मसलन शरीअत में लिखा है, “क़त्ल न करना, ज़िना न करना, चोरी न करना, लालच न करना।” और दीगर जितने अहकाम हैं इस एक ही हुक्म में समाए हुए हैं कि “अपने पड़ोसी से वैसी मुहब्बत रखना जैसी तू अपने आपसे रखता है।”
तब दाऊद ने क़ासिदों को बत-सबा के पास भेजा ताकि उसे महल में ले आएँ। औरत आई तो दाऊद उससे हमबिसतर हुआ। फिर बत-सबा अपने घर वापस चली गई। (थोड़ी देर पहले उसने वह रस्म अदा की थी जिसका तक़ाज़ा शरीअत माहवारी के बाद करती है ताकि औरत दुबारा पाक-साफ़ हो जाए)।