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۲-سموئیل 15:30 - किताबे-मुक़द्दस

30 दाऊद रोते रोते ज़ैतून के पहाड़ पर चढ़ने लगा। उसका सर ढाँपा हुआ था, और वह नंगे पाँव चल रहा था। बाक़ी सबके सर भी ढाँपे हुए थे, सब रोते रोते चढ़ने लगे।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

30 داویؔد کوہِ زَیتُون کی چڑھائی پر چڑھتا جا رہاتھا اَور اُس کی آنکھوں سے آنسُو بہ رہے تھے۔ اُس کا سَر ڈھکا ہُوا تھا اَور وہ ننگے پاؤں تھا۔ اُس کے ساتھ سَب لوگوں نے بھی اَپنے سَر ڈھانکے ہُوئے تھے اَور وہ روتے ہُوئے اُوپر چڑھتے جا رہے تھے۔

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کِتابِ مُقادّس

30 اور داؤُد کوہِ زَیتُوؔن کی چڑھائی پر چڑھنے لگا اور روتا جا رہا تھا۔ اُس کا سر ڈھکا تھا اور وہ ننگے پاؤں چل رہا تھا اور وہ سب لوگ جو اُس کے ساتھ تھے اُن میں سے ہر ایک نے اپنا سر ڈھانک رکھّا تھا۔ وہ اُوپر چڑھتے اور روتے جاتے تھے۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

30 داؤد روتے روتے زیتون کے پہاڑ پر چڑھنے لگا۔ اُس کا سر ڈھانپا ہوا تھا، اور وہ ننگے پاؤں چل رہا تھا۔ باقی سب کے سر بھی ڈھانپے ہوئے تھے، سب روتے روتے چڑھنے لگے۔

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۲-سموئیل 15:30
21 حوالہ جات  

फिर मर्दकी शाही सहन के दरवाज़े के पास वापस आया। लेकिन हामान उदास होकर जल्दी से अपने घर चला गया। शर्म के मारे उसने मुँह पर कपड़ा डाल लिया था।


बादशाह अभी कमरे में बैठा था। अपने मुँह को ढाँपकर वह चीख़ता-चिल्लाता रहा, “हाय मेरे बेटे अबीसलूम! हाय अबीसलूम, मेरे बेटे, मेरे बेटे!”


न तुम सर से पगड़ी, न पाँवों से जूते उतारोगे। तुम्हारे हाँ न मातम का शोर, न रोने की आवाज़ सुनाई देगी बल्कि तुम अपने गुनाहों के सबब से ज़ाया होते जाओगे। तुम चुपके से एक दूसरे के साथ बैठकर कराहते रहोगे।


बेशक चुपके से कराहता रह, लेकिन अपनी अज़ीज़ा के लिए अलानिया मातम न कर। न सर से पगड़ी उतार और न पाँवों से जूते। न दाढ़ी को ढाँपना, न जनाज़े का खाना खा।”


अगर एक अज़ु दुख में हो तो उसके साथ दीगर तमाम आज़ा भी दुख महसूस करते हैं। अगर एक अज़ु सरफ़राज़ हो जाए तो उसके साथ बाक़ी तमाम आज़ा भी मसरूर होते हैं।


ख़ुशी मनानेवालों के साथ ख़ुशी मनाएँ और रोनेवालों के साथ रोएँ।


फिर वह ज़ैतून के पहाड़ से यरूशलम शहर वापस चले गए। (यह पहाड़ शहर से तक़रीबन एक किलोमीटर दूर है।)


फिर वह शहर से निकलकर मामूल के मुताबिक़ ज़ैतून के पहाड़ की तरफ़ चल दिया। उसके शागिर्द उसके पीछे हो लिए।


हर रोज़ ईसा बैतुल-मुक़द्दस में तालीम देता रहा और हर शाम वह निकलकर उस पहाड़ पर रात गुज़ारता था जिसका नाम ज़ैतून का पहाड़ है।


जब वह यरूशलम के क़रीब पहुँचा तो शहर को देखकर रो पड़ा


चलते चलते वह उस जगह के क़रीब पहुँचा जहाँ रास्ता ज़ैतून के पहाड़ पर से उतरने लगता है। इस पर शागिर्दों का पूरा हुजूम ख़ुशी के मारे ऊँची आवाज़ से उन मोजिज़ों के लिए अल्लाह की तमजीद करने लगा जो उन्होंने देखे थे,


जब वह बैत-फ़गे और बैत-अनियाह के क़रीब पहुँचा जो ज़ैतून के पहाड़ पर थे तो उसने दो शागिर्दों को अपने आगे भेजकर


मुबारक हैं वह जो मातम करते हैं, क्योंकि उन्हें तसल्ली दी जाएगी।


उस दिन उसके पाँव यरूशलम के मशरिक़ में ज़ैतून के पहाड़ पर खड़े होंगे। तब पहाड़ फट जाएगा। उसका एक हिस्सा शिमाल की तरफ़ और दूसरा जुनूब की तरफ़ खिसक जाएगा। बीच में मशरिक़ से मग़रिब की तरफ़ एक बड़ी वादी पैदा हो जाएगी।


ऐ मेरी जान, तू ग़म क्यों खा रही है, बेचैनी से क्यों तड़प रही है? अल्लाह के इंतज़ार में रह, क्योंकि मैं दुबारा उस की सताइश करूँगा जो मेरा ख़ुदा है और मेरे देखते देखते मुझे नजात देता है।


दिन-रात मेरे आँसू मेरी ग़िज़ा रहे हैं। क्योंकि पूरा दिन मुझसे कहा जाता है, “तेरा ख़ुदा कहाँ है?”


चुनाँचे सदोक़ और अबियातर अहद का संदूक़ शहर में वापस ले जाकर वहीं रहे।


तब योआब उसके पास जाकर उसे समझाने लगा, “आज आपके ख़ादिमों ने न सिर्फ़ आपकी जान बचाई है बल्कि आपके बेटों, बेटियों, बीवियों और दाश्ताओं की जान भी। तो भी आपने उनका मुँह काला कर दिया है।


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