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واعظ 8:7 - किताबे-मुक़द्दस

7 क्योंकि वह नहीं जानता कि मुस्तक़बिल कैसा होगा। कोई उसे यह नहीं बता सकता है।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

7 چونکہ مُستقبِل کو کویٔی آدمی بھی نہیں جانتا لہٰذا کون اُسے بتا سَکتا ہے کہ آئندہ کیا ہونے والا ہے؟

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کِتابِ مُقادّس

7 کیونکہ جو کُچھ ہو گا اُس کو معلُوم نہیں اور کَون اُسے بتا سکتا ہے کہ کیونکر ہو گا؟

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

7 کیونکہ وہ نہیں جانتا کہ مستقبل کیسا ہو گا۔ کوئی اُسے یہ نہیں بتا سکتا ہے۔

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واعظ 8:7
14 حوالہ جات  

ऐसा शख़्स बातें करने से बाज़ नहीं आता, गो इनसान मुस्तक़बिल के बारे में कुछ नहीं जानता। कौन उसे बता सकता है कि उसके बाद क्या कुछ होगा?


अगर वह ऐसा करे तो मालिक ऐसे दिन और वक़्त आएगा जिसकी तवक़्क़ो नौकर को नहीं होगी।


नीज़, कोई भी इनसान नहीं जानता कि मुसीबत का वक़्त कब उस पर आएगा। जिस तरह मछलियाँ ज़ालिम जाल में उलझ जाती या परिंदे फंदे में फँस जाते हैं उसी तरह इनसान मुसीबत में फँस जाता है। मुसीबत अचानक ही उस पर आ जाती है।


क्योंकि अचानक ही उन पर आफ़त आएगी, किसी को पता ही नहीं चलेगा जब दोनों उन पर हमला करके उन्हें तबाह कर देंगे।


तुम भी तैयार रहो, क्योंकि इब्ने-आदम ऐसे वक़्त आएगा जब तुम उस की तवक़्क़ो नहीं करोगे।


किस को मालूम है कि उन थोड़े और बेकार दिनों के दौरान जो साये की तरह गुज़र जाते हैं इनसान के लिए क्या कुछ फ़ायदामंद है? कौन उसे बता सकता है कि उसके चले जाने पर सूरज तले क्या कुछ पेश आएगा?


ग़रज़ मैंने जान लिया कि इनसान के लिए इससे बेहतर कुछ नहीं है कि वह अपने कामों में ख़ुश रहे, यही उसके नसीब में है। क्योंकि कौन उसे वह देखने के क़ाबिल बनाएगा जो उसके बाद पेश आएगा? कोई नहीं!


जो मुतअद्दिद नसीहतों के बावुजूद हटधर्म रहे वह अचानक ही बरबाद हो जाएगा, और शफ़ा का इमकान ही नहीं होगा।


ख़ुशी के दिन ख़ुश हो, लेकिन मुसीबत के दिन ख़याल रख कि अल्लाह ने यह दिन भी बनाया और वह भी इसलिए कि इनसान अपने मुस्तक़बिल के बारे में कुछ मालूम न कर सके।


हामान ने कहा, “न सिर्फ़ यह, बल्कि आज आस्तर मलिका ने ऐसी ज़ियाफ़त की जिसमें बादशाह के अलावा सिर्फ़ मैं ही शरीक था। और मुझे मलिका से कल के लिए भी दावत मिली है कि बादशाह के साथ ज़ियाफ़त में शिरकत करूँ।


उस पर शेख़ी न मार जो तू कल करेगा, तुझे क्या मालूम कि कल का दिन क्या कुछ फ़राहम करेगा?


इन तमाम बातों पर मैंने दिल से ग़ौर किया। इनके मुआयने के बाद मैंने नतीजा निकाला कि रास्तबाज़ और दानिशमंद और जो कुछ वह करें अल्लाह के हाथ में हैं। ख़ाह मुहब्बत हो ख़ाह नफ़रत, इसकी भी समझ इनसान को नहीं आती, दोनों की जड़ें उससे पहले माज़ी में हैं।


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