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خروج 25:30 - किताबे-मुक़द्दस

30 मेज़ पर वह रोटियाँ हर वक़्त मेरे हुज़ूर पड़ी रहें जो मेरे लिए मख़सूस हैं।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

30 اَور تُم اُس میز پر نذر کی روٹی ہمیشہ میرے رُوبرو رکھنا۔

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کِتابِ مُقادّس

30 اور تُو اُس میز پر نذر کی روٹیاں ہمیشہ میرے رُوبرُو رکھنا۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

30 میز پر وہ روٹیاں ہر وقت میرے حضور پڑی رہیں جو میرے لئے مخصوص ہیں۔

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خروج 25:30
20 حوالہ جات  

वह अल्लाह के घर में दाख़िल हुआ और अपने साथियों समेत रब के लिए मख़सूसशुदा रोटियाँ खाईं, अगरचे उन्हें इसकी इजाज़त नहीं थी बल्कि सिर्फ़ इमामों को?


मख़सूस रोटियों की मेज़, उसका सारा सामान और रोटियाँ,


लेकिन तुम अपनी हरकतों से मेरे नाम की बेहुरमती करते हो। तुम कहते हो, ‘रब की मेज़ को नापाक किया जा सकता है, उस की क़ुरबानियों को हक़ीर जाना जा सकता है।’


इसमें कि तुम मेरी क़ुरबानगाह पर नापाक ख़ुराक रख देते हो। तुम पूछते हो, ‘हमने तुझे किस बात में नापाक किया है?’ इसमें कि तुम रब की मेज़ को क़ाबिले-तहक़ीर क़रार देते हो।


यही सुबह-शाम उसे भस्म होनेवाली क़ुरबानियाँ और ख़ुशबूदार बख़ूर पेश करते हैं। पाक मेज़ पर रब के लिए मख़सूस रोटियाँ रखना और सोने के शमादान के चराग़ जलाना इन्हीं की ज़िम्मादारी रही है। ग़रज़, हम रब अपने ख़ुदा की हिदायात पर अमल करते हैं जबकि आपने उसे तर्क कर दिया है।


ज़ैल की चीज़ें सँभालना सिर्फ़ उन्हीं की ज़िम्मादारी है : मख़सूसो-मुक़द्दस की गई रोटियाँ, ग़ल्ला की नज़रों के लिए मुस्तामल मैदा, बेख़मीरी रोटियाँ पकाने और गूँधने का इंतज़ाम। लाज़िम है कि वही तमाम लवाज़िमात को अच्छी तरह तोलें और नापें।


क़िहात के ख़ानदान के बाज़ लावियों के हाथ में वह रोटियाँ बनाने का इंतज़ाम था जो हर हफ़ते के दिन को रब के लिए मख़सूस करके रब के घर के मुक़द्दस कमरे की मेज़ पर रखी जाती थीं।


फिर इमाम ने दाऊद को मख़सूसशुदा रोटियाँ दीं यानी वह रोटियाँ जो मुलाक़ात के ख़ैमे में रब के हुज़ूर रखी जाती थीं और उसी दिन ताज़ा रोटियों से तबदील हुई थीं।


वह उस मेज़ पर भी नीले रंग का कपड़ा बिछाएँ जिस पर रब को रोटी पेश की जाती है। उस पर थाल, प्याले, मै की नज़रें पेश करने के बरतन और मरतबान रखे जाएँ। जो रोटी हमेशा मेज़ पर होती है वह भी उस पर रहे।


मख़सूस रोटियों की मेज़, उसे उठाने की लकड़ियाँ, उसका सारा सामान और रोटियाँ,


एक ख़ैमा जिसके पहले कमरे में शमादान, मेज़ और उस पर पड़ी मख़सूस की गई रोटियाँ थीं। उसका नाम “मुक़द्दस कमरा” था।


इसके बाद मख़सूस रोटियों की मेज़ मुक़द्दस कमरे में लाकर उस पर तमाम ज़रूरी सामान रखना। उस कमरे में शमादान भी ले आना और उस पर उसके चराग़ रखना।


उसने रब की हिदायत के ऐन मुताबिक़ रब के लिए मख़सूस की हुई रोटियाँ मेज़ पर रखीं।


इमाम ने जवाब दिया, “मेरे पास आम रोटी नहीं है। मैं आपको सिर्फ़ रब के लिए मख़सूसशुदा रोटी दे सकता हूँ। शर्त यह है कि आपके आदमी पिछले दिनों में औरतों से हमबिसतर न हुए हों।”


रब के घर के अंदर के लिए सुलेमान ने दर्जे-ज़ैल सामान बनवाया : सोने की क़ुरबानगाह, सोने की वह मेज़ जिस पर रब के लिए मख़सूस रोटियाँ पड़ी रहती थीं,


मैं एक घर तामीर करके उसे रब अपने ख़ुदा के नाम के लिए मख़सूस करना चाहता हूँ। क्योंकि हमें ऐसी जगह की ज़रूरत है जिसमें उसके हुज़ूर ख़ुशबूदार बख़ूर जलाया जाए, रब के लिए मख़सूस रोटियाँ बाक़ायदगी से मेज़ पर रखी जाएँ और ख़ास मौक़ों पर भस्म होनेवाली क़ुरबानियाँ पेश की जाएँ यानी हर सुबहो-शाम, सबत के दिन, नए चाँद की ईदों और रब हमारे ख़ुदा की दीगर मुक़र्ररा ईदों पर। यह इसराईल का दायमी फ़र्ज़ है।


लकड़ी की क़ुरबानगाह नज़र आई। उस की ऊँचाई सवा 5 फ़ुट और चौड़ाई साढ़े तीन फ़ुट थी। उसके कोने, पाया और चारों पहलू लकड़ी से बने थे। उसने मुझसे कहा, “यह वही मेज़ है जो रब के हुज़ूर रहती है।”


दाऊद ने उसे तसल्ली देकर कहा, “फ़िकर न करें। पहले की तरह हमें इस मुहिम के दौरान भी औरतों से दूर रहना पड़ा है। मेरे फ़ौजी आम मुहिमों के लिए भी अपने आपको पाक रखते हैं, तो इस दफ़ा वह कहीं ज़्यादा पाक-साफ़ हैं।”


उसने सूर के बादशाह हीराम को इत्तला दी, “जिस तरह आप मेरे बाप दाऊद को देवदार की लकड़ी भेजते रहे जब वह अपने लिए महल बना रहे थे उसी तरह मुझे भी देवदार की लकड़ी भेजें।


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