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اعمال 5:34 - किताबे-मुक़द्दस

34 लेकिन एक फ़रीसी आलिम इजलास में खड़ा हुआ जिसका नाम जमलियेल था। पूरी क़ौम में वह इज़्ज़तदार था। उसने हुक्म दिया कि रसूलों को थोड़ी देर के लिए इजलास से निकाल दिया जाए।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

34 لیکن ایک فرِیسی نے جِس کا نام گَملی ایل تھا، جو شَریعت کا مُعلّم تھا، جو سَب لوگوں میں مُعزّز سمجھا جاتا تھا، مَجلِس عامہ میں کھڑے ہوکر حُکم دیا کہ اِن آدمیوں کو تھوڑی دیر کے لیٔے باہر بھیج دو۔

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کِتابِ مُقادّس

34 مگر گملی ایل نام ایک فرِیسی نے جو شرع کا مُعلِّم اور سب لوگوں میں عِزّت دار تھا عدالت میں کھڑے ہو کر حُکم دِیا کہ اِن آدمِیوں کو تھوڑی دیر کے لِئے باہر کر دو۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

34 لیکن ایک فریسی عالِم اجلاس میں کھڑا ہوا جس کا نام جملی ایل تھا۔ پوری قوم میں وہ عزت دار تھا۔ اُس نے حکم دیا کہ رسولوں کو تھوڑی دیر کے لئے اجلاس سے نکال دیا جائے۔

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اعمال 5:34
14 حوالہ جات  

“मैं यहूदी हूँ और किलिकिया के शहर तरसुस में पैदा हुआ। लेकिन मैंने इसी शहर यरूशलम में परवरिश पाई और जमलियेल के ज़ेरे-निगरानी तालीम हासिल की। उन्होंने मुझे तफ़सील और एहतियात से हमारे बापदादा की शरीअत सिखाई। उस वक़्त मैं भी आपकी तरह अल्लाह के लिए सरगरम था।


तीन दिन के बाद वह आख़िरकार बैतुल-मुक़द्दस में पहुँचे। वहाँ ईसा दीनी उस्तादों के दरमियान बैठा उनकी बातें सुन रहा और उनसे सवालात पूछ रहा था।


एक दिन वह लोगों को तालीम दे रहा था। फ़रीसी और शरीअत के आलिम भी गलील और यहूदिया के हर गाँव और यरूशलम से आकर उसके पास बैठे थे। और रब की क़ुदरत उसे शफ़ा देने के लिए तहरीक दे रही थी।


क्योंकि इनसान का तैश भी तेरी तमजीद का बाइस है। उसके तैश का आख़िरी नतीजा तेरा जलाल ही है।


चुनाँचे उन्होंने उन दोनों को इजलास में से बाहर जाने को कहा और आपस में सलाह-मशवरा करने लगे,


यह सुनकर बुज़ुर्गों और अवाम के तमाम लोगों ने इमामों और नबियों से कहा, “यह आदमी सज़ाए-मौत के लायक़ नहीं है! क्योंकि उसने रब हमारे ख़ुदा का नाम लेकर हमसे बात की है।”


फिर मुल्क के कुछ बुज़ुर्ग खड़े होकर पूरी जमात से मुख़ातिब हुए,


और गो इलनातन, दिलायाह और जमरियाह ने बादशाह से मिन्नत की कि वह तूमार को न जलाए तो भी उसने उनकी न मानी


ईसा ने जवाब दिया, “तू तो इसराईल का उस्ताद है। क्या इसके बावुजूद भी यह बातें नहीं समझता?


फ़रिश्ते की सुनकर रसूल सुबह-सवेरे बैतुल-मुक़द्दस में जाकर तालीम देने लगे। अब ऐसा हुआ कि इमामे-आज़म अपने साथियों समेत पहुँचा और यहूदी अदालते-आलिया का इजलास मुनअक़िद किया। इसमें इसराईल के तमाम बुज़ुर्ग शरीक हुए। फिर उन्होंने अपने मुलाज़िमों को क़ैदख़ाने में भेज दिया ताकि रसूलों को लाकर उनके सामने पेश किया जाए।


चुनाँचे उन्होंने रसूलों को लाकर इजलास के सामने खड़ा किया। इमामे-आज़म उनसे मुख़ातिब हुआ,


फिर उसने कहा, “मेरे इसराईली भाइयो, ग़ौर से सोचें कि आप इन आदमियों के साथ क्या करेंगे।


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