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واعظ 2:16 - किताबे-मुक़द्दस

16 क्योंकि अहमक़ की तरह दानिशमंद की याद भी हमेशा तक नहीं रहेगी। आनेवाले दिनों में सबकी याद मिट जाएगी। अहमक़ की तरह दानिशमंद को भी मरना ही है!

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

16 کیونکہ احمق کی طرح دانِشور آدمی کی یاد بھی طویل عرصہ تک باقی نہ رہے گی؛ اَور آنے والے دِنوں میں دونوں ہی بھُلا دئیے جایٔیں گے۔ احمق کی طرح دانِشور کو بھی مَرنا ہی ہے!

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کِتابِ مُقادّس

16 کیونکہ نہ دانِشور اور نہ احمق کی یادگار ابد تک رہے گی۔ اِس لِئے کہ آنے والے دِنوں میں سب کُچھ فراموش ہو چُکے گا اور دانِشور کیوں کر احمق کی طرح مَرتا ہے!

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

16 کیونکہ احمق کی طرح دانش مند کی یاد بھی ہمیشہ تک نہیں رہے گی۔ آنے والے دنوں میں سب کی یاد مٹ جائے گی۔ احمق کی طرح دانش مند کو بھی مرنا ہی ہے!

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واعظ 2:16
17 حوالہ جات  

जो पहले ज़िंदा थे उन्हें कोई याद नहीं करता, और जो आनेवाले हैं उन्हें भी वह याद नहीं करेंगे जो उनके बाद आएँगे।


कम अज़ कम जो ज़िंदा हैं वह जानते हैं कि हम मरेंगे। लेकिन मुरदे कुछ नहीं जानते, उन्हें मज़ीद कोई अज्र नहीं मिलना है। उनकी यादें भी मिट जाती हैं।


क्या तारीकी में तेरे मोजिज़े या मुल्के-फ़रामोश में तेरी रास्ती मालूम हो जाएगी?


होते होते एक नया बादशाह तख़्तनशीन हुआ जो यूसुफ़ से नावाक़िफ़ था।


एक बार मरना और अल्लाह की अदालत में हाज़िर होना हर इनसान के लिए मुक़र्रर है।


लेकिन फिर रब का ख़ौफ़ माननेवाले आपस में बात करने लगे, और रब ने ग़ौर से उनकी सुनी। उसके हुज़ूर यादगारी की किताब लिखी गई जिसमें उनके नाम दर्ज हैं जो रब का ख़ौफ़ मानते और उसके नाम का एहतराम करते हैं।


दानिशमंद को क्या हासिल है जिसके बाइस वह अहमक़ से बरतर है? इसका क्या फ़ायदा है कि ग़रीब आदमी ज़िंदों के साथ मुनासिब सुलूक करने का फ़न सीख ले?


दानिशमंद के सर में आँखें हैं जबकि अहमक़ अंधेरे ही में चलता है। लेकिन मैंने यह भी जान लिया कि दोनों का एक ही अंजाम है।


जब उस पर से हवा गुज़रे तो वह नहीं रहता, और उसके नामो-निशान का भी पता नहीं चलता।


क्योंकि हर एक देख सकता है कि दानिशमंद भी वफ़ात पाते और अहमक़ और नासमझ भी मिलकर हलाक हो जाते हैं। सबको अपनी दौलत दूसरों के लिए छोड़नी पड़ती है।


फिर दाऊद ने अबिनैर के बारे में मातमी गीत गाया,


मिसर में रहते हुए बहुत दिन गुज़र गए। इतने में यूसुफ़, उसके तमाम भाई और उस नसल के तमाम लोग मर गए।


मैंने दिल में कहा, “अहमक़ का-सा अंजाम मेरा भी होगा। तो फिर इतनी ज़्यादा हिकमत हासिल करने का क्या फ़ायदा है? यह भी बातिल है।”


ज़ियाफ़त करनेवालों के घर में जाने की निसबत मातम करनेवालों के घर में जाना बेहतर है, क्योंकि हर इनसान का अंजाम मौत ही है। जो ज़िंदा हैं वह इस बात पर ख़ूब ध्यान दें।


फिर मैंने देखा कि बेदीनों को इज़्ज़त के साथ दफ़नाया गया। यह लोग मक़दिस के पास आते-जाते थे! लेकिन जो रास्तबाज़ थे उनकी याद शहर में मिट गई। यह भी बातिल ही है।


शहर में एक आदमी रहता था जो दानिशमंद अलबत्ता ग़रीब था। इस शख़्स ने अपनी हिकमत से शहर को बचा लिया। लेकिन बाद में किसी ने भी ग़रीब को याद न किया।


ज़हीन की हिकमत इसमें है कि वह सोच-समझकर अपनी राह पर चले, लेकिन अहमक़ की हमाक़त सरासर धोका ही है।


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