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اعمال 6:1 - किताबे-मुक़द्दस

1 उन दिनों में जब ईसा के शागिर्दों की तादाद बढ़ती गई तो यूनानी ज़बान बोलनेवाले ईमानदार इबरानी बोलनेवाले ईमानदारों के बारे में बुड़बुड़ाने लगे। उन्होंने कहा, “जब रोज़मर्रा का खाना तक़सीम होता है तो हमारी बेवाओं को नज़रंदाज़ किया जाता है।”

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

1 اُن دِنوں جَب شاگردوں کی تعداد بڑھتی جا رہی تھی تو یُونانی یہُودی مقامی یہُودیوں کی شکایت کرکے کہنے لگے کیونکہ روزمرّہ کے کھانے کی تقسیم کے وقت ہماری بیواؤں کو نظر اَنداز کیا جاتا ہے۔

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کِتابِ مُقادّس

1 اُن دِنوں میں جب شاگِرد بُہت ہوتے جاتے تھے تو یُونانی مائِل یہُودی عِبرانِیوں کی شِکایت کرنے لگے۔ اِس لِئے کہ روزانہ خبرگِیری میں اُن کی بیواؤں کے بارے میں غفلت ہوتی تھی۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

1 اُن دنوں میں جب عیسیٰ کے شاگردوں کی تعداد بڑھتی گئی تو یونانی زبان بولنے والے ایمان دار عبرانی بولنے والے ایمان داروں کے بارے میں بڑبڑانے لگے۔ اُنہوں نے کہا، ”جب روزمرہ کا کھانا تقسیم ہوتا ہے تو ہماری بیواؤں کو نظرانداز کیا جاتا ہے۔“

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اعمال 6:1
38 حوالہ جات  

रसूलों के पाँवों में रख दी। यों जमाशुदा पैसों में से हर एक को उतने दिए जाते जितनों की उसे ज़रूरत होती थी।


जिन्होंने पतरस की बात क़बूल की उनका बपतिस्मा हुआ। यों उस दिन जमात में तक़रीबन 3,000 अफ़राद का इज़ाफ़ा हुआ।


भाइयो, एक दूसरे पर मत बुड़बुड़ाना, वरना आपकी अदालत की जाएगी। मुंसिफ़ तो दरवाज़े पर खड़ा है।


पतरस उठकर उनके साथ चला गया। वहाँ पहुँचकर लोग उसे बालाख़ाने में ले गए। तमाम बेवाओं ने उसे घेर लिया और रोते चिल्लाते वह सारी क़मीसें और बाक़ी लिबास दिखाने लगीं जो तबीता ने उनके लिए बनाए थे जब वह अभी ज़िंदा थी।


यों अल्लाह का पैग़ाम फैलता गया। यरूशलम में ईमानदारों की तादाद निहायत बढ़ती गई और बैतुल-मुक़द्दस के बहुत-से इमाम भी ईमान ले आए।


और अल्लाह की तमजीद करते रहे। उस वक़्त वह तमाम लोगों के मंज़ूरे-नज़र थे। और ख़ुदावंद रोज़ बरोज़ जमात में नजातयाफ़्ता लोगों का इज़ाफ़ा करता रहा।


मेरा ख़तना हुआ जब मैं अभी आठ दिन का बच्चा था। मैं इसराईल क़ौम के क़बीले बिनयमीन का हूँ, ऐसा इबरानी जिसके वालिदैन भी इबरानी थे। मैं फ़रीसियों का मेंबर था जो यहूदी शरीअत के कटर पैरोकार हैं।


लेकिन उनमें से कुरेन और क़ुबरुस के कुछ आदमी अंताकिया शहर जाकर यूनानियों को भी ख़ुदावंद ईसा के बारे में ख़ुशख़बरी सुनाने लगे।


पतरस ने उसका हाथ पकड़ लिया और उठने में उस की मदद की। फिर उसने मुक़द्दसों और बेवाओं को बुलाकर तबीता को ज़िंदा उनके सुपुर्द किया।


उसने यूनानी ज़बान बोलनेवाले यहूदियों से भी मुख़ातिब होकर बहस की, लेकिन जवाब में वह उसे क़त्ल करने की कोशिश करने लगे।


तो भी ख़ुदावंद पर ईमान रखनेवाले मर्दो-ख़वातीन की तादाद बढ़ती गई।


लेकिन जिन्होंने उनका पैग़ाम सुन लिया था उनमें से बहुत-से लोग ईमान लाए। यों ईमानदारों में मर्दों की तादाद बढ़कर तक़रीबन 5,000 तक पहुँच गई।


एक दूसरे से भाइयों की-सी मुहब्बत रखते रहें।


क्या वह इबरानी हैं? मैं भी हूँ। क्या वह इसराईली हैं? मैं भी हूँ। क्या वह इब्राहीम की औलाद हैं? मैं भी हूँ।


अपनी मिलकियत और माल फ़रोख़्त करके उन्होंने हर एक को उस की ज़रूरत के मुताबिक़ दिया।


शरीअत के आलिमो और फ़रीसियो, तुम पर अफ़सोस! रियाकारो! तुम लोगों के सामने आसमान की बादशाही पर ताला लगाते हो। न तुम ख़ुद दाख़िल होते हो, न उन्हें दाख़िल होने देते हो जो अंदर जाना चाहते हैं।


