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پیدایش 13:18 - किताबे-मुक़द्दस

18 अब्राम रवाना हुआ। चलते चलते उसने अपने डेरे हबरून के क़रीब ममरे के दरख़्तों के पास लगाए। वहाँ उसने रब की ताज़ीम में क़ुरबानगाह बनाई।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

18 چنانچہ اَبرامؔ نے اَپنے خیمے اُٹھائے اَور حِبرونؔ میں ممرےؔ کے شاہ بلُوط کے درختوں کے پاس جا کر رہنے لگے جہاں اَبرامؔ نے یَاہوِہ کے لیٔے ایک مذبح بنایا۔

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کِتابِ مُقادّس

18 اور ابرامؔ نے اپنا ڈیرا اُٹھایا اور مَمرؔے کے بلُوطوں میں جو حبرونؔ میں ہیں جا کر رہنے لگا اور وہاں خُداوند کے لِئے ایک قُربان گاہ بنائی۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

18 ابرام روانہ ہوا۔ چلتے چلتے اُس نے اپنے ڈیرے حبرون کے قریب ممرے کے درختوں کے پاس لگائے۔ وہاں اُس نے رب کی تعظیم میں قربان گاہ بنائی۔

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پیدایش 13:18
17 حوالہ جات  

फिर याक़ूब अपने बाप इसहाक़ के पास पहुँच गया जो हबरून के क़रीब ममरे में अजनबी की हैसियत से रहता था (उस वक़्त हबरून का नाम क़िरियत-अरबा था)। वहाँ इसहाक़ और उससे पहले इब्राहीम रहा करते थे।


एक दिन रब ममरे के दरख़्तों के पास इब्राहीम पर ज़ाहिर हुआ। इब्राहीम अपने ख़ैमे के दरवाज़े पर बैठा था। दिन की गरमी उरूज पर थी।


लेकिन एक आदमी ने जो बच निकला था इबरानी मर्द अब्राम के पास आकर उसे सब कुछ बता दिया। उस वक़्त वह ममरे के दरख़्तों के पास आबाद था। ममरे अमोरी था। वह और उसके भाई इसकाल और आनेर अब्राम के इत्तहादी थे।


उस वक़्त नूह ने रब के लिए क़ुरबानगाह बनाई। उसने तमाम फिरने और उड़नेवाले पाक जानवरों में से कुछ चुनकर उन्हें ज़बह किया और क़ुरबानगाह पर पूरी तरह जला दिया।


रब हर वक़्त मेरी आँखों के सामने रहता है। वह मेरे दहने हाथ रहता है, इसलिए मैं नहीं डगमगाऊँगा।


अब मैं चाहता हूँ कि हर मक़ामी जमात के मर्द मुक़द्दस हाथ उठाकर दुआ करें। वह ग़ुस्से या बहस-मुबाहसा की हालत में ऐसा न करें।


वह दश्ते-नजब से गुज़रकर हबरून पहुँचे जहाँ अनाक़ के बेटे अख़ीमान, सीसी और तलमी रहते थे। (हबरून को मिसर के शहर ज़ुअन से सात साल पहले तामीर किया गया था)।


याक़ूब ने कहा, “जाकर मालूम कर कि तेरे भाई और उनके साथ के रेवड़ ख़ैरियत से हैं कि नहीं। फिर वापस आकर मुझे बता देना।” चुनाँचे उसके बाप ने उसे वादीए-हबरून से भेज दिया, और यूसुफ़ सिकम पहुँच गया।


वहाँ जहाँ उसने क़ुरबानगाह बनाई थी उसने रब का नाम लेकर उस की इबादत की।


तब यशुअ ने कालिब बिन यफ़ुन्ना को बरकत देकर उसे विरासत में हबरून दे दिया।


उस ज़माने में हबरून का नाम क़िरियत-अरबा था, और वह मुल्के-कनान में था। इब्राहीम ने उसके पास आकर मातम किया।


ईमान के ज़रीए वह वादा किए हुए मुल्क में अजनबी की हैसियत से रहने लगा। वह ख़ैमों में रहता था और इसी तरह इसहाक़ और याक़ूब भी जो उसके साथ उसी वादे के वारिस थे।


चलते चलते वह उस मक़ाम पर पहुँचे जो अल्लाह ने उस पर ज़ाहिर किया था। इब्राहीम ने वहाँ क़ुरबानगाह बनाई और उस पर लकड़ियाँ तरतीब से रख दीं। फिर उसने इसहाक़ को बाँधकर लकड़ियों पर रख दिया


वहाँ इसहाक़ ने क़ुरबानगाह बनाई और रब का नाम लेकर इबादत की। वहाँ उसने अपने ख़ैमे लगाए और उसके नौकरों ने कुआँ खोद लिया।


रब के हुक्म के मुताबिक़ यशुअ ने कालिब बिन यफ़ुन्ना को उसका हिस्सा यहूदाह में दे दिया। वहाँ उसे हबरून शहर मिल गया। उस वक़्त उसका नाम क़िरियत-अरबा था (अरबा अनाक़ का बाप था)।


इसके बाद दाऊद ने रब से दरियाफ़्त किया, “क्या मैं यहूदाह के किसी शहर में वापस चला जाऊँ?” रब ने जवाब दिया, “हाँ, वापस जा।” दाऊद ने सवाल किया, “मैं किस शहर में जाऊँ?” रब ने जवाब दिया, “हबरून में।”


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