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یسعیاہ 13:21 - किताबे-मुक़द्दस

21 सिर्फ़ रेगिस्तान के जानवर खंडरात में जा बसेंगे। शहर के घर उनकी आवाज़ों से गूँज उठेंगे, उक़ाबी उल्लू वहाँ ठहरेंगे, और बकरानुमा जिन उसमें रक़्स करेंगे।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

21 لیکن بیابان کے جنگلی جانور وہاں لیٹیں گے، اَور گیدڑ اُن کے محلوں میں گھُس جایٔیں گے؛ اُلّو وہاں بسیرا کریں گے، اَور جنگلی بکریاں وہاں کُودتی پھاندتی رہیں گی۔

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کِتابِ مُقادّس

21 پر بَن کے جنگلی درِندے وہاں بَیٹھیں گے اور اُن کے گھروں میں اُلّو بھرے ہوں گے۔ وہاں شُتر مُرغ بسیں گے اور چھگمانس وہاں ناچیں گے۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

21 صرف ریگستان کے جانور کھنڈرات میں جا بسیں گے۔ شہر کے گھر اُن کی آوازوں سے گونج اُٹھیں گے، عقابی اُلّو وہاں ٹھہریں گے، اور بکرانما جِنّ اُس میں رقص کریں گے۔

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یسعیاہ 13:21
10 حوالہ جات  

उसने ऊँची आवाज़ से पुकारकर कहा, “वह गिर गई है! हाँ, अज़ीम कसबी बाबल गिर गई है! अब वह शयातीन का घर और हर बदरूह का बसेरा बन गई है, हर नापाक और घिनौने परिंदे का बसेरा।


मुल्के-बाबल पर नज़र डालो। यह क़ौम तो नेस्तो-नाबूद हो गई, उसका मुल्क जंगली जानवरों का घर बन गया है। असूरियों ने बुर्ज बनाकर उसे घेर लिया और उसके क़िलों को ढा दिया। मलबे का ढेर ही रह गया है।


महल वीरान होगा, रौनक़दार शहर सुनसान होगा। क़िला और बुर्ज हमेशा के लिए ग़ार बनेंगे जहाँ जंगली गधे अपने दिल बहलाएँगे और भेड़-बकरियाँ चरेंगी।


आख़िर में गलियों में सिर्फ़ रेगिस्तान के जानवर और जंगली कुत्ते फिरेंगे, वहाँ उक़ाबी उल्लू बसेंगे। वह हमेशा तक इनसान की बस्तियों से महरूम और नसल-दर-नसल ग़ैरआबाद रहेगा।”


इसलिए मैं आहो-ज़ारी करूँगा, नंगे पाँव और बरहना फिरूँगा, गीदड़ों की तरह वावैला करूँगा, उक़ाबी उल्लू की तरह आहें भरूँगा।


शहर के बीच में रेवड़ और दीगर कई क़िस्म के जानवर आराम करेंगे। दश्ती उल्लू और ख़ारपुश्त उसके टूटे-फूटे सतूनों में बसेरा करेंगे, और जंगली जानवरों की चीख़ें खिड़कियों में से गूँजेंगी। घरों की दहलीज़ें मलबे के ढेरों में छुपी रहेंगी जबकि उनकी देवदार की लकड़ी हर गुज़रनेवाले को दिखाई देगी।


उक़ाबी उल्लू, छोटे कानवाला उल्लू, बड़े कानवाला उल्लू, हर क़िस्म का बाज़,


बाबल ख़ारपुश्त का मसकन और दलदल का इलाक़ा बन जाएगा, क्योंकि मैं ख़ुद उसमें तबाही का झाड़ू फेर दूँगा।” यह रब्बुल-अफ़वाज का फ़रमान है।


तूने शहर को मलबे का ढेर बनाकर हमलों से महफ़ूज़ आबादी को खंडरात में तबदील कर दिया। ग़ैरमुल्कियों का क़िलाबंद महल यों ख़ाक में मिलाया गया कि आइंदा कभी शहर नहीं कहलाएगा, कभी अज़ सरे-नौ तामीर नहीं होगा।


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