रब्बुल-अफ़वाज फ़रमाता है, “मैं तुम्हारी अदालत करने के लिए तुम्हारे पास आऊँगा। जल्द ही मैं उनके ख़िलाफ़ गवाही दूँगा जो मेरा ख़ौफ़ नहीं मानते, जो जादूगर और ज़िनाकार हैं, जो झूटी क़सम खाते, मज़दूरों का हक़ मारते, बेवाओं और यतीमों पर ज़ुल्म करते और अजनबियों का हक़ मारते हैं।


उस वक़्त वहाँ शुक्रगुज़ारी के गीत और ख़ुशी मनानेवालों की आवाज़ें बुलंद हो जाएँगी। और मैं ध्यान दूँगा कि उनकी तादाद कम न हो जाए बल्कि मज़ीद बढ़ जाए। उन्हें हक़ीर नहीं समझा जाएगा बल्कि मैं उनकी इज़्ज़त बहुत बढ़ा दूँगा।


एक वक़्त आएगा कि याक़ूब जड़ पकड़ेगा। इसराईल को फूल लग जाएंगे, उस की कोंपलें निकलेंगी और दुनिया उसके फल से भर जाएगी।


नेक काम करना सीख लो। इनसाफ़ के तालिब रहो, मज़लूमों का सहारा बनो, यतीमों का इनसाफ़ करो और बेवाओं के हक़ में लड़ो!”


मुल्क में अनाज की कसरत हो, पहाड़ों की चोटियों पर भी उस की फ़सलें लहलहाएँ। उसका फल लुबनान के फल जैसा उम्दा हो, शहरों के बाशिंदे हरियाली की तरह फलें-फूलें।


या क्या आप समझते हैं कि कलामे-मुक़द्दस की यह बात बेतुकी-सी है कि अल्लाह ग़ैरत से उस रूह का आरज़ूमंद है जिसको उसने हमारे अंदर सुकूनत करने दिया?


ख़ुदा बाप की नज़र में दीनदारी का पाक और बेदाग़ इज़हार यह है, यतीमों और बेवाओं की देख-भाल करना जब वह मुसीबत में हों और अपने आपको दुनिया की आलूदगी से बचाए रखना।


जिस बेवा की उम्र 60 साल से कम है उसे बेवाओं की फ़हरिस्त में दर्ज न किया जाए। शर्त यह भी है कि जब उसका शौहर ज़िंदा था तो वह उस की वफ़ादार रही हो


और न बुड़बुड़ाएँ जिस तरह उनमें से बाज़ बुड़बुड़ाने लगे और नतीजे में हलाक करनेवाले फ़रिश्ते के हाथों मारे गए।


“हमने तो तुमको सख़्ती से मना किया था कि इस आदमी का नाम लेकर तालीम न दो। इसके बरअक्स तुमने न सिर्फ़ अपनी तालीम यरूशलम की हर जगह तक पहुँचा दी है बल्कि हमें इस आदमी की मौत के ज़िम्मादार भी ठहराना चाहते हो।”


तेरे बाशिंदे अपने माँ-बाप को हक़ीर जानते हैं। वह परदेसी पर सख़्ती करके यतीमों और बेवाओं पर ज़ुल्म करते हैं।


जिस दिन तू अपनी फ़ौज को खड़ा करेगा तेरी क़ौम ख़ुशी से तेरे पीछे हो लेगी। तू मुक़द्दस शानो-शौकत से आरास्ता होकर तुलूए-सुबह के बातिन से अपनी जवानी की ओस पाएगा।


क्या मैंने पस्तहालों की ज़रूरियात पूरी करने से इनकार किया या बेवा की आँखों को बुझने दिया? हरगिज़ नहीं!


तबाह होनेवाले मुझे बरकत देते थे। मेरे बाइस बेवाओं के दिलों से ख़ुशी के नारे उभर आते थे।


हर तीसरे साल अपनी तमाम फ़सलों का दसवाँ हिस्सा लावियों, परदेसियों, यतीमों और बेवाओं को देना ताकि वह तेरे शहरों में खाना खाकर सेर हो जाएँ।


तब बारह रसूलों ने शागिर्दों की पूरी जमात को इकट्ठा करके कहा, “यह ठीक नहीं कि हम अल्लाह का कलाम सिखाने की ख़िदमत को छोड़कर खाना तक़सीम करने में मसरूफ़ रहें।


जब उसे मिला तो वह उसे अंताकिया ले आया। वहाँ वह दोनों एक पूरे साल तक जमात में शामिल होते और बहुत-से लोगों को सिखाते रहे। अंताकिया पहला मक़ाम था जहाँ ईमानदार मसीही कहलाने लगे।


अगबुस की बात सुनकर अंताकिया के शागिर्दों ने फ़ैसला किया कि हममें से हर एक अपनी माली गुंजाइश के मुताबिक़ कुछ दे ताकि उसे यहूदिया में रहनेवाले भाइयों की इमदाद के लिए भेजा जा सके।


अगर आपकी नेमत ख़िदमत करना है तो ख़िदमत करें। अगर आपकी नेमत तालीम देना है तो तालीम दें।


उन बेवाओं की मदद करके उनकी इज़्ज़त करें जो वाक़ई ज़रूरतमंद हैं।


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