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۲-تھسلنیکیوں 3:8 - किताबे-मुक़द्दस

8 हमने किसी का खाना भी पैसे दिए बग़ैर न खाया, बल्कि दिन-रात सख़्त मेहनत-मशक़्क़त करते रहे ताकि आपमें से किसी के लिए बोझ न बनें।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

8 ہم کسی کی مُفت کی روٹی نہیں کھاتے تھے۔ بَلکہ، رات دِن محنت مشقّت کرتے تھے، تاکہ ہم تُم میں سے کسی پر بوجھ نہ بنیں۔

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کِتابِ مُقادّس

8 اور کِسی کی روٹی مُفت نہ کھاتے تھے بلکہ مِحنت مُشقّت سے رات دِن کام کرتے تھے تاکہ تُم میں سے کِسی پر بوجھ نہ ڈالیں۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

8 ہم نے کسی کا کھانا بھی پیسے دیئے بغیر نہ کھایا، بلکہ دن رات سخت محنت مشقت کرتے رہے تاکہ آپ میں سے کسی کے لئے بوجھ نہ بنیں۔

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۲-تھسلنیکیوں 3:8
14 حوالہ جات  

हमारी रोज़ की रोटी आज हमें दे।


भाइयो, बेशक आपको याद है कि हमने कितनी सख़्त मेहनत-मशक़्क़त की। दिन-रात हम काम करते रहे ताकि अल्लाह की ख़ुशख़बरी सुनाते वक़्त किसी पर बोझ न बनें।


और चूँकि उनका पेशा भी ख़ैमे सिलाई करना था इसलिए वह उनके घर ठहरकर रोज़ी कमाने लगा।


अपनी इज़्ज़त इसमें बरक़रार रखें कि आप सुकून से ज़िंदगी गुज़ारें, अपने फ़रायज़ अदा करें और अपने हाथों से काम करें, जिस तरह हमने आपको कह दिया था।


चोर अब से चोरी न करे बल्कि ख़ूब मेहनत-मशक़्क़त करके अपने हाथों से अच्छा काम करे। हाँ, वह इतना कमाए कि ज़रूरतमंदों को भी कुछ दे सके।


और बड़ी मशक़्क़त से हम अपने हाथों से रोज़ी कमाते हैं। लान-तान करनेवालों को हम बरकत देते हैं, ईज़ा देनेवालों को बरदाश्त करते हैं।


ख़ुदावंद ईसा मसीह के नाम में हम ऐसे लोगों को हुक्म देते और समझाते हैं कि आराम से काम करके अपनी रोज़ी कमाएँ।


और जब मैं आपके पास था और ज़रूरतमंद था तो मैं किसी पर बोझ न बना, क्योंकि जो भाई मकिदुनिया से आए उन्होंने मेरी ज़रूरियात पूरी कीं। माज़ी में मैं आप पर बोझ न बना और आइंदा भी नहीं बनूँगा।


आप ख़ुद जानते हैं कि मैंने अपने इन हाथों से काम करके न सिर्फ़ अपनी बल्कि अपने साथियों की ज़रूरियात भी पूरी कीं।


वह सुस्ती की रोटी नहीं खाती बल्कि अपने घर में हर मामले की देख-भाल करती है।


रोज़ाना एक बैल, छः बेहतरीन भेड़-बकरियाँ और बहुत-से परिंदे मेरे लिए ज़बह करके तैयार किए जाते, और दस दस दिन के बाद हमें कई क़िस्म की बहुत-सी मै ख़रीदनी पड़ती थी। इन अख़राजात के बावुजूद मैंने गवर्नर के लिए मुक़र्ररा वज़ीफ़ा न माँगा, क्योंकि क़ौम पर बोझ वैसे भी बहुत ज़्यादा था।


क्या हमें खाने-पीने का हक़ नहीं?


मैंने जाँफ़िशानी से सख़्त मेहनत-मशक़्क़त की है और कई रात जागता रहा हूँ, मैं भूका और प्यासा रहा हूँ, मैंने बहुत रोज़े रखे हैं। मुझे सर्दी और नंगेपन का तजरबा हुआ है।


क्यों न हम दरियाए-यरदन पर जाएँ और हर आदमी वहाँ से शहतीर ले आए ताकि हम रहने की नई जगह बना सकें।” इलीशा बोला, “ठीक है, जाएँ।”


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