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واعظ 1:17 - किताबे-मुक़द्दस

17 मैंने अपनी पूरी ज़हनी ताक़त इस पर लगाई कि हिकमत समझूँ, नीज़ कि मुझे दीवानगी और हमाक़त की समझ भी आए। लेकिन मुझे मालूम हुआ कि यह भी हवा को पकड़ने के बराबर है।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

17 چنانچہ مَیں نے اَپنا دِل حِکمت، حماقت اَور جہالت کو جاننے اَور سمجھنے میں لگایا تو مَعلُوم کیا کہ یہ بھی ہَوا کو پکڑنے کے برابر ہے۔

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کِتابِ مُقادّس

17 لیکن جب مَیں نے حِکمت کے جاننے اور حماقت و جہالت کے سمجھنے پر دِل لگایا تو معلُوم کِیا کہ یہ بھی ہوا کی چران ہے۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

17 مَیں نے اپنی پوری ذہنی طاقت اِس پر لگائی کہ حکمت سمجھوں، نیز کہ مجھے دیوانگی اور حماقت کی سمجھ بھی آئے۔ لیکن مجھے معلوم ہوا کہ یہ بھی ہَوا کو پکڑنے کے برابر ہے۔

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واعظ 1:17
14 حوالہ جات  

मैंने दिल में अपना जिस्म मै से तरो-ताज़ा करने और हमाक़त अपनाने के तरीक़े ढूँड निकाले। इसके पीछे भी मेरी हिकमत मालूम करने की कोशिश थी, क्योंकि मैं देखना चाहता था कि जब तक इनसान आसमान तले जीता रहे उसके लिए क्या कुछ करना मुफ़ीद है।


सब कुछ परखकर वह थामे रखें जो अच्छा है,


यों सोचते सोचते मैं ज़िंदगी से नफ़रत करने लगा। जो भी काम सूरज तले किया जाता है वह मुझे बुरा लगा, क्योंकि सब कुछ बातिल और हवा को पकड़ने के बराबर है।


मैंने यह भी देखा कि सब लोग इसलिए मेहनत-मशक़्क़त और महारत से काम करते हैं कि एक दूसरे से हसद करते हैं। यह भी बातिल और हवा को पकड़ने के बराबर है।


लेकिन दूसरी तरफ़ अगर कोई मुट्ठी-भर रोज़ी कमाकर सुकून के साथ ज़िंदगी गुज़ार सके तो यह इससे बेहतर है कि दोनों मुट्ठियाँ सिर-तोड़ मेहनत और हवा को पकड़ने की कोशिशों के बाद ही भरें।


दूर-दराज़ चीज़ों के आरज़ूमंद रहने की निसबत बेहतर यह है कि इनसान उन चीज़ों से लुत्फ़ उठाए जो आँखों के सामने ही हैं। यह भी बातिल और हवा को पकड़ने के बराबर है।


सूरज तले हर काम की यही मुसीबत है कि हर एक के नसीब में एक ही अंजाम है। इनसान का मुलाहज़ा कर। उसका दिल बुराई से भरा रहता बल्कि उम्र-भर उसके दिल में बेहुदगी रहती है। लेकिन आख़िरकार उसे मुरदों में ही जा मिलना है।


मैं सोच-बिचार में पड़ गया ताकि बात समझूँ, लेकिन सोचते सोचते थक गया, अज़ियत में सिर्फ़ इज़ाफ़ा हुआ।


क्योंकि इनसानो-हैवान का एक ही अंजाम है। दोनों दम छोड़ते, दोनों में एक-सा दम है, इसलिए इनसान को हैवान की निसबत ज़्यादा फ़ायदा हासिल नहीं होता। सब कुछ बातिल ही है।


मैंने अपनी पूरी ज़हनी ताक़त इस पर लगाई कि हिकमत जान लूँ और ज़मीन पर इनसान की मेहनतों का मुआयना कर लूँ, ऐसी मेहनतें कि उसे दिन-रात नींद नहीं आती।


वाइज़ फ़रमाता है, “बातिल ही बातिल! सब कुछ बातिल ही बातिल है!”


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