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اعمال 28:30 - किताबे-मुक़द्दस

30 पौलुस पूरे दो साल अपने किराए के घर में रहा। जो भी उसके पास आया उसका उसने इस्तक़बाल करके

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

30 پَولُسؔ پُورے دو بَرس تک اَپنے کرایہ کے مکان میں رہے اَورجو اُن سے مُلاقات کرنے آتے تھے اُن سَب سے مِلا کرتے تھے۔

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کِتابِ مُقادّس

30 اور وہ پُورے دو برس اپنے کِرایہ کے گھر میں رہا۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

30 پولس پورے دو سال اپنے کرائے کے گھر میں رہا۔ جو بھی اُس کے پاس آیا اُس کا اُس نے استقبال کر کے

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اعمال 28:30
14 حوالہ جات  

तो वह उसे रस्सों से खींचकर हौज़ से निकाल लाए। इसके बाद यरमियाह शाही मुहाफ़िज़ों के सहन में रहा।


[जब उसने यह कहा तो यहूदी आपस में बहस-मुबाहसा करते हुए चले गए।]


दिलेरी से अल्लाह की बादशाही की मुनादी की और ख़ुदावंद ईसा मसीह की तालीम दी। और किसी ने मुदाख़लत न की।


क्योंकि प्रैटोरियुम के तमाम अफ़राद और बाक़ी सबको मालूम हो गया है कि मैं मसीह की ख़ातिर क़ैदी हूँ।


तब सिदक़ियाह बादशाह ने हुक्म दिया कि यरमियाह को शाही मुहाफ़िज़ों के सहन में रखा जाए। उसने यह हिदायत भी दी कि जब तक शहर में रोटी दस्तयाब हो यरमियाह को नानबाई-गली से हर रोज़ एक रोटी मिलती रहे। चुनाँचे यरमियाह मुहाफ़िज़ों के सहन में रहने लगा।


उसने जवाब दिया, “आओ, ख़ुद देख लो।” चुनाँचे वह उसके साथ गए। उन्होंने वह जगह देखी जहाँ वह ठहरा हुआ था और दिन के बाक़ी वक़्त उसके पास रहे। शाम के तक़रीबन चार बज गए थे।


इन वाक़ियात के बाद पौलुस ने मकिदुनिया और अख़या में से गुज़रकर यरूशलम जाने का फ़ैसला किया। उसने कहा, “इसके बाद लाज़िम है कि मैं रोम भी जाऊँ।”


दो साल गुज़र गए तो फ़ेलिक्स की जगह पुरकियुस फ़ेस्तुस आ गया। ताहम उसने पौलुस को क़ैदख़ाने में छोड़ दिया, क्योंकि वह यहूदियों के साथ रिआयत बरतना चाहता था।


हमारे रोम में पहुँचने पर पौलुस को अपने किराए के मकान में रहने की इजाज़त मिली, गो एक फ़ौजी उस की पहरादारी करने के लिए उसके साथ रहा।


क्योंकि मैं चाहता हूँ कि जब मैं अल्लाह की मरज़ी से आपके पास आऊँगा तो मेरे दिल में ख़ुशी हो और हम एक दूसरे की रिफ़ाक़त से तरो-ताज़ा हो जाएँ।


जब लोग हमें मारते और क़ैद में डालते हैं, जब हम बेकाबू हुजूमों का सामना करते हैं, जब हम मेहनत-मशक़्क़त करते, रात के वक़्त जागते और भूके रहते हैं,


क्या वह मसीह के ख़ादिम हैं? (अब तो मैं गोया बेख़ुद हो गया हूँ कि इस तरह की बातें कर रहा हूँ!) मैं उनसे ज़्यादा मसीह की ख़िदमत करता हूँ। मैंने उनसे कहीं ज़्यादा मेहनत-मशक़्क़त की, ज़्यादा दफ़ा जेल में रहा, मेरे ज़्यादा सख़्ती से कोड़े लगाए गए और मैं बार बार मरने के ख़तरों में रहा हूँ।


बल्कि जब वह रोम शहर पहुँचा तो बड़ी कोशिशों से मेरा खोज लगाकर मुझे मिला।


कि वक़्त बेवक़्त कलामे-मुक़द्दस की मुनादी करने के लिए तैयार रहें। बड़े सब्र से ईमानदारों को तालीम देकर उन्हें समझाएँ, मलामत करें और उनकी हौसलाअफ़्ज़ाई भी करें।


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