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واعظ 11:10 - किताबे-मुक़द्दस

10 चुनाँचे अपने दिल से रंजीदगी और अपने जिस्म से दुख-दर्द दूर रख, क्योंकि जवानी और काले बाल दम-भर के ही हैं।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

10 پس غم کو اَپنے دِل سے دُور کرو اَور اَپنے جِسم کی تکلیفوں کو نکال دو، کیونکہ جَوانی اَور جوشِ جَوانی دونوں باطِل ہیں۔

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کِتابِ مُقادّس

10 پس غم کو اپنے دِل سے دُور کر اور بدی اپنے جِسم سے نِکال ڈال کیونکہ لڑکپن اور جوانی دونوں باطِل ہیں۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

10 چنانچہ اپنے دل سے رنجیدگی اور اپنے جسم سے دُکھ درد دُور رکھ، کیونکہ جوانی اور کالے بال دم بھر کے ہی ہیں۔

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واعظ 11:10
14 حوالہ جات  

मेरे अज़ीज़ो, यह तमाम वादे हमसे किए गए हैं। इसलिए आएँ, हम अपने आपको हर उस चीज़ से पाक-साफ़ करें जो जिस्म और रूह को आलूदा कर देती है। और हम ख़ुदा के ख़ौफ़ में मुकम्मल तौर पर मुक़द्दस बनने के लिए कोशाँ रहें।


जवानी की बुरी ख़ाहिशात से भागकर रास्तबाज़ी, ईमान, मुहब्बत और सुलह-सलामती के पीछे लगे रहें। और यह उनके साथ मिलकर करें जो ख़ुलूसदिली से ख़ुदावंद की परस्तिश करते हैं।


जवानी में ही अपने ख़ालिक़ को याद रख, इससे पहले कि मुसीबत के दिन आएँ, वह साल क़रीब आएँ जिनके बारे में तू कहेगा, “यह मुझे पसंद नहीं।”


मैंने तमाम कामों का मुलाहज़ा किया जो सूरज तले होते हैं, तो नतीजा यह निकला कि सब कुछ बातिल और हवा को पकड़ने के बराबर है।


वाइज़ फ़रमाता है, “बातिल ही बातिल, बातिल ही बातिल, सब कुछ बातिल ही बातिल है!”


देख, मेरी ज़िंदगी का दौरानिया तेरे सामने लमहा-भर का है। मेरी पूरी उम्र तेरे नज़दीक कुछ भी नहीं है। हर इनसान दम-भर का ही है, ख़ाह वह कितनी ही मज़बूती से खड़ा क्यों न हो। (सिलाह)


जवानी की जिस ताक़त से उस की हड्डियाँ भरी हैं वह उसके साथ ही ख़ाक में मिल जाएगी।


यह तेरा ही फ़ैसला है कि मैं तलख़ तजरबों से गुज़रूँ, तेरी ही मरज़ी है कि मैं अपनी जवानी के गुनाहों की सज़ा पाऊँ।


ऐ रब, मेरी जवानी के गुनाहों और मेरी बेवफ़ा हरकतों को याद न कर बल्कि अपनी भलाई की ख़ातिर और अपनी शफ़क़त के मुताबिक़ मेरा ख़याल रख।


बच्चे के दिल में हमाक़त टिकती है, लेकिन तरबियत की छड़ी उसे भगा देती है।


अक़्ल से ख़ाली आदमी किस तरह समझ पा सकता है? यह उतना ही नामुमकिन है जितना यह कि जंगली गधे से इनसान पैदा हो।


जब वह इधर-उधर घूमे फिरे तो साया ही है। उसका शोर-शराबा बातिल है, और गो वह दौलत जमा करने में मसरूफ़ रहे तो भी उसे मालूम नहीं कि बाद में किसके क़ब्ज़े में आएगी।”


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