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یسعیاہ 16:10 - किताबे-मुक़द्दस

10 अब ख़ुशीओ-शादमानी बाग़ों से ग़ायब हो गई है, अंगूर के बाग़ों में गीत और ख़ुशी के नारे बंद हो गए हैं। कोई नहीं रहा जो हौज़ों में अंगूर को रौंदकर रस निकाले, क्योंकि मैंने फ़सल की ख़ुशियाँ ख़त्म कर दी हैं।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

10 میوے کے باغوں سے خُوشی اَور شادمانی چھین لی گئی؛ نہ تاکستان میں کویٔی گاتا یا للکارتا ہے؛ نہ ہی کویٔی حوضوں میں انگور پامال کرکے اُن کا رس نکالتا ہے، کیونکہ مَیں نے سَب شور و غُل بند کر دیا ہے۔

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کِتابِ مُقادّس

10 اور شادمانی چِھین لی گئی اور ہرے بھرے کھیتوں کی خُوشی جاتی رہی اور تاکِستانوں میں گانا اور للکارنا بند ہو جائے گا۔ پامال کرنے والے انگُوروں کو پِھر حَوضوں میں پامال نہ کریں گے۔ مَیں نے انگُور کی فصل کے غوغا کو مَوقُوف کر دِیا۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

10 اب خوشی و شادمانی باغوں سے غائب ہو گئی ہے، انگور کے باغوں میں گیت اور خوشی کے نعرے بند ہو گئے ہیں۔ کوئی نہیں رہا جو حوضوں میں انگور کو روند کر رس نکالے، کیونکہ مَیں نے فصل کی خوشیاں ختم کر دی ہیں۔

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یسعیاہ 16:10
13 حوالہ جات  

अब ख़ुशीओ-शादमानी मोआब के बाग़ों और खेतों से जाती रही है। मैंने अंगूर का रस निकालने का काम रोक दिया है। कोई ख़ुशी के नारे लगा लगाकर अंगूर को पाँवों तले नहीं रौंदता। शोर तो मच रहा है, लेकिन ख़ुशी के नारे बुलंद नहीं हो रहे बल्कि जंग के।


अंगूर के तमाम बाग़ों में वावैला मचेगा, क्योंकि मैं ख़ुद तुम्हारे दरमियान से गुज़रूँगा।” यह रब का फ़रमान है।


तुम ग़रीबों को कुचलकर उनके अनाज पर हद से ज़्यादा टैक्स लगाते हो। इसलिए गो तुमने तराशे हुए पत्थरों से शानदार घर बनाए हैं तो भी उनमें नहीं रहोगे, गो तुमने अंगूर के फलते-फूलते बाग़ लगाए हैं तो भी उनकी मै से महज़ूज़ नहीं होगे।


अंगूर की फ़सल पक गई थी। लोग शहर से निकले और अपने बाग़ों में अंगूर तोड़कर उनसे रस निकालने लगे। फिर उन्होंने अपने देवता के मंदिर में जशन मनाया। जब वह ख़ूब खा-पी रहे थे तो अबीमलिक पर लानत करने लगे।


ऐसे लोगों का माल लूट लिया जाएगा, उनके घर मिसमार हो जाएंगे। वह नए मकान तामीर तो करेंगे लेकिन उनमें रहेंगे नहीं, अंगूर के बाग़ लगाएँगे लेकिन उनकी मै पिएँगे नहीं।”


एक साल और चंद एक दिनों के बाद तुम जो अपने आपको महफ़ूज़ समझती हो काँप उठोगी। क्योंकि अंगूर की फ़सल ज़ाया हो जाएगी, और फल की फ़सल पकने नहीं पाएगी।


ज़ैतून के जो दरख़्त बेदीनों ने सफ़-दर-सफ़ लगाए थे उनके दरमियान ग़रीब ज़ैतून का तेल निकालते हैं। प्यासी हालत में वह शरीरों के हौज़ों में अंगूर को पाँवों तले कुचलकर उसका रस निकालते हैं।


गलियों में लोग गिर्याओ-ज़ारी कर रहे हैं कि मै ख़त्म है। हर ख़ुशी दूर हो गई है, हर शादमानी ज़मीन से ग़ायब है।


अंगूर की बेल सूख गई, अंजीर का दरख़्त मुरझा गया है। अनार, खजूर, सेब बल्कि फल लानेवाले तमाम दरख़्त पज़मुरदा हो गए हैं। इनसान की तमाम ख़ुशी ख़ाक में मिलाई गई है।


रब फ़रमाता है, “ऐसे दिन आनेवाले हैं जब फ़सलें बहुत ही ज़्यादा होंगी। फ़सल की कटाई के लिए इतना वक़्त दरकार होगा कि आख़िरकार हल चलानेवाला कटाई करनेवालों के पीछे पीछे खेत को अगली फ़सल के लिए तैयार करता जाएगा। अंगूर की फ़सल भी ऐसी ही होगी। अंगूर की कसरत के बाइस उनसे रस निकालने के लिए इतना वक़्त लगेगा कि आख़िरकार बीज बोनेवाला साथ साथ बीज बोने का काम शुरू करेगा। कसरत के बाइस नई मै पहाड़ों से टपकेगी और तमाम पहाड़ियों से बहेगी।


ऐ मुल्क के बाशिंदे, तेरी फ़ना पहुँच रही है। अब वह वक़्त क़रीब ही है, वह दिन जब तेरे पहाड़ों पर ख़ुशी के नारों के बजाए अफ़रा-तफ़री का शोर मचेगा।


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