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عبرانیوں 7:16 - किताबे-मुक़द्दस

16 वह लावी के क़बीले का फ़रद होने से इमाम न बना जिस तरह शरीअत तक़ाज़ा करती थी, बल्कि वह लाफ़ानी ज़िंदगी की क़ुव्वत ही से इमाम बन गया।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

16 جو اَپنے جِسمانی اَحکام کی شَریعت کی بنا پر نہیں بَلکہ غَیر فانی زندگی کی قُوّت کے مُطابق کاہِنؔ مُقرّر ہُوا۔

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کِتابِ مُقادّس

16 جو جِسمانی احکام کی شرِیعت کے مُوافِق نہیں بلکہ غَیرفانی زِندگی کی قُوّت کے مُطابِق مُقرّر ہو تو ہمارا دعویٰ اَور بھی صاف ظاہِر ہو گیا۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

16 وہ لاوی کے قبیلے کا فرد ہونے سے امام نہ بنا جس طرح شریعت تقاضا کرتی تھی، بلکہ وہ لافانی زندگی کی قوت ہی سے امام بن گیا۔

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عبرانیوں 7:16
15 حوالہ جات  

आप तो मसीह के साथ मरकर दुनिया की कुव्वतों से आज़ाद हो गए हैं। अगर ऐसा है तो आप ज़िंदगी ऐसे क्यों गुज़ारते हैं जैसे कि आप अभी तक इस दुनिया की मिलकियत हैं? आप क्यों इसके अहकाम के ताबे रहते हैं?


मैं वह हूँ जो ज़िंदा है। मैं तो मर गया था लेकिन अब देख, मैं अबद तक ज़िंदा हूँ। और मौत और पाताल की कुंजियाँ मेरे हाथ में हैं।


मूसवी शरीअत आनेवाली अच्छी और असली चीज़ों की सिर्फ़ नक़ली सूरत और साया है। यह उन चीज़ों की असली शक्ल नहीं है। इसलिए यह उन्हें कभी भी कामिल नहीं कर सकती जो साल बसाल और बार बार अल्लाह के हुज़ूर आकर वही क़ुरबानियाँ पेश करते रहते हैं।


मूसवी शरीअत ऐसे लोगों को इमामे-आज़म मुक़र्रर करती है जो कमज़ोर हैं। लेकिन शरीअत के बाद अल्लाह की क़सम फ़रज़ंद को इमामे-आज़म मुक़र्रर करती है, और यह फ़रज़ंद अबद तक कामिल है।


न उसका बाप या माँ है, न कोई नसबनामा। उस की ज़िंदगी का न तो आग़ाज़ है, न इख़्तिताम। अल्लाह के फ़रज़ंद की तरह वह अबद तक इमाम रहता है।


हमारे क़र्ज़ की जो रसीद अपनी शरायत की बिना पर हमारे ख़िलाफ़ थी उसे उसने मनसूख़ कर दिया। हाँ, उसने हमसे दूर करके उसे कीलों से सलीब पर जड़ दिया।


लेकिन अब आप अल्लाह को जानते हैं, बल्कि अब अल्लाह ने आपको जान लिया है। तो फिर आप मुड़कर इन कमज़ोर और घटिया उसूलों की तरफ़ क्यों वापस जाने लगे हैं? क्या आप दुबारा इनकी ग़ुलामी में आना चाहते हैं?


इसी तरह हम भी जब बच्चे थे दुनिया की कुव्वतों के ग़ुलाम थे।


लेकिन ईसा एक क़सम के ज़रीए इमाम बन गया जब अल्लाह ने फ़रमाया, “रब ने क़सम खाई है और इससे पछताएगा नहीं, ‘तू अबद तक इमाम है’।”


क्योंकि कलामे-मुक़द्दस फ़रमाता है, “तू अबद तक इमाम है, ऐसा इमाम जैसा मलिके-सिद्क़ था।”


हम जानते हैं कि शरीअत रूहानी है। लेकिन मेरी फ़ितरत इनसानी है, मुझे गुनाह की ग़ुलामी में बेचा गया है।


मामला मज़ीद साफ़ हो जाता है। एक फ़रक़ इमाम ज़ाहिर हुआ है जो मलिके-सिद्क़ जैसा है।


अगर इन चीज़ों का यह असर था तो फिर मसीह के ख़ून का क्या ज़बरदस्त असर होगा! अज़ली रूह के ज़रीए उसने अपने आपको बेदाग़ क़ुरबानी के तौर पर पेश किया। यों उसका ख़ून हमारे ज़मीर को मौत तक पहुँचानेवाले कामों से पाक-साफ़ करता है ताकि हम ज़िंदा ख़ुदा की ख़िदमत कर सकें।


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