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پیدایش 25:20 - किताबे-मुक़द्दस

20 इसहाक़ 40 साल का था जब उस की रिबक़ा से शादी हुई। रिबक़ा लाबन की बहन और अरामी मर्द बतुएल की बेटी थी (बतुएल मसोपुतामिया का था)।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

20 اَور اِصحاقؔ چالیس بَرس کے تھے جَب آپ نے رِبقہؔ سے بیاہ کیا جو فدّان ارام کے باشِندہ بیتُھوایلؔ ارامی کی بیٹی اَور لابنؔ ارامی کی بہن تھی۔

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کِتابِ مُقادّس

20 اِضحاقؔ چالِیس برس کا تھا جب اُس نے رِبقہؔ سے بیاہ کِیا جو فدّان ارامؔ کے باشِندہ بیتُوایلؔ ارامی کی بیٹی اور لابنؔ ارامی کی بہن تھی۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

20 اسحاق 40 سال کا تھا جب اُس کی رِبقہ سے شادی ہوئی۔ رِبقہ لابن کی بہن اور اَرامی مرد بتوایل کی بیٹی تھی (بتوایل مسوپتامیہ کا تھا)۔

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پیدایش 25:20
18 حوالہ جات  

जब रिबक़ा के भाई लाबन ने नथ और बहन की कलाइयों में कंगनों को देखा और वह सब कुछ सुना जो इब्राहीम के नौकर ने रिबक़ा को बताया था तो वह फ़ौरन कुएँ की तरफ़ दौड़ा। इब्राहीम का नौकर अब तक ऊँटों समेत वहाँ खड़ा था।


फिर इसहाक़ रिबक़ा को अपनी माँ सारा के डेरे में ले गया। उसने उससे शादी की, और वह उस की बीवी बन गई। इसहाक़ के दिल में उसके लिए बहुत मुहब्बत पैदा हुई। यों उसे अपनी माँ की मौत के बाद सुकून मिला।


मिलकाह और नहूर के हाँ यह आठ बेटे पैदा हुए। (बतुएल रिबक़ा का बाप था)।


फिर रब अपने ख़ुदा के हुज़ूर कह, “मेरा बाप आवारा फिरनेवाला अरामी था जो अपने लोगों को लेकर मिसर में आबाद हुआ। वहाँ पहुँचते वक़्त उनकी तादाद कम थी, लेकिन होते होते वह बड़ी और ताक़तवर क़ौम बन गए।


लेकिन उस रात अल्लाह ने ख़ाब में लाबन के पास आकर उससे कहा, “ख़बरदार! याक़ूब को बुरा-भला न कहना।”


याक़ूब ने लाबन को फ़रेब देकर उसे इत्तला न दी कि मैं जा रहा हूँ


और अपने तमाम मवेशी और मसोपुतामिया से हासिल किया हुआ तमाम सामान लेकर मुल्के-कनान में अपने बाप के हाँ जाने के लिए रवाना हुआ।


इसी तरह इलीशा नबी के ज़माने में इसराईल में कोढ़ के बहुत-से मरीज़ थे। लेकिन उनमें से किसी को शफ़ा न मिली बल्कि सिर्फ़ नामान को जो मुल्के-शाम का शहरी था।”


अल्लाह याक़ूब पर एक दफ़ा और ज़ाहिर हुआ और उसे बरकत दी। यह मसोपुतामिया से वापस आने पर दूसरी बार हुआ।


वह अभी दुआ कर ही रहा था कि रिबक़ा शहर से निकल आई। उसके कंधे पर घड़ा था। वह बतुएल की बेटी थी (बतुएल इब्राहीम के भाई नहूर की बीवी मिलकाह का बेटा था)।


इसके बाद दूसरा बच्चा पैदा हुआ। वह एसौ की एड़ी पकड़े हुए निकला, इसलिए उसका नाम याक़ूब यानी ‘एड़ी पकड़नेवाला’ रखा गया। उस वक़्त इसहाक़ 60 साल का था।


अब सीधे मसोपुतामिया में अपने नाना बतुएल के घर जा और वहाँ अपने मामूँ लाबन की लड़कियों में से किसी एक से शादी कर।


और कि याक़ूब अपने माँ-बाप की सुनकर मसोपुतामिया चला गया है।


फिर याक़ूब चलते चलते सलामती से सिकम शहर पहुँचा। यों उसका मसोपुतामिया से मुल्के-कनान तक का सफ़र इख़्तिताम तक पहुँच गया। उसने अपने ख़ैमे शहर के सामने लगाए।


लियाह की लौंडी ज़िलफ़ा के दो बेटे थे, जद और आशर। याक़ूब के यह बेटे मसोपुतामिया में पैदा हुए।


इन बेटों की माँ लियाह थी, और वह मसोपुतामिया में पैदा हुए। इनके अलावा दीना उस की बेटी थी। कुल 33 मर्द लियाह की औलाद थे।


बेटा, अब मेरी सुनो, यहाँ से हिजरत कर जाओ। हारान शहर में मेरे भाई लाबन के पास चले जाओ।


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