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حبقوق 1:4 - किताबे-मुक़द्दस

4 नतीजे में शरीअत बेअसर हो गई है, और बा-इनसाफ़ फ़ैसले कभी जारी नहीं होते। बेदीनों ने रास्तबाज़ों को घेर लिया है, इसलिए अदालत में बेहूदा फ़ैसले किए जाते हैं।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

4 اِس لیٔے آئین بےبس ہو گیا، اِنصاف بالکُل قائِم نہیں رہا۔ بدکار راستبازوں کو گھیر لیتے ہیں، اِس لیٔے اِنصاف باقی نہیں رہا۔

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کِتابِ مُقادّس

4 اِس لِئے شرِیعت کمزور ہو گئی اور اِنصاف مُطلق جاری نہیں ہوتا کیونکہ شرِیر صادِقوں کو گھیر لیتے ہیں۔ پس اِنصاف کا خُون ہو رہا ہے۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

4 نتیجے میں شریعت بےاثر ہو گئی ہے، اور باانصاف فیصلے کبھی جاری نہیں ہوتے۔ بےدینوں نے راست بازوں کو گھیر لیا ہے، اِس لئے عدالت میں بےہودہ فیصلے کئے جاتے ہیں۔

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حبقوق 1:4
46 حوالہ جات  

अब वक़्त आ गया है कि रब क़दम उठाए, क्योंकि लोगों ने तेरी शरीअत को तोड़ डाला है।


ख़याल यह है कि बेदीन क्यों जीते रहते हैं? न सिर्फ़ वह उम्ररसीदा हो जाते बल्कि उनकी ताक़त बढ़ती रहती है।


ऐ रब, तू हमेशा हक़ पर है, लिहाज़ा अदालत में तुझसे शिकायत करने का क्या फ़ायदा? ताहम मैं अपना मामला तुझे पेश करना चाहता हूँ। बेदीनों को इतनी कामयाबी क्यों हासिल होती है? ग़द्दार इतने सुकून से ज़िंदगी क्यों गुज़ारते हैं?


रब ने जवाब दिया, “इसराईल और यहूदाह के लोगों का क़ुसूर निहायत ही संगीन है। मुल्क में क़त्लो-ग़ारत आम है, और शहर नाइनसाफ़ी से भर गया है। क्योंकि लोग कहते हैं, ‘रब ने मुल्क को तर्क किया है, हम उसे नज़र ही नहीं आते।’


मैं तो तुम्हारे मुतअद्दिद जरायम और संगीन गुनाहों से ख़ूब वाक़िफ़ हूँ। तुम रास्तबाज़ों पर ज़ुल्म करते और रिश्वत लेकर ग़रीबों को अदालत में इनसाफ़ से महरूम रखते हो।


वह बड़ी बातें करते, झूटी क़समें खाते और ख़ाली अहद बाँधते हैं। उनका इनसाफ़ उन ज़हरीले ख़ुदरौ पौदों की मानिंद है जो बीज के लिए तैयारशुदा ज़मीन से फूट निकलते हैं।


तुम पर अफ़सोस जो बुराई को भुला और भलाई को बुरा क़रार देते हो, जो कहते हो कि तारीकी रौशनी और रौशनी तारीकी है, कि कड़वाहट मीठी और मिठास कड़वी है।


न किसी के हुक़ूक़ मारना, न जानिबदारी दिखाना। रिश्वत क़बूल न करना, क्योंकि रिश्वत दानिशमंदों को अंधा कर देती और रास्तबाज़ की बातें पलट देती है।


अदालत में ग़रीब के हुक़ूक़ न मारना।


अगर अकसरियत ग़लत काम कर रही हो तो उसके पीछे न हो लेना। अदालत में गवाही देते वक़्त अकसरियत के साथ मिलकर ऐसी बात न करना जिससे ग़लत फ़ैसला किया जाए।


