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واعظ 10:14 - किताबे-मुक़द्दस

14 ऐसा शख़्स बातें करने से बाज़ नहीं आता, गो इनसान मुस्तक़बिल के बारे में कुछ नहीं जानता। कौन उसे बता सकता है कि उसके बाद क्या कुछ होगा?

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

14 اَور احمق بہت باتیں بناتا ہے۔ کویٔی اِنسان نہیں جانتا کہ آگے کیا ہونے والا ہے۔ کون اُسے بتا سَکتا ہے کہ اُس کے بعد کیا ہوگا؟

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کِتابِ مُقادّس

14 احمق بھی بُہت سی باتیں بناتا ہے پر آدمی نہیں بتا سکتا ہے کہ کیا ہو گا اور جو کُچھ اُس کے بعد ہو گا اُسے کَون سمجھا سکتا ہے؟

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

14 ایسا شخص باتیں کرنے سے باز نہیں آتا، گو انسان مستقبل کے بارے میں کچھ نہیں جانتا۔ کون اُسے بتا سکتا ہے کہ اُس کے بعد کیا کچھ ہو گا؟

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واعظ 10:14
13 حوالہ جات  

दानिशमंदों की ज़बान इल्मो-इरफ़ान फैलाती है जबकि अहमक़ का मुँह हमाक़त का ज़ोर से उबलनेवाला चश्मा है।


क्योंकि वह नहीं जानता कि मुस्तक़बिल कैसा होगा। कोई उसे यह नहीं बता सकता है।


किस को मालूम है कि उन थोड़े और बेकार दिनों के दौरान जो साये की तरह गुज़र जाते हैं इनसान के लिए क्या कुछ फ़ायदामंद है? कौन उसे बता सकता है कि उसके चले जाने पर सूरज तले क्या कुछ पेश आएगा?


क्योंकि जिस तरह हद से ज़्यादा मेहनत-मशक़्क़त से ख़ाब आने लगते हैं उसी तरह बहुत बातें करने से आदमी की हमाक़त ज़ाहिर होती है।


ग़रज़ मैंने जान लिया कि इनसान के लिए इससे बेहतर कुछ नहीं है कि वह अपने कामों में ख़ुश रहे, यही उसके नसीब में है। क्योंकि कौन उसे वह देखने के क़ाबिल बनाएगा जो उसके बाद पेश आएगा? कोई नहीं!


जहाँ बहुत बातें की जाती हैं वहाँ गुनाह भी आ मौजूद होता है, जो अपनी ज़बान को क़ाबू में रखे वह दानिशमंद है।


जब अय्यूब मुँह खोलता है तो बेमानी बातें निकलती हैं। जो मुतअद्दिद अलफ़ाज़ वह पेश करता है वह इल्म से ख़ाली हैं।”


वह अपने गुनाह में इज़ाफ़ा करके हमारे रूबरू अपने जुर्म पर शक डालता और अल्लाह पर मुतअद्दिद इलज़ामात लगाता है’।”


ख़ुशी के दिन ख़ुश हो, लेकिन मुसीबत के दिन ख़याल रख कि अल्लाह ने यह दिन भी बनाया और वह भी इसलिए कि इनसान अपने मुस्तक़बिल के बारे में कुछ मालूम न कर सके।


इन तमाम बातों पर मैंने दिल से ग़ौर किया। इनके मुआयने के बाद मैंने नतीजा निकाला कि रास्तबाज़ और दानिशमंद और जो कुछ वह करें अल्लाह के हाथ में हैं। ख़ाह मुहब्बत हो ख़ाह नफ़रत, इसकी भी समझ इनसान को नहीं आती, दोनों की जड़ें उससे पहले माज़ी में हैं।


अहमक़ का काम उसे थका देता है, और वह शहर का रास्ता भी नहीं जानता।


तूने शेख़ी मार मारकर मेरे ख़िलाफ़ कुफ़र बका है, लेकिन ख़बरदार! मैंने इन तमाम बातों पर तवज्जुह दी है।


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