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واعظ 2:21 - किताबे-मुक़द्दस

21 क्योंकि ख़ाह इनसान अपना काम हिकमत, इल्म और महारत से क्यों न करे, आख़िरकार उसे सब कुछ किसी के लिए छोड़ना है जिसने उसके लिए एक उँगली भी नहीं हिलाई। यह भी बातिल और बड़ी मुसीबत है।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

21 کیونکہ خواہ کویٔی آدمی اَپنا کام حِکمت، علم اَور ہُنر سے کیوں نہ کرتا ہو، آخِرکار اُسے سَب کچھ لازماً کسی دُوسرے کے لیٔے چھوڑکر جانا پڑتا ہے جِس نے اُس کے لیٔے کچھ محنت ہی نہیں کی۔ یہ بھی باطِل اَور ایک بڑی بدقسمتی ہے۔

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کِتابِ مُقادّس

21 کیونکہ اَیسا شخص بھی ہے جِس کے کام حِکمت اور دانائی اور کامیابی کے ساتھ ہیں لیکن وہ اُن کو دُوسرے آدمی کے لِئے جِس نے اُن میں کُچھ مِحنت نہیں کی اُس کی مِیراث کے لِئے چھوڑ جائے گا۔ یہ بھی بُطلان اور بلایِ عظِیم ہے۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

21 کیونکہ خواہ انسان اپنا کام حکمت، علم اور مہارت سے کیوں نہ کرے، آخرکار اُسے سب کچھ کسی کے لئے چھوڑنا ہے جس نے اُس کے لئے ایک اُنگلی بھی نہیں ہلائی۔ یہ بھی باطل اور بڑی مصیبت ہے۔

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واعظ 2:21
15 حوالہ جات  

लेकिन तू फ़रक़ है। तेरी आँखें और दिल नाजायज़ नफ़ा कमाने पर तुले रहते हैं। न तू बेक़ुसूर को क़त्ल करने से, न ज़ुल्म करने या जबरन कुछ लेने से झिजकता है।”


क्या देवदार की शानदार इमारतें बनवाने से यह साबित होता है कि तू बादशाह है? हरगिज़ नहीं! तेरे बाप को भी खाने-पीने की हर चीज़ मुयस्सर थी, लेकिन उसने इसका ख़याल किया कि इनसाफ़ और रास्ती क़ायम रहे। नतीजे में उसे बरकत मिली।


हिकमत जंग के हथियारों से बेहतर है, लेकिन एक ही गुनाहगार बहुत कुछ जो अच्छा है तबाह करता है।


फ़सह की ईद इसराईल में समुएल नबी के ज़माने से लेकर उस वक़्त तक इस तरह नहीं मनाई गई थी। इसराईल के किसी भी बादशाह ने उसे यों नहीं मनाया था जिस तरह यूसियाह ने उसे उस वक़्त इमामों, लावियों, यरूशलम और तमाम यहूदाह और इसराईल से आए हुए लोगों के साथ मिलकर मनाई।


यूसियाह वह कुछ करता रहा जो रब को पसंद था। वह अपने बाप दाऊद के अच्छे नमूने पर चलता रहा और उससे न दाईं, न बाईं तरफ़ हटा।


क्योंकि हर एक देख सकता है कि दानिशमंद भी वफ़ात पाते और अहमक़ और नासमझ भी मिलकर हलाक हो जाते हैं। सबको अपनी दौलत दूसरों के लिए छोड़नी पड़ती है।


तब मेरा दिल मायूस होकर हिम्मत हारने लगा, क्योंकि जो भी मेहनत-मशक़्क़त मैंने सूरज तले की थी वह बेकार-सी लगी।


मैंने यह भी देखा कि सब लोग इसलिए मेहनत-मशक़्क़त और महारत से काम करते हैं कि एक दूसरे से हसद करते हैं। यह भी बातिल और हवा को पकड़ने के बराबर है।


एक आदमी अकेला ही था। न उसके बेटा था, न भाई। वह बेहद मेहनत-मशक़्क़त करता रहा, लेकिन उस की आँखें कभी अपनी दौलत से मुतमइन न थीं। सवाल यह रहा, “मैं इतनी सिर-तोड़ कोशिश किसके लिए कर रहा हूँ? मैं अपनी जान को ज़िंदगी के मज़े लेने से क्यों महरूम रख रहा हूँ?” यह भी बातिल और ना-गवार मामला है।


चुनाँचे ऐ रब, मैं किसके इंतज़ार में रहूँ? तू ही मेरी वाहिद उम्मीद है!


उनकी क़ब्रें अबद तक उनके घर बनी रहेंगी, पुश्त-दर-पुश्त वह उनमें बसे रहेंगे, गो उन्हें ज़मीनें हासिल थीं जो उनके नाम पर थीं।


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