फिर क्या हम शरीअत को ईमान से मनसूख़ करते हैं? हरगिज़ नहीं, बल्कि हम शरीअत को क़ायम रखते हैं।


जब वह स्तिफ़नुस को संगसार कर रहे थे तो उसने दुआ करके कहा, “ऐ ख़ुदावंद ईसा, मेरी रूह को क़बूल कर।”


क्या कभी कोई नबी था जिसे आपके बापदादा ने न सताया? उन्होंने उन्हें भी क़त्ल किया जिन्होंने रास्तबाज़ मसीह की पेशगोई की, उस शख़्स की जिसे आपने दुश्मनों के हवाले करके मार डाला।


ईसा ने अपनी बात जारी रखी, “तुम कितने सलीक़े से अल्लाह का हुक्म मनसूख़ करते हो ताकि अपनी रिवायात को क़ायम रख सको।


ऐ रब, बेदीन कब तक, हाँ कब तक फ़तह के नारे लगाएँगे?


मैं बेक़ुसूर हूँ, ताहम वह दौड़ दौड़कर मुझसे लड़ने की तैयारियाँ कर रहे हैं। चुनाँचे जाग उठ, मेरी मदद करने आ, जो कुछ हो रहा है उस पर नज़र डाल।


मुझे बदकारों से छुटकारा दे, ख़ूनख़ारों से रिहा कर।


उन पर अफ़सोस जो इनसाफ़ को उलटकर ज़हर में बदल देते, जो रास्ती को ज़मीन पर पटख़ देते हैं!


यरमियाह ने उन्हें सब कुछ पेश किया जो रब ने उसे सुनाने को कहा था। लेकिन ज्योंही वह इख़्तिताम पर पहुँच गया तो इमाम, नबी और बाक़ी तमाम लोग उसे पकड़कर चीख़ने लगे, “तुझे मरना ही है!


क्योंकि तेरे सगे भाई, हाँ तेरे बाप का घर भी तुझसे बेवफ़ा हो गया है। यह भी बुलंद आवाज़ से तेरे पीछे तुझे गालियाँ देते हैं। उन पर एतमाद मत करना, ख़ाह वह तेरे साथ अच्छी बातें क्यों न करें।


कुत्तों ने मुझे घेर रखा, शरीरों के जत्थे ने मेरा इहाता किया है। उन्होंने मेरे हाथों और पाँवों को छेद डाला है।


रास्तबाज़ क्या करे? उन्होंने तो बुनियाद को ही तबाह कर दिया है।


फिर दो बदमाश आए और उसके मुक़ाबिल बैठ गए। इजतिमा के दौरान यह आदमी सबके सामने नबोत पर इलज़ाम लगाने लगे, “इस शख़्स ने अल्लाह और बादशाह पर लानत भेजी है! हम इसके गवाह हैं।” तब नबोत को शहर से बाहर ले जाकर संगसार कर दिया गया।


मुतअद्दिद बैलों ने मुझे घेर लिया, बसन के ताक़तवर साँड चारों तरफ़ जमा हो गए हैं।


क्योंकि हमारे मुतअद्दिद जरायम तेरे सामने हैं, और हमारे गुनाह हमारे ख़िलाफ़ गवाही देते हैं। हमें मुतवातिर अपने जरायम का एहसास है, हम अपने गुनाहों से ख़ूब वाक़िफ़ हैं।


फ़िज़ा में उड़नेवाले लक़लक़ पर ग़ौर करो जिसे आने जाने के मुक़र्ररा औक़ात ख़ूब मालूम होते हैं। फ़ाख़्ता, अबाबील और बुलबुल पर भी ध्यान दो जो सर्दियों के मौसम में कहीं और होते हैं, गरमियों के मौसम में कहीं और। वह मुक़र्ररा औक़ात से कभी नहीं हटते। लेकिन अफ़सोस, मेरी क़ौम रब की शरीअत नहीं जानती।


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