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یسعیاہ 42:21 - किताबे-मुक़द्दस

21 रब ने अपनी रास्ती की ख़ातिर अपनी शरीअत की अज़मत और जलाल को बढ़ाया है, क्योंकि यह उस की मरज़ी थी।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

21 یَاہوِہ کو پسند آیا کہ اَپنی راستی کی خاطِر وہ اَپنے آئین کو عظیم اَور جلالی بنائے۔

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کِتابِ مُقادّس

21 خُداوند کو پسند آیا کہ اپنی صداقت کی خاطِر شرِیعت کو بزُرگی دے اور اُسے قابِلِ تعظِیم بنائے۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

21 رب نے اپنی راستی کی خاطر اپنی شریعت کی عظمت اور جلال کو بڑھایا ہے، کیونکہ یہ اُس کی مرضی تھی۔

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یسعیاہ 42:21
32 حوالہ جات  

फिर क्या हम शरीअत को ईमान से मनसूख़ करते हैं? हरगिज़ नहीं, बल्कि हम शरीअत को क़ायम रखते हैं।


ख़ुदावंद फ़रमाता है कि जो नया अहद मैं उन दिनों के बाद उनसे बाँधूँगा उसके तहत मैं अपनी शरीअत उनके ज़हनों में डालकर उनके दिलों पर कंदा करूँगा। तब मैं ही उनका ख़ुदा हूँगा, और वह मेरी क़ौम होंगे।


लेकिन शरीअत ख़ुद मुक़द्दस है और इसके अहकाम मुक़द्दस, रास्त और अच्छे हैं।


ईसा ने जवाब दिया, “अब होने ही दे, क्योंकि मुनासिब है कि हम यह करते हुए अल्लाह की रास्त मरज़ी पूरी करें।” इस पर यहया मान गया।


और जब तक उसने दुनिया में इनसाफ़ क़ायम न कर लिया हो तब तक न उस की बत्ती बुझेगी, न उसे कुचला जाएगा। जज़ीरे उस की हिदायत से उम्मीद रखेंगे।”


ऐ अल्लाह, तेरी रास्ती आसमान से बातें करती है। ऐ अल्लाह, तुझ जैसा कौन है जिसने इतने अज़ीम काम किए हैं?


ऐ मेरे ख़ुदा, मैं ख़ुशी से तेरी मरज़ी पूरी करता हूँ, तेरी शरीअत मेरे दिल में टिक गई है।”


और उसमें पाया जाऊँ। लेकिन मैं इस नौबत तक अपनी उस रास्तबाज़ी के ज़रीए नहीं पहुँच सकता जो शरीअत के ताबे रहने से हासिल होती है। इसके लिए वह रास्तबाज़ी ज़रूरी है जो मसीह पर ईमान लाने से मिलती है, जो अल्लाह की तरफ़ से है और जो ईमान पर मबनी होती है।


तो क्या इसका मतलब यह है कि शरीअत अल्लाह के वादों के ख़िलाफ़ है? हरगिज़ नहीं! अगर इनसान को ऐसी शरीअत मिली होती जो ज़िंदगी दिला सकती तो फिर सब उस की पैरवी करने से रास्तबाज़ ठहरते।


लेकिन मसीह ने हमारा फ़िद्या देकर हमें शरीअत की लानत से आज़ाद कर दिया है। यह उसने इस तरह किया कि वह हमारी ख़ातिर ख़ुद लानत बना। क्योंकि कलामे-मुक़द्दस में लिखा है, “जिसे भी दरख़्त से लटकाया गया है उस पर अल्लाह की लानत है।”


क्योंकि मसीह में शरीअत का मक़सद पूरा हो गया, हाँ वह अंजाम तक पहुँच गई है। चुनाँचे जो भी मसीह पर ईमान रखता है वही रास्तबाज़ ठहरता है।


जब तुम मेरे अहकाम के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारते हो तो तुम मेरी मुहब्बत में क़ायम रहते हो। मैं भी इसी तरह अपने बाप के अहकाम के मुताबिक़ चलता हूँ और यों उस की मुहब्बत में क़ायम रहता हूँ।


और जिसने मुझे भेजा है वह मेरे साथ है। उसने मुझे अकेला नहीं छोड़ा, क्योंकि मैं हर वक़्त वही कुछ करता हूँ जो उसे पसंद आता है।”


वह अभी बात कर ही रहा था कि एक चमकदार बादल आकर उन पर छा गया और बादल में से एक आवाज़ सुनाई दी, “यह मेरा प्यारा फ़रज़ंद है, जिससे मैं ख़ुश हूँ। इसकी सुनो।”


साथ साथ आसमान से एक आवाज़ सुनाई दी, “यह मेरा प्यारा फ़रज़ंद है, इससे मैं ख़ुश हूँ।”


मैं रब क़ादिरे-मुतलक़ के अज़ीम काम सुनाते हुए आऊँगा, मैं तेरी, सिर्फ़ तेरी ही रास्ती याद करूँगा।


मैं तेरी मुक़द्दस सुकूनतगाह की तरफ़ रुख़ करके सिजदा करूँगा, तेरी मेहरबानी और वफ़ादारी के बाइस तेरा शुक्र करूँगा। क्योंकि तूने अपने नाम और कलाम को तमाम चीज़ों पर सरफ़राज़ किया है।


“ऐ मेरी क़ौम, मुझ पर ध्यान दे! ऐ मेरी उम्मत, मुझ पर ग़ौर कर! क्योंकि हिदायत मुझसे सादिर होगी, और मेरा इनसाफ़ क़ौमों की रौशनी बनेगा।


इन्हें मानो और इन पर अमल करो तो दूसरी क़ौमों को तुम्हारी दानिशमंदी और समझ नज़र आएगी। फिर वह इन तमाम अहकाम के बारे में सुनकर कहेंगी, “वाह, यह अज़ीम क़ौम कैसी दानिशमंद और समझदार है!”


कौन-सी अज़ीम क़ौम के पास ऐसे मुंसिफ़ाना अहकाम और हिदायात हैं जैसे मैं आज तुम्हें पूरी शरीअत सुनाकर पेश कर रहा हूँ?


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