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ہوسیع 4:3 - किताबे-मुक़द्दस

3 इसी लिए मुल्क में काल है और उसके तमाम बाशिंदे पज़मुरदा हो गए हैं। जंगली जानवर, परिंदे और मछलियाँ भी फ़ना हो रही हैं।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

3 اِس لیٔے مُلک کی زمین سُوکھ جاتی ہے، اَور اُس کے باشِندے ناتواں ہو رہے ہیں؛ اَور زمین کے جانور اَور ہَوا کے پرندے اَور سمُندر کی مچھلیاں مَر رہی ہیں۔

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کِتابِ مُقادّس

3 اِس لِئے مُلک ماتم کرے گا اور اُس کے تمام باشِندے جنگلی جانوروں اور ہوا کے پرِندوں سمیت ناتواں ہو جائیں گے بلکہ سمُندر کی مچھلیاں بھی غائِب ہو جائیں گی۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

3 اِسی لئے ملک میں کال ہے اور اُس کے تمام باشندے پژمُردہ ہو گئے ہیں۔ جنگلی جانور، پرندے اور مچھلیاں بھی فنا ہو رہی ہیں۔

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ہوسیع 4:3
17 حوالہ جات  

इनसानो-हैवान, परिंदों, मछलियों, ठोकर खिलानेवाली चीज़ों और बेदीनों को। तब ज़मीन पर इनसान का नामो-निशान तक नहीं रहेगा।” यह रब का फ़रमान है।


वह समुंदर को डाँटता तो वह सूख जाता, उसके हुक्म पर तमाम दरिया ख़ुश्क हो जाते हैं। तब बसन और करमिल की शादाब हरियाली मुरझा जाती और लुबनान के फूल कुमला जाते हैं।


चुनाँचे रब जो लशकरों का ख़ुदा और हमारा आक़ा है फ़रमाता है, “तमाम चौकों में आहो-बुका होगी, तमाम गलियों में लोग ‘हाय, हाय’ करेंगे। खेतीबाड़ी करनेवालों को भी बुलाया जाएगा ताकि पेशावराना तौर पर सोग मनानेवालों के साथ गिर्याओ-ज़ारी करें।


सब मेरे सामने थरथरा उठेंगे, ख़ाह मछलियाँ हों या परिंदे, ख़ाह ज़मीन पर चलने और रेंगनेवाले जानवर हों या इनसान। पहाड़ उनकी गुज़रगाहों समेत ख़ाक में मिलाए जाएंगे, और हर दीवार गिर जाएगी।


मुल्क कब तक काल की गिरिफ़्त में रहेगा? खेतों में हरियाली कब तक मुरझाई हुई नज़र आएगी? बाशिंदों की बुराई के बाइस जानवर और परिंदे ग़ायब हो गए हैं। क्योंकि लोग कहते हैं, “अल्लाह को नहीं मालूम कि हमारे साथ क्या हो जाएगा।”


कहीं कोई शख़्स नज़र न आया, तमाम परिंदे भी उड़कर जा चुके थे।


उन्हीं की वजह से ज़मीन लरज़ उठेगी और उसके तमाम बाशिंदे मातम करेंगे। जिस तरह मिसर में दरियाए-नील बरसात के मौसम में सैलाबी सूरत इख़्तियार कर लेता है उसी तरह पूरी ज़मीन उठेगी। वह नील की तरह जोश में आएगी, फिर दुबारा उतर जाएगी।”


आमूस बोला, “रब कोहे-सिय्यून पर से दहाड़ता है, उस की गरजती आवाज़ यरूशलम से सुनाई देती है। तब गल्लाबानों की चरागाहें सूख जाती हैं और करमिल की चोटी पर जंगल मुरझा जाता है।”


ज़मीन ख़ुश्क होकर मुरझा गई है, लुबनान कुमलाकर शरमिंदा हो गया है। शारून का मैदान बेशजर बयाबान-सा बन गया है, बसन और करमिल अपने पत्ते झाड़ रहे हैं।


मैं पहाड़ों के बारे में आहो-ज़ारी करूँगा, बयाबान की चरागाहों पर मातम का गीत गाऊँगा। क्योंकि वह यों तबाह हो गए हैं कि न कोई उनमें से गुज़रता, न रेवड़ों की आवाज़ें उनमें सुनाई देती हैं। परिंदे और जानवर सब भागकर चले गए हैं।


यह मुल्क ज़िनाकारों से भरा हुआ है, इसलिए उस पर अल्लाह की लानत है। ज़मीन झुलस गई है, बयाबान की चरागाहों की हरियाली मुरझा गई है। नबी ग़लत राह पर दौड़ रहे हैं, और जिसमें वह ताक़तवर हैं वह ठीक नहीं।


हाय, मवेशी कैसी दर्दनाक आवाज़ निकाल रहे हैं! गाय-बैल परेशानी से इधर-उधर फिर रहे हैं, क्योंकि कहीं भी चरागाह नहीं मिलती। भेड़-बकरियों को भी तकलीफ़ है।


रब्बुल-अफ़वाज फ़रमाता है, ‘मैं यह भेजूँगा तो चोर और मेरे नाम की झूटी क़सम खानेवाले के घर में लानत दाख़िल होगी और उसके बीच में रहकर उसे लकड़ी और पत्थर समेत तबाह कर देगी’।”


रब फ़रमाता है, “क्या मुझे उन्हें इसकी सज़ा नहीं देनी चाहिए? क्या मुझे ऐसी क़ौम से बदला नहीं लेना चाहिए?”


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