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واعظ 3:20 - किताबे-मुक़द्दस

20 सब कुछ एक ही जगह चला जाता है, सब कुछ ख़ाक से बना है और सब कुछ दुबारा ख़ाक में मिल जाएगा।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

20 سَب کی مَنزل ایک ہے۔ سَب خاک سے بنے ہیں اَور خاک میں دوبارہ لَوٹ جاتے ہیں۔“

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کِتابِ مُقادّس

20 سب کے سب ایک ہی جگہ جاتے ہیں۔ سب کے سب خاک سے ہیں اور سب کے سب پِھر خاک سے جا مِلتے ہیں۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

20 سب کچھ ایک ہی جگہ چلا جاتا ہے، سب کچھ خاک سے بنا ہے اور سب کچھ دوبارہ خاک میں مل جائے گا۔

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واعظ 3:20
20 حوالہ جات  

पसीना बहा बहाकर तुझे रोटी कमाने के लिए भाग-दौड़ करनी पड़ेगी। और यह सिलसिला मौत तक जारी रहेगा। तू मेहनत करते करते दुबारा ज़मीन में लौट जाएगा, क्योंकि तू उसी से लिया गया है। तू ख़ाक है और दुबारा ख़ाक में मिल जाएगा।”


तो तमाम लोग दम छोड़कर दुबारा ख़ाक हो जाएंगे।


तब तेरी ख़ाक दुबारा उस ख़ाक में मिल जाएगी जिससे निकल आई और तेरी रूह उस ख़ुदा के पास लौट जाएगी जिसने उसे बख़्शा था।


जिस काम को भी हाथ लगाए उसे पूरे जोशो-ख़ुरोश से कर, क्योंकि पाताल में जहाँ तू जा रहा है न कोई काम है, न मनसूबा, न इल्म और न हिकमत।


और अगर वह दो हज़ार साल तक जीता रहे, लेकिन अपनी ख़ुशहाली से लुत्फ़अंदोज़ न हो सके तो क्या फ़ायदा है? सबको तो एक ही जगह जाना है।


कौन यक़ीन से कह सकता है कि इनसान की रूह ऊपर की तरफ़ जाती और हैवान की रूह नीचे ज़मीन में उतरती है?”


जब तू अपना चेहरा छुपा लेता है तो उनके हवास गुम हो जाते हैं। जब तू उनका दम निकाल लेता है तो वह नेस्त होकर दुबारा ख़ाक में मिल जाते हैं।


जिस तरह बादल ओझल होकर ख़त्म हो जाता है उसी तरह पाताल में उतरनेवाला वापस नहीं आता।


तब ख़ाक में सोए हुए मुतअद्दिद लोग जाग उठेंगे, कुछ अबदी ज़िंदगी पाने के लिए और कुछ अबदी रुसवाई और घिन का निशाना बनने के लिए।


उन्हें भेड़-बकरियों की तरह पाताल में लाया जाएगा, और मौत उन्हें चराएगी। क्योंकि सुबह के वक़्त दियानतदार उन पर हुकूमत करेंगे। तब उनकी शक्लो-सूरत घिसे-फटे कपड़े की तरह गल-सड़ जाएगी, पाताल ही उनकी रिहाइशगाह होगा।


अगर मैं सिर्फ़ इतनी ही उम्मीद रखूँ कि पाताल मेरा घर होगा तो यह कैसी उम्मीद होगी? अगर मैं अपना बिस्तर तारीकी में बिछाकर


उसे देखने के बाद तू भी अपने भाई हारून की तरह कूच करके अपने बापदादा से जा मिलेगा,


इसमाईल 137 साल का था जब वह कूच करके अपने बापदादा से जा मिला।


यक़ीनन मैंने कभी भी अपना हाथ किसी ज़रूरतमंद के ख़िलाफ़ नहीं उठाया जब उसने अपनी मुसीबत में आवाज़ दी।


क्योंकि वह हमारी साख़्त जानता है, उसे याद है कि हम ख़ाक ही हैं।


ज़ियाफ़त करनेवालों के घर में जाने की निसबत मातम करनेवालों के घर में जाना बेहतर है, क्योंकि हर इनसान का अंजाम मौत ही है। जो ज़िंदा हैं वह इस बात पर ख़ूब ध्यान दें।


लेकिन इनसान फ़रक़ है। मरते वक़्त उस की हर तरह की ताक़त जाती रहती है, दम छोड़ते वक़्त उसका नामो-निशान तक नहीं रहता।


(क्योंकि अगर इनसान मर जाए तो क्या वह दुबारा ज़िंदा हो जाएगा?) फिर मैं अपनी सख़्त ख़िदमत के तमाम दिन बरदाश्त करता, उस वक़्त तक इंतज़ार करता जब तक मेरी सबुकदोशी न हो जाती।


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