19 चोरी न करना।
19 تُم چوری نہ کرنا۔
19 تُو چوری نہ کرنا۔
19 چوری نہ کرنا۔
चोरी न करना।
मसलन शरीअत में लिखा है, “क़त्ल न करना, ज़िना न करना, चोरी न करना, लालच न करना।” और दीगर जितने अहकाम हैं इस एक ही हुक्म में समाए हुए हैं कि “अपने पड़ोसी से वैसी मुहब्बत रखना जैसी तू अपने आपसे रखता है।”
चोर अब से चोरी न करे बल्कि ख़ूब मेहनत-मशक़्क़त करके अपने हाथों से अच्छा काम करे। हाँ, वह इतना कमाए कि ज़रूरतमंदों को भी कुछ दे सके।
चोरी न करना, झूट न बोलना, एक दूसरे को धोका न देना।
कोसना, झूट बोलना, चोरी और ज़िना करना आम हो गया है। रोज़ बरोज़ क़त्लो-ग़ारत की नई ख़बरें मिलती रहती हैं।