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واعظ 5:10 - किताबे-मुक़द्दस

10 जिसे पैसे प्यारे हों वह कभी मुतमइन नहीं होगा, ख़ाह उसके पास कितने ही पैसे क्यों न हों। जो ज़रदोस्त हो वह कभी आसूदा नहीं होगा, ख़ाह उसके पास कितनी ही दौलत क्यों न हो। यह भी बातिल ही है।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

10 جو کویٔی دولت کو عزیز رکھتا ہے، وہ کبھی دولت سے مطمئن نہ ہوگا خواہ اُس کے پاس کتنی زِیادہ دولت کیوں نہ ہو؛ اَورجو کویٔی دولت سے پیار کرتا ہے وہ اُس میں اِضافہ ہونے سے بھی مطمئن نہیں ہوگا۔ یہ بھی باطِل ہی ہے۔

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کِتابِ مُقادّس

10 زر دوست رُوپیہ سے آسُودہ نہ ہو گا اور دَولت کا چاہنے والا اُس کے بڑھنے سے سیر نہ ہو گا۔ یہ بھی بُطلان ہے۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

10 جسے پیسے پیارے ہوں وہ کبھی مطمئن نہیں ہو گا، خواہ اُس کے پاس کتنے ہی پیسے کیوں نہ ہوں۔ جو زردوست ہو وہ کبھی آسودہ نہیں ہو گا، خواہ اُس کے پاس کتنی ہی دولت کیوں نہ ہو۔ یہ بھی باطل ہی ہے۔

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واعظ 5:10
21 حوالہ جات  

क्योंकि पैसों का लालच हर ग़लत काम का सरचश्मा है। कई लोगों ने इसी लालच के बाइस ईमान से भटककर अपने आपको बहुत अज़ियत पहुँचाई है।


कोई भी दो मालिकों की ख़िदमत नहीं कर सकता। या तो वह एक से नफ़रत करके दूसरे से मुहब्बत रखेगा या एक से लिपटकर दूसरे को हक़ीर जानेगा। तुम एक ही वक़्त में अल्लाह और दौलत की ख़िदमत नहीं कर सकते।


फिर उसने उनसे मज़ीद कहा, “ख़बरदार! हर क़िस्म के लालच से बचे रहना, क्योंकि इनसान की ज़िंदगी उसके मालो-दौलत की कसरत पर मुनहसिर नहीं।”


इस दुनिया में अपने लिए ख़ज़ाने जमा न करो, जहाँ कीड़ा और ज़ंग उन्हें खा जाते और चोर नक़ब लगाकर चुरा लेते हैं।


एक आदमी अकेला ही था। न उसके बेटा था, न भाई। वह बेहद मेहनत-मशक़्क़त करता रहा, लेकिन उस की आँखें कभी अपनी दौलत से मुतमइन न थीं। सवाल यह रहा, “मैं इतनी सिर-तोड़ कोशिश किसके लिए कर रहा हूँ? मैं अपनी जान को ज़िंदगी के मज़े लेने से क्यों महरूम रख रहा हूँ?” यह भी बातिल और ना-गवार मामला है।


मैंने यह भी देखा कि सब लोग इसलिए मेहनत-मशक़्क़त और महारत से काम करते हैं कि एक दूसरे से हसद करते हैं। यह भी बातिल और हवा को पकड़ने के बराबर है।


ज़ुल्म पर एतमाद न करो, चोरी करने पर फ़ज़ूल उम्मीद न रखो। और अगर दौलत बढ़ जाए तो तुम्हारा दिल उससे लिपट न जाए।


जो इनसान अल्लाह को मंज़ूर हो उसे वह हिकमत, इल्मो-इरफ़ान और ख़ुशी अता करता है, लेकिन गुनाहगार को वह जमा करने और ज़ख़ीरा करने की ज़िम्मादारी देता है ताकि बाद में यह दौलत अल्लाह को मंज़ूर शख़्स के हवाले की जाए। यह भी बातिल और हवा को पकड़ने के बराबर है।


“लो, यह वह आदमी है जिसने अल्लाह में पनाह न ली बल्कि अपनी बड़ी दौलत पर एतमाद किया, जो अपने तबाहकुन मनसूबों से ताक़तवर हो गया था।”


लेकिन जब मैंने अपने हाथों के तमाम कामों का जायज़ा लिया, उस मेहनत-मशक़्क़त का जो मैंने की थी तो नतीजा यही निकला कि सब कुछ बातिल और हवा को पकड़ने के बराबर है। सूरज तले किसी भी काम का फ़ायदा नहीं होता।


उन तमाम लोगों की इंतहा नहीं थी जिनकी क़ियादत वह करता था। तो भी जो बाद में आएँगे वह उससे ख़ुश नहीं होंगे। यह भी बातिल और हवा को पकड़ने के बराबर है।


क्योंकि इनसानो-हैवान का एक ही अंजाम है। दोनों दम छोड़ते, दोनों में एक-सा दम है, इसलिए इनसान को हैवान की निसबत ज़्यादा फ़ायदा हासिल नहीं होता। सब कुछ बातिल ही है।


इनसान की तमाम मेहनत-मशक़्क़त का यह मक़सद है कि पेट भर जाए, तो भी उस की भूक कभी नहीं मिटती।


मैंने अपनी पूरी ज़हनी ताक़त इस पर लगाई कि हिकमत समझूँ, नीज़ कि मुझे दीवानगी और हमाक़त की समझ भी आए। लेकिन मुझे मालूम हुआ कि यह भी हवा को पकड़ने के बराबर है।


दाऊद का ज़बूर। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। हिकमत का यह गीत उस वक़्त से मुताल्लिक़ है जब दोएग अदोमी साऊल बादशाह के पास गया और उसे बताया, “दाऊद अख़ीमलिक इमाम के घर में गया है।” ऐ सूरमे, तू अपनी बदी पर क्यों फ़ख़र करता है? अल्लाह की शफ़क़त दिन-भर क़ायम रहती है।


इनसान बातें करते करते थक जाता है और सहीह तौर से कुछ बयान नहीं कर सकता। आँख कभी इतना नहीं देखती कि कहे, “अब बस करो, काफ़ी है।” कान कभी इतना नहीं सुनता कि और न सुनना चाहे।


जो कुछ भी मेरी आँखें चाहती थीं वह मैंने उनके लिए मुहैया किया, मैंने अपने दिल से किसी भी ख़ुशी का इनकार न किया। मेरे दिल ने मेरे हर काम से लुत्फ़ उठाया, और यह मेरी तमाम मेहनत-मशक़्क़त का अज्र रहा।


चुनाँचे मुल्क के लिए हर लिहाज़ से फ़ायदा इसमें है कि ऐसा बादशाह उस पर हुकूमत करे जो काश्तकारी की फ़िकर करता है।


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