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عاموس 5:13 - किताबे-मुक़द्दस

13 इसलिए समझदार शख़्स इस वक़्त ख़ामोश रहता है, वक़्त इतना ही बुरा है।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

13 اِس لیٔے اَیسے وقت میں دانا چُپ رہتاہے کیونکہ وقت بُرا ہے۔

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کِتابِ مُقادّس

13 اِس لِئے اِن ایّام میں پیش بِین خاموش ہو رہیں گے کیونکہ یہ بُرا وقت ہے۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

13 اِس لئے سمجھ دار شخص اِس وقت خاموش رہتا ہے، وقت اِتنا ہی بُرا ہے۔

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عاموس 5:13
17 حوالہ جات  

लेकिन यह बात जान लें कि आख़िरी दिनों में हौलनाक लमहे आएँगे।


चुनाँचे रब फ़रमाता है, “मैं इस क़ौम पर आफ़त का मनसूबा बाँध रहा हूँ, ऐसा फंदा जिसमें से तुम अपनी गरदनों को निकाल नहीं सकोगे। तब तुम सर उठाकर नहीं फिरोगे, क्योंकि वक़्त बुरा ही होगा।


लेकिन बिलावजह किसी पर इलज़ाम मत लगाना, न ख़ाहमख़ाह किसी की तंबीह करो! ऐ इमामो, मैं तुम्हीं पर इलज़ाम लगाता हूँ।


फाड़ने और सीकर जोड़ने का, ख़ामोश रहने और बोलने का,


चुनाँचे अल्लाह का पूरा ज़िरा-बकतर पहन लें ताकि आप मुसीबत के दिन इबलीस के हमलों का सामना कर सकें बल्कि सब कुछ सरंजाम देने के बाद क़ायम रह सकें।


यह सब कुछ सुनकर मेरा जिस्म लरज़ उठा। इतना शोर था कि मेरे दाँत बजने लगे, मेरी हड्डियाँ सड़ने लगीं, मेरे घुटने काँप उठे। अब मैं उस दिन के इंतज़ार में रहूँगा जब आफ़त उस क़ौम पर आएगी जो हम पर हमला कर रही है।


फिर जब कोई रिश्तेदार आए ताकि लाशों को उठाकर दफ़नाने जाए और देखे कि घर के किसी कोने में अभी कोई छुपकर बच गया है तो वह उससे पूछेगा, “क्या आपके अलावा कोई और भी बचा है?” तो वह जवाब देगा, “नहीं, एक भी नहीं।” तब रिश्तेदार कहेगा, “चुप! रब के नाम का ज़िक्र मत करना, ऐसा न हो कि वह तुझे भी मौत के घाट उतारे।”


नबी के पास पहुँचकर उन्होंने हिज़क़ियाह का पैग़ाम सुनाया, “आज हम बड़ी मुसीबत में हैं। सज़ा के इस दिन असूरियों ने हमारी सख़्त बेइज़्ज़ती की है। हमारा हाल दर्दे-ज़ह में मुब्तला उस औरत का-सा है जिसके पेट से बच्चा निकलने को है, लेकिन जो इसलिए नहीं निकल सकता कि माँ की ताक़त जाती रही है।


फ़सील पर खड़े लोग ख़ामोश रहे। उन्होंने कोई जवाब न दिया, क्योंकि बादशाह ने हुक्म दिया था कि जवाब में एक लफ़्ज़ भी न कहें।


नीज़, कोई भी इनसान नहीं जानता कि मुसीबत का वक़्त कब उस पर आएगा। जिस तरह मछलियाँ ज़ालिम जाल में उलझ जाती या परिंदे फंदे में फँस जाते हैं उसी तरह इनसान मुसीबत में फँस जाता है। मुसीबत अचानक ही उस पर आ जाती है।


फ़सील पर खड़े लोग ख़ामोश रहे। उन्होंने कोई जवाब न दिया, क्योंकि बादशाह ने हुक्म दिया था कि जवाब में एक लफ़्ज़ भी न कहें।


क्या मैं मज़ीद इंतज़ार करूँ, गो आप ख़ामोश हो गए हैं, आप रुककर मज़ीद जवाब नहीं दे सकते?


मैं ऐसा शख़्स बन गया हूँ जो न सुनता, न जवाब में एतराज़ करता है।


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