मसलन शरीअत में लिखा है, “क़त्ल न करना, ज़िना न करना, चोरी न करना, लालच न करना।” और दीगर जितने अहकाम हैं इस एक ही हुक्म में समाए हुए हैं कि “अपने पड़ोसी से वैसी मुहब्बत रखना जैसी तू अपने आपसे रखता है।”
अगर किसी आदमी को पकड़ा जाए जिसने अपने हमवतन को इग़वा करके ग़ुलाम बना लिया या बेच दिया है तो उसे सज़ाए-मौत देना है। यों तू अपने दरमियान से बुराई मिटा देगा।
इस मामले में कोई अपने भाई का गुनाह न करे, न उससे ग़लत फ़ायदा उठाए। ख़ुदावंद ऐसे गुनाहों की सज़ा देता है। हम यह सब कुछ बता चुके और आपको आगाह कर चुके हैं।
दोनों हाथ ग़लत काम करने में एक जैसे माहिर हैं। हुक्मरान और क़ाज़ी रिश्वत खाते, बड़े लोग मुतलव्विनमिज़ाजी से कभी यह, कभी वह तलब करते हैं। सब मिलकर साज़िशें करने में मसरूफ़ रहते हैं।