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پیدایش 29:1 - किताबे-मुक़द्दस

1 याक़ूब ने अपना सफ़र जारी रखा और चलते चलते मशरिक़ी क़ौमों के मुल्क में पहुँच गया।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

1 اَور یعقوب نے اَپنا سفر جاری رکھا اَور وہ مشرق میں رہنے والے لوگوں کے مُلک میں جاپہنچے۔

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کِتابِ مُقادّس

1 اور یعقُوبؔ آگے چل کر مشرِقی لوگوں کے مُلک میں پُہنچا۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

1 یعقوب نے اپنا سفر جاری رکھا اور چلتے چلتے مشرقی قوموں کے ملک میں پہنچ گیا۔

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پیدایش 29:1
17 حوالہ جات  

क्योंकि जब भी वह अपनी फ़सलें लगाते तो मिदियानी, अमालीक़ी और मशरिक़ के दीगर फ़ौजी उन पर हमला करके


कुछ देर के बाद तमाम मिदियानी, अमालीक़ी और दूसरी मशरिक़ी क़ौमें जमा हुईं और दरियाए-यरदन को पार करके अपने डेरे मैदाने-यज़्रएल में लगाए।


याक़ूब को भागकर मुल्के-अराम में पनाह लेनी पड़ी। वहाँ वह बीवी मिलने के लिए मुलाज़िम बन गया, औरत के बाइस उसने भेड़-बकरियों की गल्लाबानी की।


चुनाँचे जाकर अपना खाना ख़ुशी के साथ खा, अपनी मै ज़िंदादिली से पी, क्योंकि अल्लाह काफ़ी देर से तेरे कामों से ख़ुश है।


मैं नहीं झिजकता बल्कि भागकर तेरे अहकाम पर अमल करने की कोशिश करता हूँ।


मैं तेरे फ़रमानों की राह पर दौड़ता हूँ, क्योंकि तूने मेरे दिल को कुशादगी बख़्शी है।


बिलाम बोल उठा, “बलक़ मुझे अराम से यहाँ लाया है, मोआबी बादशाह ने मुझे मशरिक़ी पहाड़ों से बुलाकर कहा, ‘आओ, याक़ूब पर मेरे लिए लानत भेजो। आओ, इसराईल को बददुआ दो।’


उस की हिकमत इसराईल के मशरिक़ में रहनेवाले और मिसर के आलिमों से कहीं ज़्यादा थी।


अब ज़िबह और ज़लमुन्ना क़रक़ूर पहुँच गए थे। 15,000 अफ़राद उनके साथ रह गए थे, क्योंकि मशरिक़ी इत्तहादियों के 1,20,000 तलवारों से लैस फ़ौजी हलाक हो गए थे।


मिदियानी, अमालीक़ी और मशरिक़ के दीगर फ़ौजी टिड्डियों के दल की तरह वादी में फैले हुए थे। उनके ऊँट साहिल की रेत की तरह बेशुमार थे।


इसहाक़ 40 साल का था जब उस की रिबक़ा से शादी हुई। रिबक़ा लाबन की बहन और अरामी मर्द बतुएल की बेटी थी (बतुएल मसोपुतामिया का था)।


फिर वह अपने आक़ा के दस ऊँटों पर क़ीमती तोह्फ़े लादकर मसोपुतामिया की तरफ़ रवाना हुआ। चलते चलते वह नहूर के शहर पहुँच गया।


अपनी मौत से पहले उसने अपनी दूसरी बीवियों के बेटों को तोह्फ़े देकर अपने बेटे से दूर मशरिक़ की तरफ़ भेज दिया।


अल्लाह ने याक़ूब से कहा, “उठ, बैतेल जाकर वहाँ आबाद हो। वहीं अल्लाह के लिए जो तुझ पर ज़ाहिर हुआ जब तू अपने भाई एसौ से भाग रहा था क़ुरबानगाह बना।”


याक़ूब ने वहाँ क़ुरबानगाह बनाकर मक़ाम का नाम बैतेल यानी ‘अल्लाह का घर’ रखा। क्योंकि वहाँ अल्लाह ने अपने आपको उस पर ज़ाहिर किया था जब वह अपने भाई से फ़रार हो रहा था।


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