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واعظ 4:4 - किताबे-मुक़द्दस

4 मैंने यह भी देखा कि सब लोग इसलिए मेहनत-मशक़्क़त और महारत से काम करते हैं कि एक दूसरे से हसद करते हैं। यह भी बातिल और हवा को पकड़ने के बराबर है।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

4 اَور مَیں نے یہ بھی پایا کہ ساری محنت اَور ساری کامیابی ہی اِنسان اَور اُس کے ہمسایہ کے درمیان حَسد کی وجہ ہے۔ یہ بھی باطِل اَور ہَوا کو پکڑنے کے برابر ہے۔

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کِتابِ مُقادّس

4 پِھر مَیں نے ساری مِحنت کے کام اور ہر ایک اچّھی دست کاری کو دیکھا کہ اِس کے سبب سے آدمی اپنے ہمسایہ سے حسد کرتا ہے۔ یہ بھی بُطلان اور ہوا کی چران ہے۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

4 مَیں نے یہ بھی دیکھا کہ سب لوگ اِس لئے محنت مشقت اور مہارت سے کام کرتے ہیں کہ ایک دوسرے سے حسد کرتے ہیں۔ یہ بھی باطل اور ہَوا کو پکڑنے کے برابر ہے۔

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واعظ 4:4
19 حوالہ جات  

क़ाबील की तरह न हों, जो इबलीस का था और जिसने अपने भाई को क़त्ल किया। और उसने उसको क़त्ल क्यों किया? इसलिए कि उसका काम बुरा था जबकि भाई का काम रास्त था।


मैंने तमाम कामों का मुलाहज़ा किया जो सूरज तले होते हैं, तो नतीजा यह निकला कि सब कुछ बातिल और हवा को पकड़ने के बराबर है।


क्योंकि ख़ाह इनसान अपना काम हिकमत, इल्म और महारत से क्यों न करे, आख़िरकार उसे सब कुछ किसी के लिए छोड़ना है जिसने उसके लिए एक उँगली भी नहीं हिलाई। यह भी बातिल और बड़ी मुसीबत है।


जो इनसान अल्लाह को मंज़ूर हो उसे वह हिकमत, इल्मो-इरफ़ान और ख़ुशी अता करता है, लेकिन गुनाहगार को वह जमा करने और ज़ख़ीरा करने की ज़िम्मादारी देता है ताकि बाद में यह दौलत अल्लाह को मंज़ूर शख़्स के हवाले की जाए। यह भी बातिल और हवा को पकड़ने के बराबर है।


वह तो जानता था कि उन्होंने ईसा को सिर्फ़ हसद की बिना पर उसके हवाले किया है।


क्योंकि जितनी भी बातें इनसान करे उतना ही ज़्यादा मालूम होगा कि बातिल हैं। इनसान के लिए इसका क्या फ़ायदा?


दूर-दराज़ चीज़ों के आरज़ूमंद रहने की निसबत बेहतर यह है कि इनसान उन चीज़ों से लुत्फ़ उठाए जो आँखों के सामने ही हैं। यह भी बातिल और हवा को पकड़ने के बराबर है।


उन तमाम लोगों की इंतहा नहीं थी जिनकी क़ियादत वह करता था। तो भी जो बाद में आएँगे वह उससे ख़ुश नहीं होंगे। यह भी बातिल और हवा को पकड़ने के बराबर है।


ग़ुस्सा ज़ालिम होता और तैश सैलाब की तरह इनसान पर आ जाता है, लेकिन कौन हसद का मुक़ाबला कर सकता है?


या क्या आप समझते हैं कि कलामे-मुक़द्दस की यह बात बेतुकी-सी है कि अल्लाह ग़ैरत से उस रूह का आरज़ूमंद है जिसको उसने हमारे अंदर सुकूनत करने दिया?


यह सरदार अपने भाई यूसुफ़ से हसद करने लगे और इसलिए उसे बेच दिया। यों वह ग़ुलाम बनकर मिसर पहुँचा। लेकिन अल्लाह उसके साथ रहा


मैंने अपनी पूरी ज़हनी ताक़त इस पर लगाई कि हिकमत समझूँ, नीज़ कि मुझे दीवानगी और हमाक़त की समझ भी आए। लेकिन मुझे मालूम हुआ कि यह भी हवा को पकड़ने के बराबर है।


उसके पास इतनी भेड़-बकरियाँ, गाय-बैल और ग़ुलाम थे कि फ़िलिस्ती उससे हसद करने लगे।


एक दिन याक़ूब को पता चला कि लाबन के बेटे मेरे बारे में कह रहे हैं, “याक़ूब ने हमारे अब्बू से सब कुछ छीन लिया है। उसने यह तमाम दौलत हमारे बाप की मिलकियत से हासिल की है।”


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