समझता है कि मैं कुछ हूँ अगरचे वह हक़ीक़त में कुछ भी नहीं है तो वह अपने आपको फ़रेब दे रहा है।


क्या आप नहीं जानते कि नाइनसाफ़ अल्लाह की बादशाही मीरास में नहीं पाएँगे? फ़रेब न खाएँ! हरामकार, बुतपरस्त, ज़िनाकार, हमजिंसपरस्त, लौंडेबाज़,


और उन्हें यह सिखाओ कि वह उन तमाम अहकाम के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारें जो मैंने तुम्हें दिए हैं। और देखो, मैं दुनिया के इख़्तिताम तक हमेशा तुम्हारे साथ हूँ।”


अगर हम गुनाह से पाक होने का दावा करें तो हम अपने आपको फ़रेब देते हैं और हममें सच्चाई नहीं है।


भाइयो, एक आख़िरी बात, जो कुछ सच्चा है, जो कुछ शरीफ़ है, जो कुछ रास्त है, जो कुछ मुक़द्दस है, जो कुछ पसंदीदा है, जो कुछ उम्दा है, ग़रज़, अगर कोई अख़लाक़ी या क़ाबिले-तारीफ़ बात हो तो उसका ख़याल रखें।


फ़रेब न खाएँ, बुरी सोहबत अच्छी आदतों को बिगाड़ देती है।


बड़े अज़दहे को निकाल दिया गया, उस क़दीम अज़दहे को जो इबलीस या शैतान कहलाता है और जो पूरी दुनिया को गुमराह कर देता है। उसे उसके फ़रिश्तों समेत ज़मीन पर फेंका गया।


यों जो नुक़सान उन्होंने दूसरों को पहुँचाया वही उन्हें ख़ुद भुगतना पड़ेगा। उनके नज़दीक लुत्फ़ उठाने से मुराद यह है कि दिन के वक़्त खुलकर ऐश करें। वह दाग़ और धब्बे हैं जो आपकी ज़ियाफ़तों में शरीक होकर अपनी दग़ाबाज़ियों की रंगरलियाँ मनाते हैं।


क्योंकि एक वक़्त था जब हम भी नासमझ, नाफ़रमान और सहीह राह से भटके हुए थे। उस वक़्त हम कई तरह की शहवतों और ग़लत ख़ाहिशों की ग़ुलामी में थे। हम बुरे कामों और हसद करने में ज़िंदगी गुज़ारते थे। दूसरे हमसे नफ़रत करते थे और हम भी उनसे नफ़रत करते थे।


तेरे दिल के ग़ुरूर ने तुझे फ़रेब दिया है। चूँकि तू चट्टानों की दराड़ों में और बुलंदियों पर रहता है इसलिए तू दिल में सोचता है, ‘कौन मुझे यहाँ से उतार देगा’?”


जो यों राख में मुलव्वस हो जाए उसने धोका खाया, उसके दिल ने उसे फ़रेब दिया है। वह अपनी जान छुड़ाकर नहीं मान सकता कि जो बुत मैं दहने हाथ में थामे हुए हूँ वह झूट है।


कोई अपने आपको फ़रेब न दे। अगर आपमें से कोई समझे कि वह इस दुनिया की नज़र में दानिशमंद है तो फिर ज़रूरी है कि वह बेवुक़ूफ़ बने ताकि वाक़ई दानिशमंद हो जाए।


साथ साथ शरीर और धोकेबाज़ लोग अपने ग़लत कामों में तरक़्क़ी करते जाएंगे। वह दूसरों को ग़लत राह पर ले जाएंगे और उन्हें ख़ुद भी ग़लत राह पर लाया जाएगा।


तब रब ने मुझे हुक्म दिया कि यहूदाह के शहरों और यरूशलम की गलियों में फिरकर यह तमाम बातें सुना दे। एलान कर, “अहद की शरायत पर ध्यान देकर उन पर अमल करो।


भाइयो, एक दूसरे पर तोहमत मत लगाना। जो अपने भाई पर तोहमत लगाता या उसे मुजरिम ठहराता है वह शरीअत पर तोहमत लगाता है और शरीअत को मुजरिम ठहराता है। और जब आप शरीअत पर तोहमत लगाते हैं तो आप उसके पैरोकार नहीं रहते बल्कि उसके मुंसिफ़ बन गए हैं।


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