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حبقوق 2:20 - किताबे-मुक़द्दस

20 लेकिन रब अपने मुक़द्दस घर में मौजूद है। उसके हुज़ूर पूरी दुनिया ख़ामोश रहे।”

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

20 مگر یَاہوِہ اَپنی مُقدّس میں ہے؛ تمام زمین اُس کے سامنے خاموش رہے۔

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کِتابِ مُقادّس

20 مگر خُداوند اپنی مُقدّس ہَیکل میں ہے۔ ساری زمِین اُس کے حضُور خاموش رہے۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

20 لیکن رب اپنے مُقدّس گھر میں موجود ہے۔ اُس کے حضور پوری دنیا خاموش رہے۔“

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حبقوق 2:20
17 حوالہ جات  

तमाम इनसान रब के सामने ख़ामोश हो जाएँ, क्योंकि वह उठकर अपनी मुक़द्दस सुकूनतगाह से निकल आया है।


अब रब क़ादिरे-मुतलक़ के सामने ख़ामोश हो जाओ, क्योंकि रब का दिन क़रीब ही है। रब ने इसके लिए ज़बह की क़ुरबानी तैयार करके अपने मेहमानों को मख़सूसो-मुक़द्दस कर दिया है।”


वह फ़रमाता है, “अपनी हरकतों से बाज़ आओ! जान लो कि मैं ख़ुदा हूँ। मैं अक़वाम में सरबुलंद और दुनिया में सरफ़राज़ हूँगा।”


लेकिन रब अपनी मुक़द्दस सुकूनतगाह में है, रब का तख़्त आसमान पर है। वहाँ से वह देखता है, वहाँ से उस की आँखें आदमज़ादों को परखती हैं।


जिस साल उज़्ज़ियाह बादशाह ने वफ़ात पाई उस साल मैंने रब को आला और जलाली तख़्त पर बैठे देखा। उसके लिबास के दामन से रब का घर भर गया।


जब मेरी जान निकलने लगी तो तू, ऐ रब मुझे याद आया, और मेरी दुआ तेरे मुक़द्दस घर में तेरे हुज़ूर पहुँची।


ऐ तमाम अक़वाम, सुनो! ऐ ज़मीन और जो कुछ उस पर है, ध्यान दो! रब क़ादिरे-मुतलक़ तुम्हारे ख़िलाफ़ गवाही दे, क़ादिरे-मुतलक़ अपने मुक़द्दस घर की तरफ़ से गवाही दे।


हमारा ख़ुदा तो आसमान पर है, और जो जी चाहे करता है।


रब फ़रमाता है, “आसमान मेरा तख़्त है और ज़मीन मेरे पाँवों की चौकी, तो फिर वह घर कहाँ है जो तुम मेरे लिए बनाओगे? वह जगह कहाँ है जहाँ मैं आराम करूँगा?”


सुनो! शहर में शोरो-ग़ौग़ा हो रहा है। सुनो! रब के घर से हलचल की आवाज़ सुनाई दे रही है। सुनो! रब अपने दुश्मनों को उनकी मुनासिब सज़ा दे रहा है।


तब मैं बोला, ‘मुझे तेरे हुज़ूर से ख़ारिज कर दिया गया है, लेकिन मैं तेरे मुक़द्दस घर की तरफ़ तकता रहूँगा।’


“ऐ जज़ीरो, ख़ामोश रहकर मेरी बात सुनो! अक़वाम अज़ सरे-नौ तक़वियत पाएँ और मेरे हुज़ूर आएँ, फिर बात करें। आओ, हम एक दूसरे से मिलकर अदालत में हाज़िर हो जाएँ!


ज़ैल में हबक़्क़ूक़ नबी की दुआ है। इसे ‘शिगियूनोत’ के तर्ज़ पर गाना है।


अगर मैं अपनी बात पेश करूँ तो क्या उसे कुछ मालूम हो जाएगा जिसका पहले इल्म न था? क्या कोई भी कुछ बयान कर सकता है जो उसे पहले मालूम न हो? कभी नहीं!


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