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عبرانیوں 10:1 - किताबे-मुक़द्दस

1 मूसवी शरीअत आनेवाली अच्छी और असली चीज़ों की सिर्फ़ नक़ली सूरत और साया है। यह उन चीज़ों की असली शक्ल नहीं है। इसलिए यह उन्हें कभी भी कामिल नहीं कर सकती जो साल बसाल और बार बार अल्लाह के हुज़ूर आकर वही क़ुरबानियाँ पेश करते रहते हैं।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

1 مُوسوی شَریعت آئندہ کی اَچھّی چیزوں کا محض ایک عکس ہے نہ کہ اُن کی اصلی صورت۔ اِس لیٔے ایک ہی قِسم کی قُربانیاں جو سال بسال پیش کی جاتی ہیں وہ خُدا کے پاس آنے والوں کو ہرگز کامِل نہیں کر سکتیں۔

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کِتابِ مُقادّس

1 کیونکہ شرِیعت جِس میں آیندہ کی اچھّی چِیزوں کا عکس ہے اور اُن چِیزوں کی اصلی صُورت نہیں اُن ایک ہی طرح کی قُربانِیوں سے جو ہر سال بِلاناغہ گُذرانی جاتی ہیں پاس آنے والوں کو ہرگِز کامِل نہیں کر سکتی۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

1 موسوی شریعت آنے والی اچھی اور اصلی چیزوں کی صرف نقلی صورت اور سایہ ہے۔ یہ اُن چیزوں کی اصلی شکل نہیں ہے۔ اِس لئے یہ اُنہیں کبھی بھی کامل نہیں کر سکتی جو سال بہ سال اور بار بار اللہ کے حضور آ کر وہی قربانیاں پیش کرتے رہتے ہیں۔

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عبرانیوں 10:1
13 حوالہ جات  

जिस मक़दिस में वह ख़िदमत करते हैं वह उस मक़दिस की सिर्फ़ नक़ली सूरत और साया है जो आसमान पर है। यही वजह है कि अल्लाह ने मूसा को मुलाक़ात का ख़ैमा बनाने से पहले आगाह करके यह कहा, “ग़ौर कर कि सब कुछ ऐन उस नमूने के मुताबिक़ बनाया जाए जो मैं तुझे यहाँ पहाड़ पर दिखाता हूँ।”


लेकिन अब मसीह आ चुका है, उन अच्छी चीज़ों का इमामे-आज़म जो अब हासिल हुई हैं। जिस ख़ैमे में वह ख़िदमत करता है वह कहीं ज़्यादा अज़ीम और कामिल है। यह ख़ैमा इनसानी हाथों से नहीं बनाया गया यानी यह इस कायनात का हिस्सा नहीं है।


यह चीज़ें तो सिर्फ़ आनेवाली हक़ीक़त का साया ही हैं जबकि यह हक़ीक़त ख़ुद मसीह में पाई जाती है।


ग़रज़, लाज़िम था कि यह चीज़ें जो आसमान की असली चीज़ों की नक़ली सूरतें हैं पाक-साफ़ की जाएँ। लेकिन आसमानी चीज़ें ख़ुद ऐसी क़ुरबानियों का मुतालबा करती हैं जो इनसे कहीं बेहतर हों।


दुनिया का इमामे-आज़म तो सालाना किसी और (यानी जानवर) का ख़ून लेकर मुक़द्दसतरीन कमरे में दाख़िल होता है। लेकिन मसीह इसलिए आसमान में दाख़िल न हुआ कि वह अपने आपको बार बार क़ुरबानी के तौर पर पेश करे।


मूसवी शरीअत हमारी पुरानी फ़ितरत की कमज़ोर हालत की वजह से हमें न बचा सकी। इसलिए अल्लाह ने वह कुछ किया जो शरीअत के बस में न था। उसने अपना फ़रज़ंद भेज दिया ताकि वह गुनाहगार का-सा जिस्म इख़्तियार करके हमारे गुनाहों का कफ़्फ़ारा दे। इस तरह अल्लाह ने पुरानी फ़ितरत में मौजूद गुनाह को मुजरिम ठहराया


अगर लावी की कहानत (जिस पर शरीअत मबनी थी) कामिलियत पैदा कर सकती तो फिर एक और क़िस्म के इमाम की क्या ज़रूरत होती, उस की जो हारून जैसा न हो बल्कि मलिके-सिद्क़ जैसा?


इसलिए आएँ, हम ख़ुलूसदिली और ईमान के पूरे एतमाद के साथ अल्लाह के हुज़ूर आएँ। क्योंकि हमारे दिलों पर मसीह का ख़ून छिड़का गया है ताकि हमारे मुजरिम ज़मीर साफ़ हो जाएँ। नीज़, हमारे बदनों को पाक-साफ़ पानी से धोया गया है।


उसने भस्म होनेवाली क़ुरबानी भी क़वायद के मुताबिक़ चढ़ाई।


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